पाकिस्तान में हर साल बड़ी संख्या में हिंदू लड़कियों का होता है जबरदस्ती धर्म परिवर्तन

पाकिस्तान हिंदू

PC: thebalochistanpost

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति शुरू से ही चिंताजनक रही है। पाकिस्तान के निर्माण के समय हिन्दुओं की आबादी लगभग 23 प्रतिशत थी जो अब मात्र 1.2 फीसदी रह गई है। और सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि तमाम अल्पसंख्यक समुदायों की जनसंख्या बड़े नाटकीय रूप से घटी है जबकि इसी अवधि के दौरान देश में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय की आबादी बड़ी तेजी से बढ़ी है। पाक के कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों का देश के शासन एवं प्रसाशन में बड़ा प्रभाव रहा है जिसकी वजह से वहां का कानून भी ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कदम उठाने की जहमत नहीं उठाता। पिछले सोमवार को इसी बात को प्रमाणित करते हुए पाकिस्तान के ही एक मीडिया पोर्टल की एक रिपोर्ट भी सामने आई है जिसमें यह खुलासा किया गया है कि पाक में हर साल लगभग 1 हज़ार लड़कियों का जबरन मुस्लिम धर्म में परिवर्तन करवा दिया जाता है जिनमें करीब 700 लड़कियां ईसाई होती हैं जबकि लगभग 300 लड़कियां हिंदू धर्म से जुड़ी होती हैं। रोचक बात तो यह है कि इस रिपोर्ट के जारी होने के सिर्फ एक दिन बाद ही पाक से दो नाबालिग हिंदू बहनों के जबरन धर्म परिवर्तन की खबर सामने आई थी, जिसपर भारतीय विदेश मंत्रालय भी नज़र बनाए हुए हैं।

आपको ऊपर दिया 1,000 का आंकड़ा बेशक बेहद कम लग रहा हो, लेकिन यह भी सच्चाई है कि जबरन धर्म परिवर्तन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पुलिस भी कोई कार्रवाई करने से कतराती है क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में ‘बड़े नामों’ का हाथ पाया जाता है। पाकिस्तान में शुरू से ही उनके यहां मौजूद अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति नौकरियों, स्कूलों तथा पूरे समाज में भेदभाव किया जाता रहा है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान में हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों पर भी मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया जाता है। पाकिस्तान में मौजूद प्रसिद्ध कटास राज मंदिर इसका एक जीता जागता उदाहरण है जिसको कई सालों से मुस्लिम पाक जनरलों द्वारा लूटा जाता रहा है। यही कारण है कि हर साल पाकिस्तान से बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग भारत में शरण लेने के लिए आते हैं और भारत की नागरिकता लेने की कोशिश करते हैं। अकेले राजस्थान में ही लगभग सवा लाख पाक हिंदू शरणार्थी की तरह जीने पर मज़बूर हैं और वो वापस अपने देश नहीं जाना चाहते।

आपको बता दें कि पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुछ दिनों पहले ट्वीट कर यह बताने की कोशिश की थी कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय को कोई इज्जत नहीं दी जाती और पाक अल्प-संख्यक समुदायों के लिए एक ‘स्वर्ग के समान है। उन्होंने ट्वीट किया था ”क़ायदे आज़म ने पाकिस्तान इसलिए बनाया क्योंकि उन्हें पता था कि हिंदू बहुल भारत में उन्हें उनका अधिकार नहीं मिलेगा, नया पाकिस्तान क़ायदे आज़म का पाकिस्तान है जहां अल्प-संख्यक समुदाय को बराबरी का दर्जा दिया गया है, भारत के बिल्कुल उलट।”  

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने यह बयान जमीनी हकीकत से हटकर दिया गया था। उन्होंने अपना यह ट्वीट लिखने से पहले एक पल भी यह नहीं सोचा कि अगर वाकई पाकिस्तान में हिन्दू, सिख और ईसाई धर्म के लोगों को बराबरी का हक़ दिया गया होता तो उनकी आबादी वर्ष 1947 में 23 प्रतिशत से घटकर आज मात्र 3 प्रतिशत ना रह गई होती, जबकि भारत में इसके उलट अलप-संख्यक समुदाय की आबादी लगातार बढ़ी है। पाक में आज तक कोई गैर-मुस्लिम प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति नहीं बन पाया, लेकिन भारत में ऐसा बिल्कुल नहीं है। पाक में जबरन धर्म परिवर्तन कोई असामान्य बात नहीं है। अक्सर पाक के मुल्ला-मौलवियों के कहने पर वहां के ताकतवर लोग गरीब व बेसहारा हिंदू या ईसाई लोगों का धर्म परिवर्तन कराते हैं और इसमें स्थानीय प्रशासन का भी उन्हें पूरा साथ मिलता है।

हालांकि, जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाओं पर खुद पाक के लोगों का रुख भी निराशाजनक है। दरअसल, 2016 में सिंध विधानसभा ने ख़ास कर ग़ैर-मुसलमान परिवार के बच्चों को जबरन मुसलमान बनाए जाने की कई शिकायतों के बाद, जबरन धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ एक बिल पास किया था। लेकिन इस बिल के विरोध में कई धार्मिक दल सड़कों पर उतर आए और इसके ख़िलाफ़ आंदोलन की घोषणा कर दी। जब जमात-ए-इस्लामी के अध्यक्ष सिराजुल हक़ ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह अध्यक्ष आसिफ़ अली ज़रदारी को बुलाया तो इस बिल के पास होने पर इसे ‘ऐतिहासिक उपलब्धि’ बताते हुए मिठाइयां बांटने वाली सत्तारूढ़ पीपीपी के नेतृत्व ने बढ़ते दबाव के कारण घुटने टेक दिए।  इस मुलाक़ात के कुछ ही देर बाद, पीपीपी के नेतृत्व वाली सरकार ने संशोधन लाने की घोषणा कर दी और तब के राज्यपाल जस्टिस (रिटायर्ड) सईदुज़मान सिद्दीकी को यह संदेश भेज दिया कि इस बिल को वो मंजूर नहीं करें, और तब से, यह बिल विधानसभा में धूल खा रहा है। इससे यह भी साफ होता है कि कैसे पाकिस्तान की सरकार कुछ धार्मिक कट्टरपंथी संगठनों के सामने अपने सारे अधिकारों को सरेंडर कर देती है।

Exit mobile version