भारत काफी समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने का प्रयास करते आया है, लेकिन हर बार चीन अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करके भारत की इस कोशिश में अड़ंगे लगाता आया है। इसको लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए आज ट्वीट किया “कमजोर मोदी शी से घबराये हुए हैं,जब चीन भारत-विरोधी गतिविधियां करता है, तो उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकलता, मोदी चीन के राष्ट्रपति को गुजरात में झूला झुलाते हैं, दिल्ली में उनको गले लगाते हैं, और चीन में जाकर उनके सामने झुकते हैं।“
Weak Modi is scared of Xi. Not a word comes out of his mouth when China acts against India.
NoMo’s China Diplomacy:
1. Swing with Xi in Gujarat
2. Hug Xi in Delhi
3. Bow to Xi in China https://t.co/7QBjY4e0z3
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 14, 2019
हालांकि, राहुल गांधी यह ट्वीट करते वक्त शायद ये भूल गए कि चीन ने वर्ष 2009 में भी भारत के इन प्रयासों पर अड़ंगा लगाया था, तब केंद्र में यूपीए की ही सरकार थी। भाजपा ने इसके बाद ट्वीट कर राहुल गांधी के इस आरोप का करारा जवाब दिया “चीन उस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य ही नहीं बन पाता, अगर आपके परदादा जी (नेहरू) ने उसे भारत के बलिदान के बूते स्थायी सदस्यता ना दिलाई होती! अब भारत आपके परिवार द्वारा की गई गलतियों को सुधारने के लिए प्रयासरत है, आप निश्चित रहिये, भारत आतंक के विरुद्ध लड़ाई जरूर जीतेगा। इसका भार आप पीएम मोदी पर छोड़ दें, आप चीन के राजदूतों से छुप-छुपकर मिलते रहिये।“
China wouldn't be in UNSC had your great grandfather not 'gifted' it to them at India’s cost.
India is undoing all mistakes of your family. Be assured that India will win the fight against terror.
Leave it to PM Modi while you keep cosying up with the Chinese envoys secretly. https://t.co/lAyp12CXBD
— BJP (@BJP4India) March 14, 2019
आपको बता दें कि तीसरे विश्वयुद्ध के बाद जब 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ तो विश्वयुद्ध में जापान के खिलाफ़ चीन के योगदान को देखते हुए सोवियत संघ द्वारा उसको स्थायी सदस्यता दिलाने की बात कही जाने लगी। उस समय अमेरिका माओत्सेतुंग के कम्युनिस्ट चीन के खिलाफ था और उसकी जगह च्यांग काइ शेक के फारमोसा, जो अब ताइवान है, उसे सदस्य बना दिया। कहा जाता है कि अमेरिका कम्युनिस्ट चीन के बजाय 1950 में प्रजातांत्रिक भारत को स्थायी सदस्य बनाना चाहता था लेकिन, जवाहर लाल नेहरू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इसके पीछे उनके द्वारा यह तर्क दिया गया कि भारत को अगर चीन की जगह स्थायी सदस्य बनाया जाता है तो इससे इस क्षेत्र में एक प्रतिस्पर्धा का माहौल बन जाएगा जोकि शांति के लिए घातक साबित होगा।
भारत का सुरक्षा परिषद् की स्थायी सीट को ठुकराना इतिहास की बड़ी भूलों में गिना जाता है। भारत को ना जाने कितनी बार इसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुंह की खानी पड़ी है। जिस चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दिलाने के लिए भारत ने 25 वर्षों तक चीन का साथ दिया, वही चीन अब तक कुल 4 बार भारत द्वारा मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने की कोशिशों में अड़ंगा लगा चुका है। दरअसल, नेहरू चीन की समाजवाद नीतियों से काफी प्रभावित थे, और चीन के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की वकालत करते थे। उन्होंने भारतीयों और चीनियों के बीच एक सकारात्मक संवाद को स्थापित करने के लिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा भी दिया जिसका जवाब चीन ने वर्ष 1962 के युद्ध में बड़े भरपूर अंदाज से दिया। उसी चीन ने भारत की नाक के नीचे से तिब्बत को भी हड़प लिया और आज वह भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर अवैध रूप से कब्ज़ा करे बैठा है, और भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा जताता रहा है। यह कहने में आज किसी को भी आपत्ति नहीं होगी की यदि आज भारत के पास सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट होती तो शायद अब तक कश्मीर मुद्दे का हल होने के साथ-साथ, भारत मसूद अज़हर जैसे आतंकियों से भी कब का निपट चुका होता। वर्ष 1974 में जब भारत ने पहली बार परमाणु हथियार का सफलतापूर्वक परिक्षण किया, तब भी अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाकर भारत को अपमानित करने का काम किया था। अगर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य होता, तो अमेरिका भारत द्वारा किये गये परमाणु परीक्षण के बाद सपने में भी भारत पर प्रतिबंध लगाने की ना सोचता! लेकिन नेहरू ने अपनी निजी सोच तथा निजी आदर्शों के तहत ही देश की नीति बनाने का काम किया जिसका नतीजा भारत अब तक भुगत रहा है। ऐसे में आज राहुल गांधी द्वारा पीएम मोदी पर चीन के साथ कूटनीति को लेकर तंज कसना अपने आप में ही बड़ा हास्यास्पद है।