बिहार के पटना साहिब से सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का जो काम किया है, वह उनके राजनीतिक भविष्य के लिए घातक साबित होने वाला है। शत्रुघ्न सिन्हा लंबे समय से नकारात्मक राजनीति करते आ रहे हैं। पहले माना गया था कि, कोई मंत्री पद नहीं मिलने या पार्टी में कोई उच्च पद नहीं मिलने से वे निराश थे। अफवाहें तो यह भी थीं कि, उन्होंने यह भी सोचा था कि उन्हें बिहार चुनाव में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाएगा। शायद वो भूल गए थे कि, मंत्री पद पाने के लिए कोई योग्यता भी होनी चाहिए, सिर्फ एक्टर होना ही पर्याप्त नहीं होता। गौरतलब है कि वाजपेयी सरकार के समय केंद्रीय मंत्रिमंडल के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन काफी चिंताजनक रहा था। हर समय फिल्मी अंदाज में रहने वाले सिन्हा ने नकारात्मक राजनीति के अलावा जनता के लिए क्या किया है, आइए जानने की कोशिश करते हैं।
साल 2014 के बाद से ही शत्रुघ्न सिन्हा या तो टीवी पर दिखाई देते रहे और या फिर मीडिया के सामने आकर फिल्मी अंदाज में नकारात्मक बयानबाजी करते रहे। विपक्षियों के बीच अपनी ही पार्टी की बुराई करना इस 5 साल के कार्यकाल में उनका मुख्य शगल रहा। विपक्षी पार्टियों की सभाओं में भाषण देना, उनके एजेंडे को सपोर्ट करना, यह ही उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में किया है। वे कहते हैं कि, वे जनता के प्रति जवाबदेह हैं ना कि भाजपा नेताओं के प्रति। अब जनता उनसे पूछना चाहती है कि, पिछले 5 सालों में पार्टी, समाज और मतदाताओँ के लिए उनका क्या योगदान रहा है। क्या वे संसद सदस्य के रूप में 5 साल के अपने योगदान और प्रदर्शन की बैलेंस शीट तैयार कर सकते हैं? क्या वे ऐसा करने की हिम्मत रखते हैं? हमें पता है कि वे नहीं बता पाएंगे तो आइए हम बताते हैं कि, एक लोकसभा सांसद के रूप में उनका 5 साल का कार्यकाल कैसा रहा।
शत्रुघ्न सिन्हा के पिछले 5 साल के सांसद कार्यकाल की बात करें तो इसमें वे अव्व्ल आए हैं। जी हां, लेकिन वे अव्वल ऊपर से नहीं बल्कि नीचे से आए हैं। पीआरएस इंडिया की वेबसाइट के अनुसार शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने कार्यकाल में संसद की किसी भी डिबेट में हिस्सा नहीं लिया जबकि इसकी राष्ट्रीय औसत 67.1 है। इसके अलावा शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने कार्यकाल में संसद में कोई प्रश्न भी नहीं पूछा है। इसमें भी उनका नंबर जीरो ही है जबकि राष्ट्रीय औसत 293 प्रश्नों की हैं। अब आते हैं प्राइवेट मेंबर बिल पर। यहां भी सिन्हा कहां पीछे रहने वाले थे। पीआरएस की वेबसाइट के अनुसार सिन्हा ने अपने कार्यकाल के दौरान सदन में कोई भी प्राइवेट मेंबर बिल नहीं रखा है अर्थात इसमें भी उनके मार्क्स आए हैं जीरो। यही नहीं, शत्रुघ्न सिन्हा की संसद में उपस्थिति भी औसत से काफी कम हैं। संसद में उपस्थिति का राष्ट्रीय औसत 80 पर्सेंट है और शत्रुघ्न सिन्हा की संसद में उपस्थिति मात्र 67 पर्सेंट ही है।
स्पष्ट है कि, शत्रुघ्न सिन्हा की अपने सांसद कार्यकाल के दौरान परफॉर्मेंस बेहद घटिया रही है। उन्होंने अपने कार्यकाल में अपनी पार्टी और भाजपा नेताओं को शर्मिंदा करने का ही काम किया है। एक सांसद के रूप में अपनी जिम्मेदारी से वे पूरे कार्यकाल के दौरान भागते रहे हैं।
अगर शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी में असहज थे, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और नकारात्मक राजनीति जारी रखी। उन्होंने सोचा होगा कि बीजेपी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी और फिर वे विक्टिम कार्ड खेल सकते हैं। बीजेपी ने अब सही समय पर सही तरीके से शत्रुघ्न को जवाब दिया है। पटना साहिब से शत्रुघ्न का टिकट काटकर अब वहां से रविशंकर प्रसाद को टिकट दिया गया है। यह पार्टी के लिए जरूरी भी था। वह इसलिए क्योंकि पटना साहिब में शत्रुघ्न का जनाधार धीरे-धीरे काफी कम हो गया है। इस बार किसी भी हालत में वहां सिन्हा का स्टारडम नहीं चलने वाला था। बीजेपी से पत्ता कटने के बाद अब अगर पटना साहिब से सिन्हा को कांग्रेस की ओर से भी टिकट मिलता है तो भी उनके जितने की संभावना शून्य से कुछ ज्यादा नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह अब शत्रुघ्न सिन्हा का राजनीतिक भविष्य खतरे में हैं और यह उनके द्वारा अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारने का ही परिणाम है।