अपने साथी और जेएनयू विद्यार्थी संगठन के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के नक्शे कदम पर चलते हुए वामपंथी कार्यकर्ता शेहला राशिद शोरा ने आधिकारिक रूप से राजनीति में कदम रख लिया है। उन्होंने सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर शाह फैज़ल द्वारा गठित राजनीतिक पार्टी ‘जम्मू व कश्मीर पीपल्स मूवमेंट’ की सदस्यता ग्रहण की। शाह फैज़ल ने बीते रविवार अपनी पार्टी को ‘हवा बदलेगी’ के नारे के साथ श्रीनगर के गिंडुन पार्क में लॉन्च किया। जम्मू व कश्मीर पीपल्स मूवमेंट को कश्मीर के अन्य दलों जैसे नेशनल कांफ्रेंस तथा पीडीपी के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
शाह फैज़ल ने पार्टी को लॉन्च करने के दौरान पत्रकारों से कहा ”मुझे लगता है कि लोगों को बिजली, सड़कें तथा पीने के लिए साफ पानी मुहैया करवाकर हम उनके जीवन को बदल सकते हैं, लेकिन मुझे पता है कि जब तक हम यहाँ के युवकों के मन से भय तथा हमारी माताओं, बहनों की किसी भी वक्त उनके आत्मसम्मान को छीने जाने की चिंता को दूर नहीं करेंगे, तब तक यहाँ कोई विकास नहीं हो सकता।”
शाह फैज़ल ने आगे कहा ”यह सामान्य बात होगी यदि कोई हमारी पार्टी जैसे नए आंदोलन या नए विचार को कमतर समझे, या कोई हमें सेना का एजेंट बताए, मैं सभी आलोचनाओं को सहने के लिए तैयार हूँ लेकिन मैं ये विश्वास दिलाता हूँ कि हमारी पार्टी एक नए कल को लाने के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहेगी।” पार्टी की सदस्य बन चुकी शेहला राशिद ने कहा ‘यह पार्टी नहीं है, बल्कि हमारे सम्मान एवं एकता के लिए शांति एवं विकास का आंदोलन है।
इससे पहले पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने पर राशिद ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया को बताया कि ”एक जेएनयू विद्यार्थी होने के नाते पिछले पांच सालों के दौरान वे कश्मीर की लगभग सभी पार्टियों के संपर्क में थीं और पीपल्स मूवमेंट को उन्होंने अपने पूरे होशोहवास में लिया है। हालाँकि, अभी यह तय नहीं है कि मैं चुनाव लड़ूंगी या नहीं लेकिन मैं प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार मज़बूत करने के लिए काम करूंगी।”
हालाँकि, लोगों को जिसने सबसे ज़्यादा आकर्षित किया, वह शेहला का सक्रिय राजनीति में शामिल होना नहीं था, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में उनका नाटकीय रूपांतरण था। पार्टी में शामिल होने के पहले तक, शेहला ने खुद को एक लिबरल के रूप में पेश किया, जिसने धार्मिक हठधर्मिता के सामने झुकने से इनकार कर दिया था। हालाँकि, पार्टी के लॉन्च समारोह के दौरान, हमने एक अलग शेहला राशिद को देखा, जो केवल रूढ़िवादी ही नहीं थी, बल्कि अपने धर्म का पूर्ण अनुसरण करने वाली महिला थी, जिन्होंने अपने चेहरे पर हिजाब डाला हुआ था। क्या महिला सशक्तीकरण पर उनके बयान केवल बयानबाजी थे? हमें तो ऐसा ही ऐसा लग रहा है।