चुनावों में अक्सर लोग काम करने वाली पार्टी को ही चुनते हैं और उसे सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने का काम करते हैं, लेकिन भारत जैसे देश में राजनीति बस यहीं खत्म नहीं होती। यहां एक साथ इतने समीकरण काम करते हैं कि बड़े से बड़े चुनावी एक्स्पर्ट्स भी अक्सर जमीनी हालातों को अच्छे से भांप नहीं पाते और बड़ी गलतियां कर बैठते हैं। इसी का एक उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब वर्ष 2004 में उस वक्त की लोकप्रिय वाजपेयी सरकार वापस सत्ता में लौटने में असफल रही। भाजपा की इस हार का विश्लेषण करते हुए हमें यह पता चलता है कि लोगों के बीच लोकप्रिय होंने के बावजूद भाजपा इसलिए हारी क्योंकि उसका कोई परंपरागत वोट बैंक नहीं था। लोग भी भाजपा की जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि वे भाजपा को वोट देने के लिए घर से बाहर निकले ही नहीं, जिसके बाद नतीजे सबको चौकानें वाले थे।
जब भाजपा की हार की खबर सामने आई तो चुनावी एक्स्पर्ट्स ने इसका ठीकरा भाजपा के ‘शाइनिंग इंडिया’ अभियान पर फोड़ने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि शाइनिंग इंडिया अभियान की वजह से देश के शहरी और ग्रामीण लोग भाजपा से कटते नज़र आए जिसकी वजह से पार्टी को भारी नुकसान झेलना पड़ा। हालांकि, सच्चाई वह बिल्कुल नहीं थी। दरअसल, यदि आप भाजपा के कोर वोट बैंक पर नज़र डालेंगे, तो आपको कुछ खास वहां देखने को नहीं मिलेगा। देश का गरीब और मुस्लिम तबका अक्सर कांग्रेस के लिए वोट करता आया है, लेकिन भाजपा के लिए परंपरागत वोट बैंक के नाम पर कुछ खास नहीं होता। भाजपा के वोटर्स एक लहर के साथ सामने आने में विश्वास रखते हैं, जिसकी वजह से भाजपा को अपनी मजबूत स्थिति होने के बावजूद कई बार उलटफेर का शिकार होना पड़ता है।
चुनावों से पहले वाजपेयी सरकार ने भी विकास कार्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना हो, या वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को बेहतर करना हो, हर पहलू पर भाजपा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल हो पाई थी। लेकिन भाजपा की जीत को लेकर जनता इतनी आश्वस्त थी कि उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का वहन करने का ख्याल ही नहीं आया, और परिणाम स्वरूप भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2009 की बात करें तो भारत में विकास का पहिया उसी तेज रफ्तार से दौड़ रहा था, और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दागरहित छवि की बदौलत दोबारा कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने में कामयाब रही।
अब 2019 के लोकसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं और भारत का वोटर फिर उसी परिस्थिति में आन खड़ा है। भारत में बेशक एक काम करने वाली सरकार सत्ता में है जिसने पिछले 5 सालों में अनगिनत उपलब्धियां हासिल की हैं। इतना ही नहीं, भारत के लोग इस बार भी भाजपा की जीत को लेकर आश्वस्त हैं, फिर चाहे आप किसी एक्ज़िट पोल को उठाकर देख लीजिये या फिर किसी चुनावी सर्वे को। लेकिन लोगों का यह मूड तब तक मत में नहीं परिवर्तित नहीं हो सकता, जब तक खुद वोटर पोल्लिंग बूथ पर जाकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं करता। अन्य पार्टियों को बेशक उनका परंपरागत वोट बैंक वोट डालकर आएगा, लेकिन भाजपा को जिताने के लिए आपका घर से बाहर निकालना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए हमारा आपसे यह विनम्र अनुरोध है कि आप जाकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल अवश्य करिए।