अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष द्वारा कन्हैया कुमार का समर्थन करना उनको अब भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। दरअसल, छात्र संघ ने अपने अध्यक्ष सलमान इम्तियाज़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को पारित किया है। सलमान इम्तियाज़ ने पिछले दिनों बेगूसराय से सीपीआई के उम्मीदवार कन्हैया कुमार का समर्थन किया था। छात्रों का कहना है कि छात्र संघ के उच्च पदों पर बैठे हुए अधिकारी को ऐसे सीधे तौर पर किसी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना चाहिए। छात्र संघ के उपाध्यक्ष हमज़ा सुफियान ने इस संबंध में यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को एक पत्र भी लिखा है जिसमें उनको यह बताया गया है कि छात्र संघ के अध्यक्ष के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।
वाइस चांसलर को लिखे पत्र में हमज़ा सुफियान ने बताया है कि बीती 25 अप्रैल को छात्र नेताओं की आम बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया जिसपर 107 छात्रों ने हस्ताक्षर भी किए हैं। इसके साथ ही पत्र में उन्होंने यह भी लिखा है कि अगर 14 दिनों के अंदर-अंदर अध्यक्ष बाकी छात्र नेताओं को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं तो इस प्रस्ताव पर 10 मई को वोटिंग होगी। इसके अलावा इस पत्र में छात्र संघ के अध्यक्ष इम्तियाज़ के खिलाफ कई गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। उपाध्यक्ष सुफियान ने आरोप लगाया है कि संघ के अध्यक्ष को बाकी छात्र नेताओं से अहम मुद्दों को छुपाने की एक आदत पड़ी हुई है। उनके मुताबिक संघ के अध्यक्ष ने संघ द्वारा कन्हैया का समर्थन करने की बात को भी सबसे छुपाकर रखा। इसी पत्र में इम्तियाज़ पर अवैध रूप से हथियार रखने के साथ-साथ छात्रों को डरा-धमकाकर उनकी आवाज को दबाने के भी आरोप लगाए गए हैं। पत्र में लिखा है ‘उन्होंने प्रशासन और छात्रों के लिए एक जहरीला वातावरण बना दिया है’।
हालांकि, एएमयू छात्र संघ के सचिव हुजैफा आमिर ने इसको लेकर अपना अलग ही राग अलापा है। उपाध्यक्ष की बातों को नकारते हुए उन्होंने दावा किया कि ऐसा कोई अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि 25 अप्रैल को छात्र नेताओं की बैठक में वे भी शामिल हुए थे, हालांकि हॉल में छात्रों के दो गुटों के बीच छिड़े विवाद के बाद ऐसे किसी प्रस्ताव को पारित नहीं किया गया था। जागरण की एक खबर के मुताबिक आमिर ने यह भी कहा कि अगर कोई गलती करता है उसे स्पष्टीकरण का एक मौका ज़रूर मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि इम्तियाज़ की गैर-मौजूदगी में किसी प्रस्ताव को पारित नहीं किया जा सकता। उन्होंने दावा किया कि उपाध्यक्ष के पास ऐसी किसी बैठक को आयोजित करने का कोई अधिकार ही नहीं था क्योंकि अध्यक्ष ने बेगूसराय जाने से पहले अपने अधिकारों का हस्तांतरण नहीं किया था।
इस पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि एएमयू छात्र संघ के उच्च अधिकारियों ने एक गंभीर और जटिल मुद्दे पर एक दूसरे के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल लिया है। हालांकि इस पूरे मामले पर अब तक एएमयू के छात्र संघ के अध्यक्ष की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यह साफ है कि कन्हैया के समर्थन के बाद अब उनकी चौतरफा आलोचना हो रही है। देश के शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते राजनीतिक दखल का यह सबसे ताज़ा उदाहरण है जोकि देश की शिक्षा व्यवस्था और छात्रों के लिए बेहद घातक है।