अक्टूबर 2014 में जबसे देवेन्द्र फड़णवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने हैं, तब से राज्य में भाजपा की स्थिति पहले से और ज़्यादा मजबूत होती जा रही है। फड़णवीस महाराष्ट्र में अपनी सरकार की एक भ्रष्टाचार रहित और विकासवादी छवि पेश करने में सफल हुए हैं। अब इसका असर यह हुआ है कि भाजपा अपनी विरोधी पार्टियों के गढ़ पर भी अपना ‘कमल’ खिलाने की पूरी कोशिश में है। राज्य की बारामती सीट भी ऐसी ही सीटों में से एक है। बारामती लोकसभा सीट पर शुरू से ही शरद पवार के परिवार का बेहद ज़्यादा प्रभाव रहा है। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनावों के बाद से वहां पर पवार परिवार का कब्ज़ा रहा है। जून 1999 में शरद पवार ने कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) का गठन किया था, और तब से ही बारामती सीट एनसीपी का गढ़ रहा है। लेकिन अब की बार भाजपा यहां अपना पताका फहराने के लिए पूरी तरह तैयार दिखाई दे रही है। ऐसे में अब की बार एनसीपी के उम्मीदवार के लिए यहां से जीतना इतना आसान नहीं होगा।
आपको बता दें कि बारामती सीट से वर्ष 2004 तक खुद पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार यहां से चुनाव लड़ते थे, लेकिन उसके बाद से उनकी बेटी सुप्रिया सुले वहां से जीतती आ रही हैं। हालांकि, अब की बार उनका यहां से जीत की हैट्रिक लगाना बेहद मुश्किल रहेगा। इसका अंदाजा आप पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में एनसीपी उम्मीदवार सुप्रिया सुले के जीत के अंतर से लगा सकते हैं। वर्ष 2004 और वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में एनसीपी की जीत का अंतर जहां लाखों में था, तो वहीं वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में यह अंतर पहली बार 1 लाख से कम हुआ। पिछले चुनावों में सुप्रिया सुले एनडीए के उम्मीदवार महादेव जगन्नाथ जंकार से मात्र 70 हज़ार वोटों से जीतीं। इस बार भाजपा ने बारामती से एक नए चेहरे कंचन राहुल कूल को उतारा है, और यह माना जा रहा है कि अब की बार यहां से भाजपा कोई उलटफेर करने में सफल हो सकती है।
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र में भाजपा का रिपोर्ट कार्ड बेहद शानदार रहा है। पिछले ही वर्ष भाजपा ने नगर निकाय के चुनावों में बेहद शानदार प्रदर्शन किया था। कभी एनसीपी का गढ़ माने जाने वाले जामनेर में भाजपा नगर निगम के चुनावों में सभी 25 सीटें पर जीत गई थी। इसके अलावा वर्ष 2017 में भी बीजेपी ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी चुनाव) में 227 सीटों में से 82 में जीत हासिल कर सभी को चौंका दिया था। बीजेपी ने 10 प्रमुख नगरपालिकाओं में से 8 पर जीत दर्ज की थी। शिवसेना द्वारा 84 सीटें जितने के बाद ये बीएमसी में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। महाराष्ट्र की राजनीति में पैर जमाने के लिए बीजेपी की ये बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि 2017 से पहले बीजेपी ने हमेशा ही बीएमसी चुनावों में शिवसेना के साथ गठबंधन किया था।
इस लोकसभा चुनावों में भी भाजपा अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। इसी वर्ष मार्च में मुख्यमंत्री फड़णवीस ने अपने एक बयान में कहा था ‘पिछली बार राज्य में भाजपा ने 42 सीटें जीती थी, अब की बार भाजपा 43 सीटें जीतेगी, और उसमें बारामती सीट भी शामिल होगी’। इससे पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी अपने कार्यकर्ताओं से बारामती सीट जीतने की बात कर चुके हैं। उन्होंने कहा था ‘बारामती लोकसभा सीट पर पिछले 15 सालों से भ्रष्ट लोगों का राज नहीं रहना चाहिए’। बात साफ है कि पूरी पार्टी का नेतृत्व अब की बार बारामती सीट पर नज़र जमाए हुए है, और अगर भाजपा यहां से जीत पाने में सफल हो पाती है तो यह पवार परिवार के साथ-साथ पूरी एनसीपी पार्टी के लिए गहरा झटका साबित होगा। लेकिन बारामती की जनता क्या फैसला सुनाती है, यह तो इन चुनावों के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।