भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र अपना ‘संकल्पपत्र’ जारी कर दिया है। इस घोषणापत्र को जारी कर भाजपा ने किसानों, व्यापारियों और देश की अर्थव्यवस्था के संबंध में कई अहम घोषणाएँ की हैं। साथ ही देश की सुरक्षा नीति के संबंध में भी भाजपा ने यह साफ किया है कि उनकी सरकार आतंकवाद को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगी। घोषणापत्र में पाकिस्तान पर कि गई सर्जिकल और एयर स्ट्राइक का भी ज़िक्र किया गया है। लेकिन इस घोषणापत्र में सबसे बड़ा आकर्षण भाजपा सरकार का कश्मीर में लागू विवादित अनुच्छेद 370 को लेकर रुख बना है। भाजपा ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि उनकी सरकार कश्मीर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को हटाने के लिए प्रतिबद्ध है।
भाजपा ने इस विवादित अनुच्छेद के संबंध में लिखा है ‘हम राज्य से उन सभी बाधाओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो राज्य में पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता नहीं होने का कारण बनती है। हम जनसंघ के समय से अनुच्छेद 370 के प्रति अपने दृष्टिकोण को दोहराते हैं’। अनुच्छेद 35 ए पर भी इस घोषणापत्र में बड़ा ऐलान किया गया है। घोषणापत्र में लिखा है ‘हम कश्मीर से धारा 35 ए को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा मानना है कि यह धारा कश्मीर में रह रहे गैर-कश्मीरियों और महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। यह धारा राज्य के विकास में भी एक बड़ी बाधा है’। इसके अलावा इस घोषणपत्र में भाजपा ने कश्मीरी पंडितों को दोबारा कश्मीर में बसाने के लिए जरूरी कदम उठाने की भी बात कही है।
इससे पहले देश के वित्त मंत्री ने भी इस बात के संकेत दिये थे कि उनकी सरकार अनुच्छेद 35 ए को लेकर कोई बड़ा ऐलान कर सकती है। अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में इस अनुच्छेद को संविधान-भेद्य बताया था। आपको बता दें कि यह अनुच्छेद मात्र एक राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद भारतीय संविधान में जोड़ा गया था, और ठीक उसी प्रकार इसे हटाया भी जा सकता है।
इस अनुच्छेद के खिलाफ समय-समय पर भारत के कई कोनों से आवाज़े उठती रही है। वर्ष 1952 में दिल्ली की नेहरू सरकार एवं जम्मू कश्मीर के शेख अब्दुल्ला के बीच ‘दिल्ली समझौता’ हुआ जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। इसी दिल्ली समझौते के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद अनुच्छेद 370 में अनुच्छेद 35 ए जोड़ा गया जिसमें जम्मू कश्मीर की राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे अपने नागरिकों को दोहरी नागरिकता दे सकते हैं, यानि एक नागरिकता जम्मू एवं कश्मीर की, और एक नागरिकता भारत की। इसी के साथ राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों एवं सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में राज्य के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया।