लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र भी जारी कर दिये हैं। इसी कड़ी में सत्ताधारी बीजेपी ने आज अपना पार्टी घोषणा पत्र जनता के सामने पेश किया जिसमें लगभग सभी क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया है। “संकल्पित भारत सशक्त भारत” का नारा देते हुए बीजेपी कई ऐसे जनता से जुड़े मुद्दे भी लेकर आई है जिन पर कभी किसी सत्ताधारी पार्टी ने ध्यान नहीं दिया।
ऐसा ही एक अनोखा और अनछुआ मुद्दा है हमारी भारतीय भाषाओं का पुनरुत्थान का। साथ ही सभी भाषाओं की जननी मानी जाने वाली संस्कृत भाषा को पुनः जीवित करने का। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में यह कहा है कि वो भारत मे बोली जाने वाली सभी भाषाओं और बोलियों की वर्तमान स्थिति को जानने और अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यबल का गठन करेगी भारतीय भाषाओं और बोलियों के पुनरुद्दार और संवर्धन के लिए सभी संभव प्रयास करेगी। मेनिफेस्टो मे यह भी कहा गया कि संस्कृत भाषा पर विशेष ध्यान देते हुए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि स्कूली स्तर पर संस्कृत की शिक्षा का विस्तार हो , ऐसा करने से भारत कि सबसे प्राचीन और भाषा कि जननी माने जाने वाली संस्कृत को एक नयापन मिलेगा साथ ही उसके साथ विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को नए- नए अवसर और आयाम मिलेंगे। साथ ही जैसे विदेशी भाषाओं को सीखने का प्रचलन तेज़ी से बढ़ रहा है वैसे ही अगर हमारी प्राचीनतम भाषा संस्कृत को सीखने से रोजगार के नए अवसर मिलते हैं तो इससे अच्छी बात और क्या होगी।
भारत ने विश्व को कई अद्भुत चीजें दी हैं चाहे वो ‘शून्य’ हो या फिर भाषाओं की जननी संस्कृत। अगर किसी चीज़ की शुरुआत ना हो तो उसका विस्तार नहीं किया जा सकता हमने संस्कृत दुनिया को दी जिससे दुनियाभर मे कई बोलियों की शुरुआत हुई। अब भाषाओं की जननी संस्कृत को और अधिक लोगों तक पहुंचाए जाने की जरूरत है। इसके लिए बीजेपी ने संस्कृत में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए शोधार्थियों व विद्वानों के लिए पाणिनी फेलोशिप देने की शुरुआत करने का वादा किया है। इससे स्कोलर्स को और आगे बढ़ने में मदद मिलेगी साथ ही जिस वित्तीय सहायता की उनको जरूरत थी वो अब मिल पाएगी। सरकार 100 पाणिनी फेलोशिप देकर इसकी शुरुआत करेगी।
केंद्र सरकार का ये कदम काफी सरहनीय है। वैदिक शिक्षा के लिए भारत के पहले ‘राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड’ का बनना एक सकारात्मक सोच है जो संस्कृत को एक नयी पहचान दिलाने का काम करेगा। बता दें कि, भारत के संविधान के निर्माता रहे भीमराव अंबेडकर और बंगाल से आने वाले नजीरुद्दीन अहमद भी संस्कृत भाषा के समर्थन मे थे। वो भी चाहते थे कि भारत की प्राचीनतम भाषा हमेशा पहचान में रहे और आगे बढ़ती रहे। केंद्र सरकार का यह कदम इस दिशा में एक सकारात्मक बदलाव की ओर बढ़ता नज़र आता है।