कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र को जारी कर दिया है। लेकिन इसके जारी होते ही कई मुद्दों पर पूरे देश-भर में घमासान मच गया। घोषणापत्र में एक तरफ जहां विवादित अनुच्छेद 370 को नहीं हटाने की बात कही गई है तो वहीं दूसरी तरफ भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में शरण देने की बात कही है। आपको बता दें कि इन रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आये दिन अपराध करने की घटना सामने आती रहती है। इतना ही नहीं, इनके द्वारा भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश भी की जा चुकी है। बांग्लादेश के आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिद्दीन (जेएमबी) के भी भारत में सक्रिय होने की खबरें पहले भी सामने आ चुकी हैं। ऐसे में कांग्रेस ने अपने घोषणपत्र में इन हिंसक लोगों को शरण देने की बात कहकर भारत की सुरक्षा से समझौता करने का काम किया है।
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है ‘कांग्रेस अंतरराष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों के अनुरूप नागरिक शरण कानून पारित करने का वायदा करती है’। यानि अगर कांग्रेस सरकार सत्ता में आती है तो वह इन अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों को देश में शरण देने का काम करेगी। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने इन हिंसक लोगों के प्रति अपने स्नेह को जाहिर किया है। पिछले वर्ष अगस्त में हुए विकिलीक्स खुलासे में यह पहले ही साफ हो चुका है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कैसे अपनी तुष्टिकरण की राजनीति करने के लिए अप्रवासियों के कानूनों को बदलने पर विचार करने की बात कही थी। इसके अलावा उन्होने फॉरेनर्स एक्ट 1946 में संशोधन करने की भी बात कही थी। अपनी इन बातों को कहने के पीछे उनका मकसद पूर्वोतर भारत के सबसे अहम राज्य असम में रहने वाले मुस्लिमों को खुश करने का था, जिसमें वो कामयाब भी हुई थीं और उसके बाद वर्ष 2006 के राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में आने में सफल हुई थी। यहां तक कि कांग्रेस अब भी असम में ‘नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर(एनआरसी)’ का पुरजोर विरोध करती आई है जिसके तहत लगभग 40 लाख बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस उनके देश भेजे जाना है।
इस बात में तो कोई दो राय नहीं है कि इन रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों से भारत की सुरक्षा को एक बहुत बड़ा खतरा है। पिछले वर्ष जुलाई में उत्तर प्रदेश एटीएस और पश्चिम बंगाल पुलिस की संयुक्त टीम ने बांग्लादेश के आतंकवादी संगठन जमात उल मुजाहिदीन (जेएमबी) के दो सदस्यों को ग्रेटर नोएडा से गिरफ्तार किया था। वन इंडिया के मुताबिक, जेएमबी के ये सदस्य दिल्ली में रोहिंग्या मुस्लिमों के एक नेटवर्क को सक्रिय करने की कोशिश कर रहे थे साथ ही इनकी योजना देश की राजधानी में बड़े हमले को अंजाम देने की थी लेकिन भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। खुफिया ब्यूरो के मुताबिक पाकिस्तान में आईएसआई की मदद से साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) भी भारत में अपनी कई शाखा बनाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में अगर भारत में रोहिंग्या को रहने की अनुमति दी गयी तो भविष्य में आतंक की जड़ों को और बढ़ावा मिलेगा और ये भारत में आतंकी हमलों को अंजाम दे सकते हैं।
भारत की मौजूदा सरकार की बात करें तो वह इन हिंसक लोगों को देश के लिए खतरा मानती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों को अवैध अप्रवासियों को बाहर निकालने के आदेश पहले ही दे दिये हैं। असम में नागरिकता कानून, 1955 के तहत नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर(एनआरसी) लाया गया और 40 लाख अवैध अप्रवासियों की पहचान की गयी। यही नहीं, केंद्र सरकार रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजना शुरू भी कर चुकी है। पिछले साल अक्टूबर माह में सात रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजा गया था। हालांकि, कुछ नेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए रोहिंग्या के समर्थन में अपनी आवाज उठाते हैं लेकिन किसी को भी भारत की सुरक्षा की ताक पर अपने हित को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। अगर रोहिंग्या को भारत में रहने की अनुमति दी जाती है तो वो भविष्य में भारत के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं।