इंडोनेशिया में बैलेट पेपर से चुनाव के दौरान चली गई 272 जानें, क्या हमरा विपक्ष इससे सीख लेगा?

(PC: BBC)

हमारे देश में जहां एक तरफ विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग से ईवीएम की बजाए बैलट पेपर (मतपत्र) से चुनाव कराने की मांग कर रही है वहीं इंडोनेशिया से इससे जुड़ी बड़ी दर्दनाक खबर सामने आई है। एक ऐसी खबर जो बैलट पेपर से चुनाव कराने की विपक्ष की मांग पर पानी ही नहीं फेरेगी बल्कि उनके मंसूबों को भी तबाह कर देगी।    

दरअसल, इंडोनेशिया में 10 दिन पहले ही चुनाव संपन्न हुए हैं। ये चुनाव वहां की सरकार ने बैलट पेपर (मतपत्र) के जरिए संपन्न करवाए थे। इसका यह परिणाम सामने आया कि अब तक वहां बैलट पेपर की गिनती करने वाले 272 कर्मचारियों की दर्दनाक मौत हो चुकी है। वहीं करीब 1878 कर्मचारी बीमार हैं।

गौरतलब है कि, इंडोनेशिया की कुल आबादी 26 करोड़ है। यहां की सरकार ने खर्चा बचाने के लिए राष्ट्रपति चुनावों के साथ ही संसदीय और क्षेत्रीय चुनाव भी करा लिये थे। ये सारे चुनाव एक ही दिन 17 अप्रैल को आयोजित हुए। हालांकि, यहां चुनाव जरूर शांतिपूर्ण ढंग से हो गए लेकिन मतपत्रों की गणना के समय यह दर्दनाक घटना घटित हो गई।

इंडोनेशिया चुनाव आयोग के प्रवक्ता के अनुसार बैलट पेपर गिनने वाले अधिकांश कर्मचारियों की मौत बेहद थकान के कारण होने वाली बीमारियों के चलते हुई। इंडोनेशिया में इस समय करीब 70 लाख लोग वोटों की गिनती और निगरानी में मदद कर रहे हैं। इन लोगों में ज्यादातर अस्थाई कर्मचारी हैं। इनका स्वास्थ्य परीक्षण भी नहीं किया गया था। ये कर्मचारी हाथों से बैलट पेपर गिन रहे हैं।

दरअसल, यहां कर्मचारियों को बेहद गर्मी और खराब परिस्थितियों में रात भर जागकर काम करना पड़ रहा है। इस कारण इन लोगों को शारीरिक परेशानियां आने लगी थीं। इन बेहद खराब परिस्थितियों के कारण ही वहां अब तक 272 कर्मचारियों की मौत हो गई है। अगर इंडोनेशिया सरकार मतपत्रों के बजाय ईवीएम से चुनाव करवाती तो इन लोगों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती।

अब आप सोचिए जब 26 करोड़ की आबादी वाले इंडोनेशिया में बैलट पेपर से चुनाव कराने पर इस तरह की परिस्थितियां उतपन्न हो गईं तो सोचिये अगर चुनाव आयोग फिर से बैलट पेपर से चुनाव करवाने के लिए राजी हो जाए तो 133.92 करोड़ जनसंख्या वाले भारत का क्या हाल होगा। भले ही भारत में संसाधन इंडोनेशिया से ज्यादा हैं फिर भी मतपत्रों से चुनाव कराने से बूथ कैप्चरिंग जैसे कई बड़े खतरे हैं।

इंडोनेशिया में मतपत्रों से चुनाव कराने के बावजूद वहां का विपक्ष खुश नहीं है। यहां विपक्ष ने चुनावों के दौरान धांधली का आरोप लगाया है। यहां राष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार प्रबोवो सुबिआंतो ने मतगणना के दौरान बड़े स्तर पर धांधली का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि कुछ अधिकारी वर्तमान राष्ट्रपति जोको विडोडो को जिताने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं, विडोडो सरकार के सुरक्षा मंत्री ने आरोपों को आधारहीन बताया है। इस दौरान दोनों उम्मीदवारों ने जीत की घोषणा की है। यहां 22 मई तक वोटों की गिनती पूरी होगी जिसके बाद विजेताओं की घोषणा होगी।

जहां एक तरफ इंडोनेशिया जैसे देश में बैलट पेपर से चुनाव करवाने के नकारात्मक नतीजे देखने को मिल रहे हैं वहीं भारत में विपक्षी पार्टियां और लेफ्ट लिबरल गैंग बैलट पेपर से चुनाव करवाने की बात करते रहे हैं। हमारे देश के विपक्ष की बात करें तो यहां कांग्रेस, एसपी, बीएसपी, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस और वांपथी दलों सहित कुल 17 विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग को लिखा था कि वो ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव करवाए। यही नहीं हर चुनाव के बाद यहां लगभग-लगभग सभी विपक्षी पार्टियां ईवीएम पर सवाल उठाती रही हैं। यहां सोचने वाली बात है कि इंडोनेशिया की तुलना में भारत की जनसंख्या कहीं ज्यादा है अगर बैलट पेपर से चुनाव किये जाते हैं तो इससे न सिर्फ समय की बर्बादी होगी बल्कि जाने भी जा सकती हैं। इंडोनेशिया की इस घटना से भारत के लेफ्ट-लिबरल गैंग को जरुर जवाब मिल गया होगा कि क्यों चुनाव आयोग बैलट पेपर को फिर से मतदान के लिए नहीं लाना चाहता।

गौरतलब है कि हमारे देश में समय-समय पर कई नेता ईवीएम को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। एनडीटीवी को दिये एक इंटरव्यू में हार्दिक पटेल ने कहा था कि, अगर मैं मोदी के खिलाफ चुनाव लडूं और 2 लाख वोट से जीत भी जाऊं तो भी ईवीएम का विरोध करूंगा। एनडीटीवी के रवीश कुमार ने भी कहा था कि उनकी राय में मतदान में मशीन नहीं होनी चाहिए। वहीं इसी साल फरवरी में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा था, ‘मैं तीन चार-साल से देख रहा हूं कि जब वोटिंग होती है जब हम कोई भी बटन दबाते हैं तो वोट जो है बीजेपी को जाता है। चाहे आप हाथी पर दबाएं या साइकिल पर लेकिन वह जाता फूल को ही है। जब चुनाव आयोग इन पार्टियों को अपनी बात साबित करने के लिए मौके दिए तो ये पार्टियां अपने कदम पीछे खींच लेती हैं। लेकिन बार बार हर चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी ये विपक्षी पार्टियां अगर हार का मुंह देखती हैं तो फिर से ईवीएम खराबी का रोना रोती हैं। हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कर दिया कि देश को बैलट पेपर के दौर में नहीं ले जाया जायेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने एक बार दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा भी था कि, ‘मैं आपको स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हम वापस बैलट पेपर्स के दौर में नहीं लौट रहे हैं।’ बार बार विपक्षी पार्टियों द्वारा ईवीएम हैक के दावे झूठे ही साबित हुए हैं।

वैसे देखा जाए तो विपक्षी पार्टियों द्वारा ईवीएम के विरोध के पीछे मंशा तब जगजाहिर हो गई जब कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद कीर्ती आजाद ने दावा किया कि उन्होंने 1999 का लोकसभा चुनाव कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा बूथ कैप्चरिंग की मदद से जीता था। कीर्ति आजाद ने बताया कि, कांग्रेस के लोग उनके दिवंगत पिता के लिए चुनाव के दौरान बूथ लूटा करते थे।

कुल मिलाकर एक बात जो समझ आती है वो ये है कि ईवीएम खराबी का रोना रोने वाले विपक्षी दल और लेफ्ट लिबरल गैंग सिर्फ अपने हित के लिए और मतदान प्रक्रिया में धांधली नहीं कर पा रहे। यही वजह है कि हार का ठीकरा ईवीएम पर थोपते हैं और जीत को जनता का जनादेश बताते हैं। हालांकि, इन्हें अब इंडोनेशिया की घटना से से इन्हें अपने सवालों के जवाब जरुर मिल गये होंगे साथ ही देश की जनता को भी विपक्ष का दोहरा रुख समझ आ चुका है तो अब ये लोग झूठा राग अलापते रहे।

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