बेगूसराय: गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला

गिरिराज सिंह कन्हैया कुमार

PC: Dainik Bhaskar

चौथे चरण के मतदान में आज बिहार के बेगूसराय में भी चुनाव होने जा रहे हैं। बेगूसराय में इस बार हमें त्रिकोणीय मुक़ाबला देखने को मिल रहा है। आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन ने यहां से तनवीर हसन को मैदान में उतारा हुआ है, तो वहीं सीपीआई ने यहां से जेएनयू के क्रांतिकारी छात्रनेता कन्हैया कुमार को टिकट दिया हुआ है। भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह भी यहीं से अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। अलग-अलग खेमे के चुनावी एक्स्पर्ट्स अलग-अलग उम्मीदवारों पर दांव लगा रहे हैं, लेकिन ये बात तो साफ है कि चुनाव प्रचार की अनोखी रणनीति के कारण गिरिराज सिंह को इस सियासी लड़ाई में बढ़त मिलती दिखाई दे रही है। गिरिराज सिंह अपने प्रचार करने के लिए जहां बेगूसराय से जुड़े स्थानीय लोगों का साथ ले रहे हैं, तो वहीं उनके विरोधी आकर्षक टीवी स्टार्स के सहारे अपनी नैया पार लगाने में जुटे हैं। यही कारण है कि बेगूसराय के वोटर्स भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह के साथ अन्य दलों के नेताओं के मुकाबले अधिक जुड़े हुए नजर आ रहे हैं ।

कन्हैया कुमार को बेशक कुछ वामपंथी ताक़तें एक बड़े चेहरे के तौर पर दिखाने की कोशिश कर रही हों, लेकिन सच्चाई यह है कि उनका बेगूसराय की जनता से कोई जुड़ाव देखने को नहीं मिलता है। एक तरफ जहां कन्हैया कुमार के प्रचार के लिए जेएनयू के क्रांतिकारी छात्रों की पूरी फौज मैदान में उतर आई है, तो वहीं बॉलीवुड के वामपंथी गैंग का भी पूरा साथ उन्हें मिला है। पिछले दिनों ही स्वरा भास्कर उनका प्रचार करने के लिए बेगूसराय में आयीं थीं। अब कन्हैया कुमार के इस ‘जेएनयू कार्ड’ के जवाब में तनवीर हसन ने भी कुछ ऐसा ही दांव चला। उन्होंने जेएनयू के साथ-साथ ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ से भी अपने लिए प्रचारकों को बुला लिया। वहीं इसके इतर गिरिराज सिंह पार्टी के स्थानीय नेताओं के साथ-साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं को लेकर अपना प्रचार करने किया है। उनके इस कदम से बेगूसराय की जनता के बीच यह साफ संदेश गया कि आरजेडी और सीपीआई को अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।  

किसी भी चुनाव में स्थानीय कार्यकर्ताओं की बड़ी अहम भूमिका होती है। लोकसभा चुनाव में इनका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि चुनाव जीतने के बाद सांसद का अधिकतर समय दिल्ली में ही बीत जाता है। ऐसे में वोटर्स और सांसद के बीच संवाद को बनाए रखने वाला यदि कोई बचता है, तो वह पार्टी का स्थानीय कार्यकर्ता ही होता है। लेकिन कन्हैया कुमार और तनवीर हसन के पास ऐसे कार्यकर्ताओं की भारी कमी देखने को मिल जाती है। इसके अलावा बेगूसराय में जातिय समीकरण भी भाजपा के पक्ष में जाते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, गिरिराज सिंह जिस भूमिहार समाज से आते हैं, उस समाज का बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव है। इसके अलावा तनवीर हसन अपने परंपरागत यादव और मुस्लिम वोट पर ही निर्भर होते दिखाई दिए। जबकि कन्हैया कुमार का बेगूसराय से कोई उम्मीद लगाना इसलिए भी तर्कसंगत नहीं लगता है क्योंकि वहां के वोटर्स उनकी विवादित छवि की वजह से उनसे बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। कुछ दिनों पहले ही उनके एक रोड शो के दौरान कुछ लोगों ने उनको घेरकर उनके देशविरोधी नारे लगाने पर सवाल उठाए थे। इस विरोध को भी कन्हैया ने ‘भाजपा का आदमी’ बताया था। जाहिर है की चाहे प्रचार रणनीति की बात हो, या फिर जातीय समीकरण की बात हो, हर क्षेत्र में गिरिराज सिंह अपने विरोधियों को पटखनी देते नज़र आ रहे हैं, हालांकि यह पूर्णतः वोटर्स पर ही निर्भर करेगा कि वे किसे अपने क्षेत्र से सांसद के तौर पर देखना चाहते हैं।

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