लोक सभा चुनावों में हार के डर से केजरीवाल सरकार रास्ता भटक गई

केजरीवाल दिल्ली

PC: NDTV Khabar

2013 में आम आदमी पार्टी बनाते समय साफ राजनीति, हम नौकरी छोड़ राजनीति बदलने आए हैं । भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, कानून व्यवस्था, महंगाई आदि मुद्दों पर राजनीति का नैरेटिव तैयार करने वाली आम आदमी पार्टी आखिर क्यों “अगर बीजेपी को हराना है तो केवल आम आदमी पार्टी को वोट दो” से अब मोदी अमित शाह की जोड़ी को हराने के लिए हम किसी से भी गठबंधन कर सकते हैं” पर आ गए हैं। पहली बार है दिल्ली के चुनाव महंगाई, भ्रष्टाचार, आदि मुद्दा ही नहीं है कोमन वेल्‍थ खेल के घोटाले, बिजली कंपनियों का भ्रष्टाचार, रॉबर्ट वाड्रा और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल पहुंचाने के मुद्दे दिल्ली चुनाव से गायब हैं। 

वास्तव में अब आप का पूरा का पूरा नैरेटिव ही बदल गया  है और भाजपा को हराना उनका नया नारा बन गया है।  शीला दीक्षित के खिलाफ ताल ठोकने वाले और चुनाव लड़कर जीतने वाले अरविन्द केजरीवाल के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है और अब वे आप लिए वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से खिलाफ मांग रहे हैं न कि भ्रष्टाचार, महंगाई या बेरोजगारी के खिलाफ।  रोजगार कि बात पूरी तरह से गायब है।  आम आदमी पार्टी नेताओं के बीच से 70 सूत्रीय एजेंडे में जो बड़ी बड़ी  बात कही गई थी वह भी चुनाव से गायब है । केजरीवाल लगातार अपनी पीठ थपथपाते रहे हैं कि दिल्ली सरकार का काम बहुत अच्छा है वो भी अब आप की बातों से गायब है केवल मोदी और शाह ही प्रचार के केंद्र बिंदु  में है।

 आप भाजपा को हराना क्यों हराना चाहती है उसके लिए अपनी कोई उपलब्धि या कारण नहीं बता रही है । वास्तव में जो भी सरकार में हो उसके खिलाफ आक्रामक रुख नाराज लोगों को आपसे जोड़ने में मदद करता है और इसी रणनीति पर केजरीवाल काम करते रहे हैं लेकिन वर्तमान व्यवस्था में उनका यह दांव भी कामयाब होता नजर नहीं आ रहा है। यही वजह है कि मोदी सरकार ने कोई  भ्रष्टाचार कर लिया इसकी बात भी करने कि हिम्मत नहीं आप जुटा पा रही है शायद काठ कि हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती।

 आप के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह राफेल मामले में पुलिस थाने तक में शिकायत कि लेकिन इस मामले को गरमाने में नाकामयाब रहे क्योंकि अदालत ने पहले ही दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। कुल मिलकर विकास , भ्रष्टाचार, महंगाई का मुद्दा दिल्ली के चुनाव से गायब हो गया और मुद्दे कि तलाश में लगे केजरीवाल ने प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष को निशाना बनाना इस उम्मीद  शुरू कर दिया है की दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपनी सातों सीटों पर संभावित हार को कैसे टाले।

वास्तव में केजरीवाल के पास अपने चार साल की उपलब्धियों को गिनाने के नाम पर कुछ भी नहीं है। हर मोर्चे पर सरकार और पार्टी नाकामयाब रही है यहां तक कि गेस्ट अध्यापकों को भी केजरीवाल सरकार से कोई मदद नहीं मिल पाई है और सरकार ऐसे मुद्दों कि बात कर रही है जिसका दिल्ली के विकास और जनता से कोई लेना देना ही नहीं है। मोदी विरोध के नाम पर केंद्र सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजना आयुष्मान भारत से भी दिल्ली कि जनता को दूर कर दिया है जिसका उनके पास कोई उत्तर नहीं है। केजरीवाल के पास मोदी सरकार कि तरह गिनाने के लिए न तो जनकल्याणकारी योजना है और न ही दूरदर्शिता। इसके साथ ही आप सरकार अपने वायदों को भी पूरा करने में नाकामयाब रही है तो सिवाय बाकी विपक्षी नेताओं के साथ एक ही राग अलापने के कुछ बचा नहीं है। लेकिन दिल्ली कि जनता वायदों का हिसाब मांग रही है जो केजरीवाल के पास कम से कम अभी तो नहीं ही है।

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