समाजवादी, मार्क्सवादी, औपनिवेशिक और नेहरूवादी पूर्वाग्रहों के साथ लिखी गई भारतीय स्कूली पाठ्यक्रम की सामाजिक विज्ञान की पुस्तकों को शुद्द करने की दिशा में मोदी सरकार ने एक और कदम उठाया है। सरकार ने कक्षा 10 वीं के बोर्ड परीक्षा के पाठ्यक्रम से 5 अध्यायों को हटा दिया है। अब ये अध्याय एनसीईआरटी की किताबों में तो होंगे और स्कूलों में भी पढ़ाए जाएंगे लेकिन बोर्ड परीक्षा में इन अध्यायों से जुड़े प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे।
बोर्ड परीक्षा के पाठ्यक्रम से जो अध्याय हटाए गए हैं उनमें तीन राजनीतिक अध्ययन और दो पर्यावरण से जुड़े अध्याय हैं। राजनीतिक अध्ययन के तीन अध्यायों में पहला ‘लोकतंत्र की चुनौती’, दूसरा सामाजिक विभेद की राजनीति पर ‘लोकतंत्र और विविधता’ और तीसरा अध्याय नेपाल और बोलीविया समेत अन्य स्थानों में मार्क्सवादी संघर्ष विषय पर ‘राजनीतिक संघर्ष और आंदोलन’ नाम से है। इसके साथ ही परीक्षा पाठ्यक्रम से पर्यावरण के जो दो पाठ्यक्रम हटाए गए हैं उनके नाम ‘वन और वन्य जीव’ और ‘जल संसाधन’ हैं। स्कूलों को भेजे गए इस नए सिलेबस के साथ लिखा गया है कि, ‘अध्याय का मूल्यांकन समय-समय पर ली जानी वाली परीक्षाओं में होगा, लेकिन बोर्ड की परीक्षा में इनका मूल्यांकन नहीं होगा।’
गौरतलब है कि, NCERT की पाठ्यपुस्तकें वामपंथी दृष्टिकोण से लिखी जाती रही हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि, पाठ्यपुस्तक विकास समिति के अधिकांश सलाहकारों ने विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों के संविधान की शपथ ले रखी है। इन पाठ्यपुस्तकों का राजनीतिक लेखन, जो ‘स्वतंत्र’ होने का दावा करता है, छात्रों को बहुत कम उम्र से ही एक निश्चित राजनीतिक दिशा में सोचने के लिए ‘मजबूर’ करने की कोशिश करता है। एक राजनीतिक दल (कांग्रेस पढ़ें) और उसके लीडर जो एक ही परिवार के हैं, (नेहरू-गांधी परिवार पढ़ें) पूरे पाठ्यक्रम में भरे पड़े हुए हैं।
बता दें कि, एनसीईआरटी की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक विकास समिति के अध्यक्ष हरि वासुदेवन हैं जिन्होंने एक प्रमुख वामपंथी पत्रिका इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में कम्युनिस्ट रूस की प्रशंसा करते हुए कई लेख प्रकाशित किए हैं। वहीं इस समिति के मुख्य सलाहकार आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे राजनेता योगेंद्र यादव हैं, जिन्होंने बाद में अपनी राजनीतिक पार्टी भी बनाई थी। समिति के सुहास पलशीकर नाम के एक और सलाहकार को कांग्रेस पार्टी के समर्थक के रूप में जाना जाता है। समिति के सदस्यों में से एक निवेदिता मेनन भी है, जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर हैं, उन्होंने कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शेहला राशिद और टुकडे टुकडे गैंग’ के सदस्यों का खुलकर समर्थन किया था। यही कारण है कि, देश के लिए ओपिनियन मेकिंग का काम करने वाले वर्ग (पत्रकार, लेखक और अकादमिक) का लंबे समय से एक विशेष विचारधारा (समाजवाद पढ़ें) के प्रति झुकाव रहा है।
इन पाठ्यपुस्तक विकास समितियों की सबसे खराब बात यह है कि उनके पास ‘दक्षिणपंथ’ से एक भी सदस्य नहीं है और वामपंथ से जुड़े लोग भरे पड़े हैं जबकि वे ‘स्वतंत्र’ होने का दावा करते हैं। यही कारण है कि, पाठ्यपुस्तकों में छपने वाली सामग्री खुले तौर पर उच्च जाति को कोसने, अमेरिका विरोधी और साम्यवाद व समाजवाद से प्रभावित रही। अब जब मोदी सरकार पाठ्य पुस्तकों से समाजवादी, मार्क्सवादी, औपनिवेशिक और नेहरूवादी पक्षपात को दूर करने की कोशिश कर रही है, तो पहले एक तथाकतिथ बुद्दिजीवी वर्ग अवार्ड वापसी का ड्रामा करने लगा था और अब ये लोग लोकतंत्र को खतरा बताने लगे हैं।
NCERT ने चुनाव के दौरान नौवीं की किताब से लोकतंत्र का पूरा चैप्टर ही हटा दिया है। अगर हम चुप रहे तो कल लोकतंत्र को पूरे देश से ही हटा दिया जाएगा। ख़तरा बड़ा है तो उसका सामना करने की तैयारी भी बड़ी होनी चाहिए।https://t.co/JcPNwqEUtN
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) April 17, 2019
मोदी सरकार द्वारा परीक्षा पाठ्यक्रम से ये अध्याय हटाने के बाद कन्हैया कुमार ने ट्वीट किया, ‘NCERT ने चुनाव के दौरान नौवीं की किताब से लोकतंत्र का पूरा चैप्टर ही हटा दिया है। अगर हम चुप रहे तो कल लोकतंत्र को पूरे देश से ही हटा दिया जाएगा। ख़तरा बड़ा है तो उसका सामना करने की तैयारी भी बड़ी होनी चाहिए।’ इसके साथ ही हर मुद्दे में वामपंथी एंगल निकालने वाले यू-ट्यूबर ध्रुव राठी ने भी इस निर्णय पर सवाल उठाया।
Shocking changes to CBSE Class X syllabus.
Following chapters will not come in Board Exams anymore from next year –
– Democracy and Diversity
– Popular struggle and movements
– Challenges to democracyIs this yet another way to infuse fascist propaganda in children?
— Dhruv Rathee (@dhruv_rathee) April 17, 2019
दरअसल, नेहरूवादी अभिजात वर्ग किसी भी कीमत पर अपनी सामाजिक और राजनीतिक पूंजी का संरक्षण करना चाहता है। उन्होंने लुटियन दिल्ली के पॉश बंगलों से 6 दशकों से अधिक समय तक भारत पर शासन किया है। इसलिए यह स्पष्ट है कि वे राजनीतिक और सामाजिक रूप से अप्रासंगिक नहीं बनना चाहेंगे। इस अभिजात वर्ग के साथ ही टुकड़े-टुकड़े गैंग भी इन सुधारों के विरोध में लगी है। लेकिन, मोदी सरकार को इन लोगों को नजरअंदाज करना चाहिए और पाठ्यपुस्तकों में किये गए पक्षपात को सही करना जारी रखना चाहिए।