मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस के मजबूत नेतृत्व में महाराष्ट्र सरकार ने विपक्षी पार्टियों के छक्के छुड़ाए हुए हैं। पिछले वर्षों में भाजपा सरकार ने राज्य में विकास कार्यों को इतना प्रोत्साहन दिया जिसने राज्य में प्रमुख विपक्षी पार्टी एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के प्रभाव को काफी हद तक कम करने का काम किया है। फड़णवीस-शाह-मोदी की तिकड़ी ने महाराष्ट्र में एनसीपी की जड़ों को कमजोर करने का काम बखूबी किया। इसका नतीजा यह निकला है कि अब एनसीपी के बड़े-बड़े नेता भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करने में लगे हैं और एनसीपी उन्हें चाहकर भी नहीं रोक पा रही है।
दरअसल, पार्टी के कुछ नेताओं ने एनसीपी के खिलाफ खुलकर अपना विरोध जताया है। वे भाजपा और शिवसेना के गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं। उनके बयानों से यह साफ हो गया है कि वे पार्टी के नेतृत्व से बेहद खफा हैं, और एनसीपी उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने में बिल्कुल भी सक्षम नहीं है। ऐसे ही नेताओं में सबसे पहले नाम विजय सिंह मोहिते-पाटील का आता है जिन्होंने इन चुनावों में भाजपा का समर्थन करने का ऐलान किया है। आपको बता दें कि माधा लोकसभा सीट पर एनसीपी की मजबूत पकड़ होने के बावजूद अब की बार विजय सिंह मोहिते-पाटील के बेटे रणजीत सिंह पाटील भाजपा में शामिल हुए हैं और इस बात की उम्मीद भी बेहद ज़्यादा है कि उन्हें पार्टी द्वारा माधा से टिकट भी दे दिया जाए। आपको बता दें कि विजय सिंह मोहिते-पाटील कोई छोटा नहीं नाम नहीं है, बल्कि वे राज्य के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और माधा से मौजूदा सांसद है। वे पिछले काफी समय से शरद पवार द्वारा पार्टी में नकारे जाने से परेशान थे। पार्टी द्वारा उन्हें तो टिकट दे दिया गया था लेकिन वे अपने बेटे के लिए टिकट की मांग कर रहे थे।
शरद पवार अपनी पार्टी के अंदर जारी कलह को सुलझाने में पूरी तरह विफल दिखाई देते हैं। इसका एक अन्य उदाहरण आपको एक अन्य वरिष्ठ विपक्षी नेता, राधाकृष्णा विखे पाटील के बेटे के रूप में देखने को मिल जाएगा जिन्होंने भाजपा को जॉइन किया है। खुद विखे पाटील भी अपने बेटे के लिए अब प्रचार कर रहे हैं। उनके बेटे सुजय ने 12 अप्रैल को बीजेपी जॉइन किया था और वे अब पार्टी की ओर से अहमदनगर सीट से चुनाव लड़ेंगे। पाटील की तरह ही विखे भी शरद पवार द्वारा एनसीपी में उनको नकारे जाने से बेहद दुखी थे।
महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के तथाकथित गठबंधन की ‘मजबूती’ का अंदाजा भी सबको बखूबी है। कांग्रेस से एमएलए कालीदास कोलंबर भी अब भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना का समर्थन करने का ऐलान कर चुके हैं। उन्होंने कहा ‘कांग्रेस के दक्षिण-मुंबई सेंट्रल सीट से उम्मीदवार एकनाथ गाइकवाड़ ने ना मुझे बुलाया और ना ही मुझे कोई संदेश भेजा। अब मैं शेवाले (शिवसेना के उम्मीदवार) का समर्थन करूंगा और उनका ही प्रचार करूंगा’। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के कमजोर नेतृत्व पर भी अपनी निराशा जताई और यह ऐलान किया कि वे शिवसेना के उम्मीदवार राहुल शेवाले का समर्थन करेंगे।
पार्टी के नेतृत्व से चल रही नाराजगी की वजह से ही यह नतीजा निकला है कि अब पार्टी के बड़े नेता पार्टी का दामन छोड़कर शिवसेना और भाजपा को जॉइन कर रहे हैं। औरंगाबाद सीट से कांग्रेस के एमएलए अब्दुल सत्तार ने भी पार्टी को छोड़कर एक स्वतंत्र उम्मीदवार का समर्थन करने की घोषणा की है। साफ है कि कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन में लोकसभा चुनाव को जीतने का कोई दमखम नज़र नहीं है। पार्टी के अंदर चल रही इन कलहों से यह साफ है कि ये दोनों पार्टियां अब राज्य में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं हैं।