सौराष्ट्र में वेरावल के पास प्रभास पाटन नामक स्थान पर एक ऐसा अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर स्थित है जो आज धर्म की जीत का सबसे बड़ा प्रतीक बनकर खड़ा है। इस मंदिर का नाम है सोमनाथ मंदिर। यह एक ऐसा मंदिर है जो इस बात को साबित करता है, कि बुरी ताकतें कितनी भी प्रबल क्यों ना हों, वे कितनी भी हावी क्यों ना हो जाए लेकिन, धर्म पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ता, धर्म विजयी होकर ही रहेगा। पूरा इतिहास भरा पड़ा है कि, कैसे इस मंदिर को उजाड़ दिया गया, जला दिया गया और ध्वस्त कर दिया गया। यही नहीं, इसके पुनर्निर्माण में भी खूब रोड़े अटकाए गए। जवाहर लाल नेहरू ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण ना होने देने की भरपूर कोशिशें कीं, उसके बावजूद भी इसका पुनर्निर्माण होकर ही रहा। इसके बाद अब ‘कर्म’ और ‘भाग्य’ का चक्र देखिए, जिस नेहरू ने मंदिर के पुनर्निर्माण में रोड़े अटकाए, उन्हीं नेहरू के वंशज राहुल गाँधी गुजरात चुनाव के समय 2017 में सोमनाथ मंदिर की शरण में गए थे।
सोमनाथ मंदिर हिंदू पुनरुत्थान का भी प्रतीक रहा है। यह इस बात का प्रतीक है कि, चाहे जितनी भी बाधाएं क्यों ना आ जाएं, हिंदुओं की आस्था कोई नहीं डिगा सकता। मंदिर को नष्ट करने और इसकी मरम्मत में बाधा डालने की तमाम कोशिशों के बावजूद यह सोमनाथ मंदिर 1100 वर्षों से हिंदुओं के लिए आस्था के केंद्र के रूप में खड़ा है और आगे भी यूं ही खड़ा रहेगा। यह मंदिर हिंदू दर्शन में कही गई उस बात को प्रमाणित करता है, जिसमें कहा गया है कि, सृजन की शक्ति विनाश की शक्ति से बड़ी होती है। इस अद्भुत मंदिर का समय-समय पर राजा भोज, महिपाल देव, गुजरात के हिंदू शासकों और अहिल्या बाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्माण किया गया। इस मंदिर का अंतिम पुनर्निर्माण आचार्य केएम मुंशी के सानिध्य में हुआ। वहीं इस मंदिर पर सबसे पहले आक्रमण करने की जुर्रत जुनैद इब्न अल मुर्री ने की थी। इसके साथ ही यह भी बताते चलें कि, इस मंदिर के पुनर्निर्माण में पहली बाधा डालने की जुर्रत “पंडित” नेहरू ने की थी।
बता दें कि, साल 1947 में, जब आजादी के बाद सभी रियासतों के विलय का दौर चल रहा था, तो जूनागढ़ रियासत के राजा ने पाकिस्तान में जाने फैसला लिया था। लेकिन भारत के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जानते थे कि इसकी इजाजत देना देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने की तरह होगा। इसके बाद सरदार पटेल ने सेना की मदद से जूनागढ़ रियासत का विलय भारत में करा लिया। जब पटेल जूनागढ़ आए तो उन्हें लगा कि सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार किया जाना चाहिए।
तब जूनागढ़ दौरे के दौरान सरदार पटेल ने जूनागढ़ के लोगों के लिए दिये अपने भाषण में कहा था, “यह सरकार नवनिर्माण के लिए आई है, नष्ट करने के लिए नहीं। अब पुनर्निर्माण का समय आ चुका है।” यह वह वक्त था जब सरदार पटेल जी और केएम मुंशी जी ने मंदिर के जीर्णोद्धार की इच्छा व्यक्त की थी। इसके बाद तीन तरफ से आपत्तियां आई थीं जो ‘धर्मनिरपेक्ष’ नेहरू, ‘अपीलकर्ता’ ”गांधी और मुसलमानों के एक वर्ग से आईं थीं।
सरदार पटेल ने इसके बाद के अपने जूनागढ़ के दौरे में कहा था, “मंदिर के संबंध में हिंदुओं की भावनाएं मजबूत ही नहीं बल्कि व्यापक भी हैं। वर्तमान स्थितियों को देखते हुए हिंदुओं की यह भावनाएं सिर्फ मंदिर के जीर्णोद्धार से ही संतुष्ट नहीं होगी बल्कि अब मंदिर में मूर्ति की पुनर्स्थापना ही सम्मान की बात होगी।”
दिव्य सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में नेहरू की भूमिका: भारतीयों के लिए एक सबक
पुनर्निर्माण के विचार पर ही रोक:
सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार को रोकने के लिए नेहरू ने गांधी के साथ कई मीटिंग्स किए, मीटिंग्स में विचार ऐसा बना कि सीधे-सीधे सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार पर रोक लगाना आत्महत्या करने जैसा होगा और जीर्णोद्धार के लिए सरकारी खजाने से पैसे देने पर धर्मनिरपेक्षता को गहरा धक्का लगेगा। हालांकि, दिल्ली में टूटी मस्जिदों यहाँ तक की सांची और अन्य बौद्ध मठों के पुनर्निर्माण में सरकारी पैसा लगाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री जी को कोई आपत्ति नहीं थी।
तो फिर बात निकली की अगर जनता का काम है तो पैसे जनता से ही लिए जाये। दान के पैसों से सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार की बात पक्की कर एक ट्रस्ट बनाया गया। जाम साहब ने सबसे पहले पैसे दानपात्र मे डाले और देखते ही देखते मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए ज़रूरी रुपयों का इंतेजाम हो गया।
हिन्दू पुनरुत्थान:
महात्मा गांधी की हत्या और सरदार पटेल की असमय मृत्यु के पश्चात सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का जिम्मा आया आचार्य के एम मुंशी के कंधों पर। ऐसे में नेहरू जी ने मुंशी जी से कहा “मुंशी जी आप जो ये सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर रहे हैं ना, ये हिन्दू पुनरुत्थान जैसा है और मुझे ये बिलकुल पसंद नहीं।” ये सुन कर मुंशी आग- बबूला हो गए और गुस्से मे पैर पटकते हुए रूम से बाहर निकल आए। उसके बाद मुंशी जी ने एक बेहद बेबाक चिट्ठी लिखी जिसे सबने भरपूर सराहा। इस चिट्टी का एक अंश यह है:
“यह मेरे इतिहास में मेरी श्रद्धा ही है जिसने मुझे वर्तमान में जीने की और भविष्य के बारे मे सोचने की शक्ति दी है। मैं उस स्वतन्त्रता का पक्षधर नहीं हूँ जो मुझे श्रीमदभगवद्गीता से दूर ले जाये और करोड़ों भारतियों को उनकी भक्ति और उनके मंदिरों से। ये मेरा विश्वास है कि अगर सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ तो आज़ादी के बाद के इन कठिन दिनों मे ना सिर्फ देशवासियों की आस्था सुदृढ़ होगी बल्कि उनका आत्मबल भी बढ़ेगा।”
मुंशी का यह पत्र पढ़ने के बाद वीपी मेनन ने कहा था, “मैंने आपका मास्टरपीस पढ़ा और मैं आपके मिशन में अपनी जान न्योछावर करने को भी तैयार हूँ।”
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन पर जाने से रोकना:
देश के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम राजेंद्र प्रसाद एक धार्मिक व्यक्ति थे जिनकी हिन्दू धर्म में भरपूर आस्था थी। पहले तो नेहरू जी ने उनके सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन पर जाने की बात को लेकर बहुत नाक-भौं सिकोड़े लेकिन महामहिम नहीं माने। वे सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में गए और वहां एक बहुत ही ओजस्वी भाषण भी दिया। हैरत की बात थी कि, यह भाषण हर अखबार में छपा लेकिन सरकारी ऑल इंडिया रेडीयो ने उस पर चुप्पी ही साध के रखी।
राजेंद्र बाबू ने सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह पर कुछ ऐसा कहा था:
जैसे विष्णु की नाभि में ब्रह्मा विद्यमान हैं वैसे ही हर मानव के हृदय मे आस्था विद्यमान है और ये आस्था विश्व की हर शक्ति, हर आयुध, हर सम्राट और हर सेना से ज़्यादा शक्तिशाली है। पुराने दिनों मे भारत समृद्धि का गढ़ था, हमारे पास सोने-चांदी की अकूत सम्पदा थी जिसका अधिकांश भाग हमारे मंदिरों में था। मुझे ये पूरा विश्वास है कि सोमनाथ मंदिर का यह जीर्णोद्धार उसी समृद्धि का जीर्णोद्धार है।”
मार्कसिस्ट इतिहासकार चीख चीखकर बताते हैं कि नेहरू जी एक धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री थे लेकिन सोमनाथ के जीर्णोद्धार की कथा उनके एक अलग ही पहलू को उजागर करती है, जो भयावह है।
आचार्य केएम मुंशी ने अपनी पुस्तक “जय सोमनाथ” में उल्लेख किया है:
“राजनीति में कुछ नेता बड़ा अजीब रवैया अपनाते हैं, वे अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक और सामाजिक सुरक्षा की आड़ में बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को सांप्रदायिक बताने को तैयार रहते हैं। कभी-कभी धर्मनिरपेक्षता को हिंदू धर्म से एलर्जी सी हो जाती है। यह बात सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से संबंधित कुछ प्रकरणों से स्पष्ट होती है।”
साल 2017 में गुजरात चुनावों के समय नेहरू के वंशज राहुल गांधी का सोमनाथ मंदिर की शरण में जाना और वहां राहुल का नाम गैर-हिंदू रजिस्टर में पाए जाने के बाद कांग्रेस का हताशा भरा स्पष्टीकरण देना स्पष्ट संकेत देता है कि यह देवताओँ द्वारा किया गया न्याय है। जैसा कि मैंने शुरुआत में ही कहा था- इसमें कई महीने और कई साल भी लग सकते हैं लेकिन अंततः धर्म ही प्रबल होता है।
तो ये तो थी कहानी सोमनाथ के पुनर्निर्माण की, भारत के इतिहास की ऐसी ही कही अनकही कहानियाँ अब आगे भी आप इस वेबसाइट पर पढ़ सकेंगे।