चुनावी दौर और अफरा-तफरी का अपना पुराना साथ रहा है, नेताओं के लिए बोले जाने वाला जुमला आया राम गया राम भी बड़ा मशहूर है। जिसको जहां ज्यादा फ़ायदा नज़र आता है वो वहाँ अपना बोरिया बिस्तर लगा लेता है ऐसा ही कुछ हो रहा है कांग्रेस के साथ भी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को अमेठी से अपना नामांकन दाखिल किया। ‘अमेठी’ जिसे कांग्रेस का गढ़ भी कहा जाता है। यहाँ कि जनता पिछले कई दशकों से कांग्रेस का प्रतिनिधि चुनती आ रही है लेकिन इस बार यहाँ के लोगो में बड़ा गुस्सा देखने को मिल रहा है। वज़ह थी- राहुल गांधी का पहले केरल की ‘वायनाड सीट’ से नामांकन दाखिल करना।
अमेठी मे नामांकन दाखिल करते समय राहुल गांधी के साथ उनकी माँ सोनिया गांधी, और पार्टी सचिव व बहन प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं। नामंकन भरने से पहले राहुल गांधी ने अमेठी में रोड शो भी किया। रोड शो के बाद उन्होंने गौरीगंज स्थित कलेक्ट्रेट ऑफिस जाकर अपना पर्चा भरा। इस सबके बीच अमेठी की जनता में इस बात का भारी रोष देखने को मिला कि राहुल ने वायनाड से पर्चा क्यों भरा? वहां के लोगों का कहना है कि, अमेठी से पहले वायनाड में जाकर पर्चा भर आना अमेठी का अपमान हैं। लोगों का कहना था कि, उन्होंने सालों से कांग्रेस पर भरोशा जताया, उसके बावजूद कांग्रेस ने उनके साथ धोखा किया।
सरायखेमा गांव के ग्राम प्रधान और पिछले आम चुनाव तक कांग्रेस समर्थक रहे संजय सिंह का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में उन्होंने देखा है कि, भारत ने पाकिस्तान को बहुत अच्छे से सबक सिखाने का काम किया है। साथ ही उन्होंने कहा कि, राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले से स्पष्ट है कि, कांग्रेस अब घबराहट महसूस कर रही है।
बता दें कि, इस बार अमेठी में भाजपा की पकड़ बेहद मज़बूत है और राहुल को ईरानी द्वारा शिकस्त का सामना करना पड़ सकता है। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वर्ष 2009 में लगभग पौने चार लाख वोटों के फासले से एकतरफा जीत हासिल करने वाले राहुल गांधी साल 2014 में ईरानी से मात्र एक लाख वोटों से जीत पाए थे। 2014 के बाद के पांच सालों को देखें तो ईरानी लगातार अमेठी के दौरे कर वहां के लोगों का दिल जीतती रही है। कांग्रेस को डर है कि, 2009-14 के बीच करीब 3 लाख वोट कम हुए थे और अब यदि इस बार 3 लाख और कम हो गए तो इस सीट से राहुल चुनाव हार जाएंगे।
चुनावी मैदान मे बीजेपी की तरफ से अमेठी की सीट से ताल ठोक रहीं स्मृति ईरानी ने कहा, “राहुल गांधी के वायनाड सीट से चुनाव लड़ने से साफ हो जाता है, कि उनके लिए अमेठी नहीं बल्कि वायनाड महत्वपूर्ण है, लेकिन मेरे लिए पिछले पाँच साल सिर्फ अमेठी ही महत्वपूर्ण रहा है”। दो जगह से नामांकन दायर करना कहीं न कहीं ये साफ ज़ाहिर करता है कि राहुल को भी इस बात का अंदाज़ा लग गया है कि उनकी जड़े अब अमेठी में कमजोर पड़ चुकी हैं। शायद इसीलिए वो अपने लिए एक मजबूत ज़मीन तलाश रहे हैं ताकि वो एक जगह से तो कांग्रेस का नाम चला सके।”
एक कहावत मशहूर है कि दो नावों में पैर रखने वाले लोग अक्सर डूब जाया करते हैं। कुछ ऐसा ही हाल कहीं राहुल गांधी का न हो जाए। राहुल गांधी पहली बार दो संसदीय क्षेत्रों से चुनावी मैदान मे उतर रहे हैं। उन्होंने 4 अप्रैल को ही वायनाड सीट से अपना नामांकन दाखिल किया था।
राहुल गांधी द्वारा अमेठी को नकार कर पहले वायनाड सीट से नामांकन भरना अमेठी के लोगों के गले नहीं उतर रहा है। पूरी संभावना है कि, अमेठी इन चुनावों में अब राहुल गांधी को भी नकारने वाली है क्योंकि राहुल गांधी की तुलना में बीजेपी की स्मृति ईरानी की पिछले पाँच साल में अमेठी के लोगों के लिए प्रतिबद्दता भारी पड़ रही है।