विज्ञान भी मानता है कि, न राम काल्पनिक हैं और ना ही राम सेतु

रामसेतु

PC: Dainik Bhaskar

हिंदुओं के पवित्र महाकाव्य रामायण के युद्धकाण्ड में लिखा है ‘विशालः सुकृतः श्रीमान् सुभूमिः सुसमाहितः। अशोभत महान् सेतुः सीमन्त इव सागरे।। जिसका अर्थ है कि श्री रामसेतु विशाल, सुन्दर, शोभा युक्त, समतल और सुसम्बद्ध यानि  लगातार एक दूसरे से जुड़ी हुई चट्टानों वाला था। युद्धकाण्ड में तो यहां तक बताया गया है कि इस सेतु के निर्माण में कितने दिन और किन वस्तुओं का प्रयोग हुआ था। रामसेतु का निर्माण पहले दिन 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन हुआ था। आपको बता दें कि एक योजन का मतलब लगभग 8 किमी के बराबर होता है, इस लिहाज से सेतु निर्माण के 5 दिनों में लगभग 797 किमी लंबे पुल का निर्माण किया गया था।

हालांकि, इन सबके बावजूद कुछ हिन्दू-विरोधी मानसिकता वाले लोग शुरू से ही श्री रामसेतु की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठाते आए हैं। इतना ही नहीं, पिछली सरकारों के समय तो श्री रामसेतु को खंडित करने की साजिश भी रची गई थी। वर्ष 1997 में जब पीएम एचडी देवेगोड़ा के नेतृत्व में सरकार बनी थी, तो उस वर्ष फरवरी में केंद्र सरकार द्वारा सेतु समुद्रम नहर परियोजना को लाया गया था। इस परियोजना के अंतर्गत भारत के पूर्वी तट से पश्चिमी तट के बीच चलने वाले समुद्री जहाजों के लिए एक शोर्ट कट बनाने के उद्देश्य से मन्नार की खाड़ी और पाक बे को जोड़ने वाली पतली भूमि की पट्टी को काट कर पानी में जहाजों के आने जाने के मार्ग के निर्माण होना था। ऐसा माना जाता है कि ये सेतु, भगवान राम की सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए वानर नल द्वारा बनाया गया था, यानि यह पूरा मामला हिन्दू धर्म और हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हुआ था, लेकिन फिर भी सरकार द्वारा इसको लेकर कोई विचार नहीं किया गया।

आपको बता दें कि भारत सरकार ने सेतु समुद्रम नहर परियोजना के संरेखण के सुझाव को प्रस्तावित करने लिए आज़ादी से पहले नौ समितियां गठित की थीं और आज़ादी के बाद पांच समितियां गठित की। उनमें से ज्यादातर ने रामेश्वरम द्वीप पर जमीनी मार्ग बनाने के बारे में सुझाया और किसी ने भी रामसेतु को खंडित करने की सिफारिश नहीं की। साल 1956 में सेतु समुद्रम नहर परियोजना समिति ने भी केन्द्र सरकार से रामसेतु को काटने के बजाय जमीनी रास्ते का उपयोग करने की जोरदार सिफारिश करते हुए कहा था कि जमीनी मार्ग के बहुत सारे फायदे हैं।

इसके बाद देश में कांग्रेस सरकार आई और वर्ष 2005 में इस परियोजना को केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी दे दी गई जिसका एकमात्र मुख्य उद्देश्य धनुषकोड़ी के पास उथले पानी में जहाजों के आवागमन लिए पूरे पाक स्ट्रेट पर एक शिप चैनल बनाना था। कांग्रेस का हिन्दू विरोधी चेहरे का तभी पता चल गया था जब राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्थान (एनआरएसए) की एक पुस्तक में रामसेतु के मानव निर्मित होने की संभावनाओ के उल्लेख के बाद भी तत्कालीन संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने 14 अगस्त, 2007 को राज्यसभा  में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए झूठा दावा कर डाला कि रामसेतु के संबंध में कोई पुरातात्विक अध्ययन नहीं किया गया है। ठीक वर्ष 2007 में ही कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किए एक हलफनामे में इस बात को भी स्वीकार किया था कि भगवान राम मात्र एक काल्पनिक चरित्र हैं।  तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के कारण इस बात को और बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया और पूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू का हवाला देते हुए कहा कि रामायण आर्य और द्रविड़ सभ्यताओं के बीच हुए युद्ध पर आधारित एक कहानी है।

करुणा निधि ने कहा, “भगवान राम एक काल्पनिक चरित्र हैं और रामसेतु मानव निर्मित पुल नहीं है। केन्द्र को सेतु समुद्रम नहर परियोजना को रोकने के लिए कुछ भी नहीं करना चाहिए।”

16 सितंबर 2007 को करुणा निधि ने बयान दिया कि, “कुछ लोग कहते हैं कि आज से 17 लाख साल पहले एक व्यक्ति था। उसका नाम राम था। उसके द्वारा बनाये गये रामसेतु को छूना मत। यह राम कौन है? और किस इंजीनियरिंग कॉलेज से इसने ग्रेजुएट की डिग्री ली है? क्या इसका कोई प्रमाण है?

इन सबके अलावा उस वक्त के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी अपना एजेंडा चलाने की भरपूर कोशिश की। अमेरिकन भारत-विद वेन्डी डोनिजर ने एक पुरातात्विक रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपनी पुस्तक ‘द हिन्दूज़, ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ में यह दावा किया कि रामसेतु वाली जगह पर कभी पुल मौजूद ही नहीं था। इसके अलावा डोनिजर ने मार्क्सवादी इतिहासकार रोमिला थापर के कथन का हवाला देते हुए यह भी कहा कि शताब्दियों ईसा पूर्व में इस तरह के पुल का निर्माण करना तकनीकी रूप से अव्यवहार्य था।

यहां आपको यह भी पता होना चाहिए कि इस परियोजना पर काम शुरू होने से रोकने में भाजपा नेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी का एक बड़ी भूमिका मानी जाती है। जब रामसेतु के इस हिस्से को उड़ाने से मात्र एक दिन पहले आरडीएक्स विस्फोटक तैयार किया जा रहा था, ठीक उसी वक्त एसएससीपी के खिलाफ सुनवाई के लिए डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका दायर हुई। जब सुनवाई शुरू हुई तो डॉ. स्वामी ने तर्क दिया कि भारत सरकार ने किसी अन्य मार्ग और इस मामले से जुडी लाखों हिन्दुओं की आस्था पर भी कोई विचार नहीं किया। डॉ. स्वामी की दलीलों से संतुष्ट होकर न्यायमूर्ति अग्रवाल ने रामसेतु को तोड़ने पर तत्काल रोक लगा दी।

इसके बाद वर्ष 2014 में भाजपा की सरकार बनी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘भगवान राम से संबन्धित पवित्र संरचना  किसी भी परिस्थिति में क्षतिग्रस्त नहीं होगी’। इसके बाद नवम्बर में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ केंद्रीय मंत्रियों की एक बैठक बुलाई और ये निष्कर्ष निकाला कि राम सेतु की अखंडता को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना को मंजूरी नहीं दी जाएगी। पिछले वर्ष ही केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य हलफनामा दायर किया गया जिसमें यह साफ किया गया कि रामसेतु को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी परियोजना को पारित नहीं किया जाएगा।

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रामसेतु कोई कल्पना नहीं बल्कि एक सच्चाई है। यह हिन्दू धर्म के महाकाव्यों के साथ-साथ विज्ञान भी साबित कर चुका है। पिछले वर्ष ही दिसंबर में साइंस चैनल ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था जिसमें यह बात कही गई थी कि रामसेतु मानवनिर्मित है क्योंकि वहां पर 4 हज़ार साल पुरानी चट्टानें और 7 हज़ार साल पुरानी चट्टानें एक साथ पड़ी हुई है, जो कि बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। इस अध्ययन में इस बात की तरफ इशारा किया गया था कि ये चट्टानें मानवों द्वारा समुद्र के इस हिस्से में लाई गई होगी। लेकिन वामपंथी गैंग ने अपनी तुष्टीकरण की राजनीति को साधने के लिए हमेशा से ही हिंदुओं को अपमानित करने का काम किया है। यही कारण था कि कभी देशभर में सत्ता को अपनी मुट्ठी में कैद करने वाली कांग्रेस को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ 44 सीटें मिली, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि कांग्रेस की मानसिकता में आज भी कोई खास बदलाव नहीं आया है।

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