कन्हैया के इंटरव्यू से रवीश कुमार के दोहरे रुख का हुआ खुलासा

रविश कुमार कन्हैया कुमार

(PC: Kohram News)

अपने आप को ‘निष्पक्ष’ होने का सर्टिफिकेट देकर खुद की पीठ थपथपाने वाले पत्रकार रवीश कुमार ने कुछ दिनों पहले ही जेएनयू छात्र संघ के विवादित नेता और राजद्रोह का मुकदमा झेल रहे कन्हैया कुमार का एक ‘दमदार’ इंटरव्यू लिया था। अपने ‘धाकड़ वक्ता कौशल’ से बड़े से बड़े विरोधियों के ‘छक्के छुड़ाने’ वाले कन्हैया के इंटरव्यू में सभी को यह आशा थी कि क्रांतिकारी पत्रकार ‘रवीश कुमार’ उनसे कुछ मुश्किल सवाल पूछेंगे, लेकिन कन्हैया से अपने पहले ही सवाल के बाद उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे भी अपनी गैंग के अन्य सदस्यों की तरह ही सिर्फ बातें बनाना जानते हैं। यही नहीं जब वो अपने वामपंथी गुट के साथियों का इंटरव्यू लेते हैं तो उस वक्त उनमें अलग ही तहजीब नज़र आती है।

दरअसल, कन्हैया कुमार की विवादित छवि को परे रखकर रवीश कुमार ने उनसे जो पहला प्रश्न पूछा, वो ये था कि ‘वो कब शादी कर रहे हैं।’ यह बात तो सबको ही पता है कि कन्हैया कुमार जेएनयू के छात्र नेता रहते हुए टुकड़े-टुकड़े गैंग के एक प्रमुख सदस्य रह चुके हैं, लेकिन रवीश कुमार इस बात को पूरी तरह नकारते नज़र आते और कन्हैया कुमार की ‘सादा जीवनशैली’ का भरपूर प्रचार करते नजर आए। रवीश कुमार जो सवाल कन्हैया कुमार से पूछ रहे थे, वो सुनने में भी बड़े हास्यास्पद लग रहे थे। वे बार-बार कन्हैया की गरीबी और उनके बेरोज़गार होने की बात को उठाते दिखे, हालांकि वे इस बात को भी भूल गए कि कन्हैया कुमार द्वारा दायर हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति को लाखों में दिखाया है।

बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाले पत्रकार रवीश कुमार अक्सर ही ‘गोदी मीडिया’ का ज़िक्र करते नज़र आ जाते हैं। कोई भी पत्रकार यदि सत्तासीन पार्टी के बारे में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है, तो तुरंत ये पत्रकार सक्रिय होकर उन्हें ‘गोदी मीडिया’ का सदस्य घोषित कर देते हैं। हालांकि, जब एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश द्वारा पीएम मोदी के इंटरव्यू को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उनपर ‘प्लाईएबल’ पत्रकार होने का आरोप लगाते हैं, तो वे उसपर अपनी चुप्पी साधकर अपने दोहरे मापदंड का उदाहरण पेश करते हैं।

हालांकि, यह पहली बार नहीं था जब रवीश कुमार ने अपनी पाखंडता को इतनी बेशर्मी से जाहिर किया हो। इससे पहले जब पुलवामा आतंकी हमले के दौरान कारवां पत्रिका ने शहीद होने वाले सैनिकों की जाति को जगजाहिर करने का घटिया काम किया था, तो भी वे रवीश कुमार ही थे जिसने इस पत्रिका के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम बड़ी शिद्दत से किया था।

रवीश कुमार ने पिछले दिनों मीडिया को यह भी ‘आदेश’ जारी किया था कि वह पुलवामा और एयर स्ट्राइक से जुड़ी किसी खबर को ना चलाए, क्योंकि इससे भाजपा को फायदा पहुंच सकता हैं। हालांकि, वे खुद कन्हैया कुमार के तथाकथित इंटरव्यू के माध्यम से उनका भरपूर चुनाव प्रचार करते नज़र आए। अगर एक नज़र उनके निजी व्यक्तित्व पर डाली जाए, तो भी वे कोई दूध के धुले नज़र नहीं आते। पिछले दिनों जब एक राहगीर ने उनको गाड़ी चलाते हुए फोन पर बात करते देखा तो उसने उनकी फोटो खींच ली, हालांकि यह रवीश कुमार को बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने उसके बाद उस राहगीर को जमकर डराने-धमकाने का काम किया। इतना ही नहीं, आरोप के मुताबिक रवीश कुमार की गाड़ी ने उनका 40 मिनट तक पीछा भी किया। रवीश कुमार के दोहरे मापदंड उनके व्यवसायिक जीवन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अपने निजी जीवन में भी उनकी करनी और कथनी में बड़ा फर्क नज़र आता है। 

 

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