राजद्रोह का मुकदमा झेल रहे कन्हैया कुमार की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं तो तभी सामने आ गयी थीं जब उसने सीपीआई की टिकट से बेगूसराय से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। कन्हैया कुमार जिस भूमिहार समाज से आता है उस समाज का बेगूसराय में वर्चस्व है और लगभग 5 लाख से ज्यादा वोटर्स के साथ इस समाज का जिले की राजनीति में खासा प्रभाव रहा है। इसी वजह से कन्हैया को यह सीट अपने लिए सबसे सुरक्षित लगी और यहां से अपना नामांकन दाखिल कर दिया। लेकिन राजद के एक फैसले ने कन्हैया कुमार के सांसद बनने के सपने पर पानी फेरने का काम किया है।
दरअसल, राजद ने भी बेगूसराय से अपने एक अन्य उम्मीदवार तनवीर हसन को मैदान में उतारा हुआ है। बेगुसराय की धरती से अपने सक्रिय राजनीति की शुरूआत करने वाले राजद के सबसे कद्दावर नेता तनवीर हसन1990 से लगातार 2014 तक विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। इसके अलावा वो जनता दल से लेकर राजद संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर अहम भूमिका भी निभा चुके हैं। ऐसे में बेगूसराय सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाने के पीछे भी उनकी मजबूत राजनीतिक छवि भी है। इस बार राजद के परंपरागत यादव वोटों के साथ-साथ जिले में 2 लाख मुस्लिम वोट भी हैं जिनको लेकर तनवीर हसन अपनी जीत को पक्का मान रहे हैं। दूसरी तरफ, भाजपा की ओर से गिरिराज सिंह यहां से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। गिरिराज सिंह भी भूमिहार समाज से आते हैं और भूमिहार समाज शुरू से ही भाजपा का समर्थन करता आया है। ऐसे में वोटबैंक के नाम पर कन्हैया कुमार के पास कोई विकल्प नहीं बचता है और उनका राजनीतिक करियर शुरू होने से पहले ही धराशायी होने का खतरा उनपर अब मंडराने लगा है।
आपको बता दें कि इससे पहले यह कयासें लगाई जा रही थी कि राजद के गठबंधन में सीपीआई भी शामिल हो सकती है लेकिन राजद के प्रवक्ता मनोज झा ने अब यह साफ किया है कि कन्हैया कुमार की वजह से सीपीआई और राजद का गठबंधन नहीं हो पाया। मनोज झा ने एक न्यूज एजेंसी से कहा कि ‘राजद बेगूसराय में बहुत मजबूत ताकत रही है। झा ने कहा कि तनवीर हसन की उम्मीदवारी को नजरंदाज करना आरजेडी के लिए असंभव था। पार्टी का काडर मजबूत है जो तनवीर हसन को चाहता था। मनोज झा का कहना है कि “ऐसा कुछ भी नहीं है जो हम नहीं कर सकते, सबकुछ हमारे कार्यकर्ताओं और लोगों पर निर्भर है। इसलिए, तनवीर हसन की जगह किसी और को उम्मीदवार बनाना गठबंधन न होने की वजह बना।“ राज ने तनवीर को बेगूसराय की सीट से उम्मीदवार बनाकर कन्हैया के राजनीतिक करियर पर पहले ही ग्रहण लगा दिया है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिस सीपीआई पार्टी से कन्हैया कुमार चुनाव लड़ रहा है, उस पार्टी का बेगूसराय में कोई वजूद नहीं है। वर्ष 1967 में सिर्फ एक बार सीपीआई यहां चुनाव जितने में सफल हो पाई थी लेकिन उसके बाद प्रत्येक चुनाव में उनकी पार्टी पिछड़ती गई। आपको जानकर हैरानी होगी कि सीपीआई बेगूसराय में इतनी कमज़ोर है कि वर्ष 1980, 1984, 1989, 1991, 1996 और वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में सीपीआई ने बेगूसराय से कोई उम्मीदवार तक खड़ा नहीं किया था। भूमिहार समाज भी हमेशा से भाजपा की विचारधारा से प्रभावित रहा है और उसी का समर्थन करते आया है। ऐसे में कन्हैया को अपनी जीत को लेकर इतना आशावादी नहीं होना चाहिए।
ऐसे में अब बेगूसराय में त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार एवं तनवीर हसन के बीच चुनावी जंग होने जा रही है। कन्हैया अपनी विवादित छवि होने की वजह से वे सीपीआई का दिल जीतने में तो कामयाब हो गए लेकिन यह तो नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा कि क्या वे वोटर्स का दिल जितने में कामयाब हुए हैं या नहीं।