अनुच्छेद 370 पर देशभर में जोरदार बहस जारी है। भाजपा ने कल जारी किए अपने घोषणापत्र में यह साफ किया है कि अगर वह दोबारा सत्ता में आती है तो वह कश्मीर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को हटाने का काम करेगी। भाजपा का कश्मीर को लेकर यह रुख शुरू से रहा है लेकिन अब चुनाव के समय में कश्मीर के अलगाववादी राजनेता कश्मीर की जनता को बरगलाकर उन्हें डराने धमकाने का काम करने लगे हैं। महबूबा मुफ़्ती ने फिर एक बार धमकी भरे शब्दों में कहा कि अगर अनुच्छेद 370 को हटाने का काम किया गया तो हिंदुस्तान मिट जाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी ट्वीट किया कि देश में मुसलमानों की मौजूदा हालात को देखकर स्वर्ग में बैठे गांधी जी अपने आंसू बहा रहे होंगे। महबूबा मुफ़्ती का यह ट्वीट हमें फिर एक बार इतिहास के उन पन्नों को पलटने पर मजबूर करता है कि आखिर किसकी वजह से भारत आज तक अनुच्छेद 370 नामक इस अभिशाप को भुगत रहा है, और इसको लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का क्या रुख था।
Somewhere in heaven, Gandhi ji is weeping looking at how muslims & other minorities are being harassed & punished in his beloved India. He wishes he hadn’t been shot by a Hindu fanatic. Maybe disaster could have been averted. https://t.co/ZeowN6oG0L
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) April 8, 2019
पिछले काफी समय से वामपंथी गुट के कुछ नेता अपने लेखों और किताबों के मध्यम से यह प्रोपेगेंडा पूरे देशभर में फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि खुद सरदार पटेल यही चाहते थे कि कश्मीर का विलय पाकिस्तान में कर दिया जाए। कश्मीर के कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज़ अपनी किताब ‘कश्मीर, ग्लिम्पस ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल’ के माध्यम से भी इसी एजेंडा को बढ़ावा देने की कोशिश कर चुके हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल यह कतई नहीं चाहते थे कि कश्मीर का विलय पाकिस्तान में हो। उनके एक भाषण से यह साफ होता है कि सरदार पटेल कश्मीर में हिंदुओं और सिखों के हो रहे कत्लेआम से काफी नाराज़ थे और उन्होने कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल किया जाना बिल्कुल नामंज़ूर था। इस भाषण में उन्होंने कहा था ‘कश्मीर की जमीन हम नहीं छोड़ने वाले हैं’।
हालांकि, कश्मीर को लेकर तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू की अपनी अलग ही नीति थी। उन्होंने ही कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले विवादित अनुच्छेद 370 को हरी झंडी दिखाई थी। दरअसल, पाकिस्तानी कबाइलों के हमले के बाद कश्मीर के राजा हरिसिंह ने भारत में शामिल होने की एवज में कुछ प्रावधान रखने का फैसला लिया। इसके प्रावधानों को शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें उस वक्त हरि सिंह और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। हालांकि, इस धारा का विरोध नेहरू के दौर में ही कांग्रेस पार्टी में होने लगा था। अनुच्छेद 370 भारत के साथ कश्मीर राज्य के संबंधों की व्याख्या करता है। जब इस अनुच्छेद को संविधान सभा में रखा गया तब नेहरू जी अमेरिका में थे, लेकिन फार्मूले के मसौदे पर पहले ही उनकी स्वीकृति ले ली गई थी। हालांकि सरदार पटेल के पत्र बताते हैं कि इस संबंध में उनसे कोई परामर्श नहीं किया गया था और इसे लेकर उनकी सहमति भी नहीं थी।
पीएम की गैर-मौजूदगी में सरदार पटेल ने अपने मत को परे रखते हुए नेहरू की सोच को रखा और खुद संविधान सभा को अनुच्छेद 370 को स्वीकार्यता देने के लिए मनाया। इसके पीछे उनका मकसद नेहरू की प्रतिष्ठा को कोई ठेस नहीं पहुंचाना था। हालांकि, वे स्वयं भी इसके खिलाफ थे। उन्होंने निराश होकर अपने निजी सचिव वी शंकर से कहा था कि ‘जवाहर लाल रोएगा’। सरदार पटेल एक दूरदर्शी नेता थे और वे भली-भांति जानते थे कि भविष्य में इसके घातक परिणाम होंगे, और हुआ भी यूं ही, आज भी भारत पंडित नेहरू द्वारा की गई गलतियों को भोग रहा है। जो लोग कश्मीर समस्या का ठीकरा सरदार पटेल पर फोड़ने का काम करते हैं, उन्हें उनके व्यक्तित्व पर थोड़ा अनुसंधान करने की आवश्यकता है।