अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, वो भी अपनी पसंदीदा सीट से चुनाव लड़ने की शर्त पर। कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद भी ये वही कर रहे हैं जो वो भारतीय जनता पार्टी में रहकर किया करते थे। वो अब लखनऊ लोकसभा सीट से सपा उम्मीदवार और अपनी पत्नी पूनम सिन्हा के लिए प्रचार कर रहे हैं। इस सीट से वर्तमान गृह मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह मैदान में हैं ,वहीं इस सीट से कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को मैदान में उतारा है। गुरुवार को जब पूनम सिन्हा के नामांकन और रोडशो में शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल हुए तो कांग्रेस उम्मीदवार को उनका ये रुख बिलकुल रास नहीं आया।
दरअसल,हाल ही में शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी समाजवादी पार्टी में शामिल हुईं हैं और वो लखनऊ सीट चुनाव लड़ेंगी। शादी के दौरान किये गये वादों के तहत वो अपनी पत्नी के लिए प्रचार करने के लिए मैदान में खड़े हुए हैं। जब उनसे सवाल किया गया कि आप कांग्रेस पार्टी में होकर एक सपा प्रत्याशी के लिए प्रचार क्यों कर रहे हैं ? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘मैंने शादी के वक्त सात फेरों में पत्नी का साथ देने की कसम खाई थी और यही वजह है कि कांग्रेस में होने के बावजूद मैं उनके प्रचार के लिए आया हूं।’ पूनम सिन्हा के नामांकन के दौरान भी अभिनेता सिन्हा मौजूद थे जिससे कांग्रेस उम्मीदवार आहत हुए थे और कहा था कि ‘शत्रु’ पार्टी धर्म निभाएं और मेरे लिए चुनाव प्रचार करें। कांग्रेस प्रत्याशी के इस बयान से शॉटगन भी आहत हुए और स्पष्ट शब्दों में कहा कि, ‘परिवार पहले, पार्टी बाद में’। शत्रुघ्न सिन्हा के लिए पार्टी और पार्टी धर्म बाद में है, स्वार्थ और परिवार सबसे ऊपर है। यही नहीं अपनी पत्नी पूनम सिन्हा की पार्टी की तारीफ करते हुए उन्होंने ये तक कह दिया कि ‘पीएम हो तो अखिलेश या मायावती जैसा हों जिनके अंदर काबिलियत और गुण हैं। काम करने की तत्परता है।’ अखिलेश यादव की तारीफों के पुल बांधते हुए सिन्हा ने ये तक कहा कि वो युवा शक्ति का प्रतीक हैं।
ठीक है शत्रुघ्न सिन्हा अपना पति धर्म निभा रहे हैं लेकिन कांग्रेस के नेता होते हुए भी राहुल गांधी को अनदेखा कर सपा और बसपा के तारीफों के पूल बांधने के क्या मायने हैं? क्या ये भी उनके प्रचार का हिस्सा है? या वो कांग्रेस में आकर अब इस पार्टी के लिए बागी हो गये हैं? अगर उनका रुख ऐसा ही रहा तो कांग्रेस उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में जरा भी देर नहीं करेगी।
शत्रुघ्न सिन्हा के बयानों से एक बात तो साफ़ है कि वो भी परिवारवाद और स्वार्थ की राजनीति में भरोसा करते हैं और अपनी पार्टी के विरोधी के लिए प्रचार करके वो ये साबित भी कर रहे हैं। वैसे भी शत्रुघ्न सिन्हा के इस रुख से कोई हैरानी भी नहीं होती है वो पार्टी हित से ज्यादा अपना हित देखते हैं। भारतीय जनता पार्टी में रहते हुए उनके बागी तेवर के पीछे भी यही वजह थी। पार्टी में रहते हुए भी अन्य मुद्दों से ज्यादा खुद को महत्व देते थे जिस वजह से उन्हें पार्टी में वो महत्व कभी नहीं मिला जो पार्टी में स्मृति ईरानी, पीयूष गोयल या अन्य वरिष्ठ नेताओं को मिला है।
अब कांग्रेस पार्टी में रहकर वो सपा का गुणगान कर रहे हैं। ऐसे में उनके रुख से साफ़ है कि वो राजनीति में रहकर देश सेवा से ज्यादा परिवार की सेवा और अपनी सेवा को ज्यादा तवज्जों देते हैं।