अखिलेश यादव ने यादवों को लुभाने के लिए अहीर रेजिमेंट का किया वादा

अखिलेश यादव अहीर

PC: Rediffmail

लोकसभा चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी ने अपना घोषणापत्र कल यानि शुक्रवार को जारी कर दिया। समाजवादी पार्टी ने इसके साथ ही ‘सामाजिक न्याय से महापरिवर्तन’ का नारा भी दिया, लेकिन अपने घोषणापत्र के जरिये समाजवादी पार्टी ने अपनी सोच में कोई परिवर्तन नहीं करने के संकेत दिये हैं। दरअसल, समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणापत्र के माध्यम से यादवों को लुभाने के लिए भारतीय सेना में एक अलग ‘अहीर रेजीमेंट’ को बनाने का वादा किया है। वे कई बार अपने बयानों से देश की सेना का मनोबल कम करने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन इस बार उन्होंने रेजीमेंट प्रणाली को अपना हथियार बनाया है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अहीर समाज के लिए एक अलग रेजीमेंट के मुद्दे को उठाकर ना सिर्फ भारतीय सेना का अपमान किया है बल्कि खुद अहीर समाज द्वारा देश की रक्षा के लिए दिए गये बलिदान को भी छोटा करने का काम किया है। दरअसल, भारतीय सेना में ब्रिटिश राज के समय से यह रेजीमेंट की प्रणाली चली हुई है और देश का एक जागरूक तबका इस प्रणाली को खत्म करने की बात पिछले काफी समय से कहता आया है। वास्तव में अखिलेश यादव अलग अहीर रेजीमेंट की घोषणा करके देश की सेना में भी जातिवाद  का जहर फैलाना चाहते हैं और सैनिकों में एक अलगाव की भावना पैदा करना चाहते हैं। इससे स्पष्ट है कि अखिलेश यादव जैसे नेता आज भी अपनी वोटबैंक की राजनीति को साधने के चक्कर में इन संवेदनशील मुद्दों पर भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का काम करने लगते हैं।

वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने इस घोषणा के बाद खुद यादवों और अहीर समाज का देश के प्रति बलिदान को छोटा करने का भी काम किया है। दरअसल, अखिलेश यादव के उनके इस वादे करने के पीछे यह तर्क हो सकता है कि इससे यादव समाज के लोगों को सेना में और मौके मिलेंगे और वे भी अपने देश की सुरक्षा में अपना योगदान दे सकेंगे। लेकिन देश की सेना में रहते हुए पहले ही यादव और अहीर समाज के जवान देश के लिए अपना खून बहाते आए हैं और उन्हें देश के लिए कुछ कर-गुजरने के लिए किसी तरह के आरक्षण या रेजीमेंट की कोई आवश्यकता नहीं। उदाहरण के तौर पर यादव समाज से परमवीर चक्र से सम्मानित योगेन्द्र सिंह यादव को ही ले लीजिये जिन्होंने कार्गिल युद्ध के दौरान घातक पलटून का हिस्सा रहते हुए पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाली ‘टाइगर हिल’ को वापस भारत में मिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें अपनी इस उपलब्धि को पाने के लिए किसी आरक्षण या रेजीमेंट की जरूरत नहीं पड़ी।

यादव समाज से ही एक और जवान बबरू भान यादव का नाम हमारे ज़हन में आता है, जिनको वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की सबसे ताकतवर नेवल रेजीमेंट, कराची नेवल बेस को तबाह करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे भारतीय नेवी में स्क्वाड्रन कमांडर के पद पर थे और अपनी नेतृत्व प्रतिभा से ही उन्होंने युद्ध में पाकिस्तान को पानी पिलाने का काम किया था। बाद में उन्हे महावीर चक्र से भी नवाज़ा गया था। इसके अलावा देश पर हुआ पुलवामा आतंकी हमला हो या उरी हमला, इनमें शहीद होने वाले सैनिकों में भी यादवों का नाम आता है। शहीद रमेश यादव से लेकर शहीद राजेश कुमार यादव तक, ये सभी सैनिक इसी समाज से तो थे। बार्डर पर लड़ते हुए भी हमारे देश के जांबाज सैनिक हरीन्द्र कुमार यादव ने अपनी जान को देश के नाम कर दिया था।

यादव समाज के सैनिकों का नाम अलग से लेने के पीछे हमारी मंशा किसी सैनिक की शहादत का अपमान करना नहीं है, बल्कि हम यह दिखाना चाहते हैं कि देश की सेवा करने के लिए किसी समाज के लोगों को किसी आरक्षण या एक अलग रेजीमेंट की कोई आवश्यकता नहीं होती। फिर भी देश के कुछ राजनेता अपनी वोट बैंक पॉलिटिक्स के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, और हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि कुछ लोग उनके इस प्रोपेगेंडा का शिकार भी बन जाते हैं, लेकिन हमारे लिए अच्छा यही होगा कि हम चुनावों के इस दौर में अपनी बुद्धिमता से काम लें। 

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