सुप्रीम कोर्ट की ओर से मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को ज़ोर का झटका दिया गया है। दरअसल, सरकारी नौकरियों में ओबीसी कोटे को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने वाले मध्यप्रदेश सरकार के अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने कमलनाथ सरकार को तलब किया है। एमपी सरकार के इस अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की गई थी जिसमें यह बताया गया था कि इस अध्यादेश के बाद राज्य में आरक्षण प्रतिशत 63 तक पहुंच जाएगा जो कि सुप्रीम कोर्ट के तय मानक 50 प्रतिशत के आंकड़े से ज्यादा है। चुनावी माहौल में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी को लुभाने के लिए इस अध्यादेश को स्वीकृत किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की इस तुष्टीकरण की राजनीति का भंडाफोड़ कर दिया।
आपको बता दें कि कमलनाथ सरकार द्वारा इसी वर्ष मार्च में इस अध्यादेश को लाया गया था जिसे बाद में मध्यप्रदेश के राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से स्वीकृति भी मिल गई थी। यह फैसला अंचार साहिता लागू होने के ठीक पहले लिया गया था। चुनावों से ठीक पहले ऐसे ऐलान करके एमपी सरकार ओबीसी वोटर्स को अपने पक्ष में करना चाहती थी। दरअसल, राज्य में ओबीसी कैटेगरी में आने वाले लोगों की आबादी 50 प्रतिशत तक है। इस अध्यादेश को स्वीकृति देते वक्त कमलनाथ ने कहा था कि इसकी वजह से कोई कानूनी संकट खड़ा नहीं होगा। साथ ही उन्होंने पिछली ‘शिवराज सरकार’ पर हमला बोलते हुए सवाल भी उठाया था कि अब तक ओबीसी के लोगों को यह लाभ क्यों प्रदान नहीं किया गया था।
यह तो स्पष्ट है कि, इस अध्यादेश को लेकर जारी कानूनी लड़ाई इतनी जल्दी हल नहीं होने वाली है। इससे पहले पिछले महीने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी कमलनाथ सरकार द्वारा लिए इस फैसले पर रोक लगा दी थी। यहां आपको बता दें कि वर्ष 1992 के इन्दिरा सोहनेय बनाम भारत सरकार के केस में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया था कि सरकारी नौकरियों में जाति-आधारित आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता। खुद एमपी की कांग्रेस सरकार यह जानती थी कि इस अध्यादेश पर कानूनी पेंच फंस सकता है, लेकिन अपनी तुष्टिकरण की राजनीति को साधने के लिए उन्होंने इन कानूनी अवरोध को नज़रअंदाज़ करने का फैसला किया।
इस पूरे प्रकरण को देखकर आप यह बड़े आराम से समझ सकते हैं कि कमलनाथ सरकार ने इन लोकसभा चुनावों में अपने कमजोर जनाधार को मजबूत करने के लिए यह ओबीसी कार्ड खेलने का दांव चला। पर अब उसका यह दाव फेल होता नजर आ रहा है। पहले हाई कोर्ट ने इस अध्यादेश पर रोक लगाकर, और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एमपी सरकार को तलब करके यह दर्शा दिया है कि अपनी इस तुष्टीकरण की राजनीति को करने में कमलनाथ सरकार सफल नहीं हो पाएगी।