देशभर में आज पहले चरण का मतदान जारी है, और इसमें महाराष्ट्र की वर्धा सीट भी शामिल है। वर्धा लोकसभा सीट राज्य के विदर्भ इलाके में पड़ती है, और इस इलाके की सबसे महत्वपूर्ण सीट भी मानी जाती है। परंपरागत तौर पर यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन पिछली बार यहां से भाजपा के उम्मीदवार रामदास तडस कांग्रेस के सागर मेघे को हारने में सफल हो पाए थे। पिछली बार की तरह ही इस बार भी यहां मोदी फैक्टर के काम करने के पूरे आसार हैं, जिसका फायदा बेशक भाजपा को पहुंचेगा। इस बार भाजपा की ओर से दोबारा रामदास तडस को मौका दिया गया है, जबकि कांग्रेस ने अब की बार चारुलता टोकस को मैदान में उतरा है। बहुजन समाज पार्टी ने भी यहां से अपना उम्मीदवार खड़ा किया हुआ है लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहने वाला है।
वर्धा लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो एक वक्त यह सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। यहां 38 साल से ज्यादा कांग्रेस का राज रहा। सबसे पहले चुनाव वर्ष 1951 में हुआ था और कांग्रेस के श्रीमन नारायण अग्रवाल यह चुनाव जीतकर आए थे। इसके बाद वर्ष 1957, 1962, 1967 में कमलनयन बजाज लगातार तीन बार चुनाव में जीते। फिर 1971 में जगजीवन गणपतराव कदम कांग्रेस की टिकट पर चुनकर आए। इसके बाद भी वर्ष 1977, 1980, 1984 , 1989, 1998, 1999 और वर्ष 2009 में यहां से कांग्रेस ही जीती। भाजपा को यहां पहली बार कामयाबी वर्ष 1996 में मिली जब विजय मुड़े ने यहां से चुनाव जीता। इसके बाद वर्ष 2004 और वर्ष 2014 में फिर यहां से भाजपा के उम्मीदवार जीते। अब फिर से भाजपा के रामदास तडस यहां अपने विरोधी को पटखनी दे सकते हैं, क्योंकि पिछले चुनावों में वे एकतरफा जीतकर आये थे। कुल पड़े मतदान में से उन्हें लगभग 53 फीसदी वोट मिली थी, जबकि दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार को मात्र 32 प्रतिशत वोट ही मिल पाई थी।
वर्धा लोकसभा सीट के अंतर्गत चार विधानसभा सीट आती हैं, जिनमें से दो सीट भाजपा के पास हैं तो वहीं 2 सीट कांग्रेस के पास, जिससे यह साफ होता है कि इस बार भाजपा कांग्रेस को पूरी तरह नज़रअंदाज नहीं करेगी। वर्धा की हिंगनघाट और वर्धा सीट भाजपा के पास है, जबकि देवली और अरवी सीट पर कांग्रेस का कब्ज़ा है। जिले के वर्धा विधानसभा क्षेत्र में कुणबी व तेली जाति मतदाताओं की बहुलता रहने से अक्सर इसी जाति के उम्मीदवारों को वोट मिलते हैं। देवली विधानसभा क्षेत्र में कुणबी, तेली, दलित जाति के मतदाता अधिक रहने से जाति निहाय प्रत्याशी को वोट पड़े हैं। हिंगनघाट विधानसभा क्षेत्र में कुणबी, तेली, दलित जाति के मतदाता अधिक है। अरवी विधानसभा क्षेत्र में भी कुणबी, भोयर-पवार समाज के मतदाता बहुलता से है। कुल मिलाकर इस वर्धा लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण अहम् भूमिका निभाने हैं लेकिन साल 2014 में मोदी फैक्टर ने पूरा समीकरण ही बदल कर रख दिया था। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यहां के वोटर्स अब की बार किसपर अपना विश्वास जताते हैं।