एग्जिट पोल्स के मुताबिक देश में फिर एक बार मोदी सरकार बनने जा रही है। एग्जिट पोल के नतीजों में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में भाजपा को भारी बहुमत मिलते दिखाया गया है। एग्जिट पोल्स के अनुसार बिहार में भाजपा और जेडीयू गठबंधन 40 में से 35 से ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। इंडिया टुडे के सर्वे में तो एनडीए को 39 सीटें मिलते दिखाया गया है। बिहार में शुरू से ही जाति-आधारित पॉलिटिक्स का बोलबाला रहा है, और इसी राजनीति की वजह से लालू प्रसाद यादव और नितीश कुमार जैसे नेताओं का उदय हुआ। लेकिन इन एग्जिट पोल्स ने यह साफ कर दिया है कि बिहार के वोटर्स ने इन चुनावों में जाति-आधारित पॉलिटिक्स को पीछे छोड़कर विकास के मुद्दे पर अपना वोट डाला है।
90 के दशक से पहले बिहार में कांग्रेस सरकारों का ही राज रहा था, लेकिन उसके बाद राज्य में कई क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ, जिनका मुख्य वोटबैंक जाति-आधारित था। वर्ष 1990 के विधानसभा चुनावों में जनता दल को राज्य में बहुमत मिला और कांग्रेस राज खत्म हुआ। जनता दल को राज्य की पिछड़ी जातियों के साथ-साथ मुस्लिमों का भरपूर समर्थन मिला था। बाद में जनता दल टूटकर जब राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) में बंटा, तो भी दोनों राजनीतिक पार्टियों का जनाधार जाति आधारित ही था। नितीश कुमार को राज्य के कुर्मी वोटर्स का समर्थन मिला तो वहीं लालू प्रसाद यादव को राज्य के यादव वोटर्स का साथ मिला। इसके अलावा मुस्लिमों ने भी इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों को समर्थन दिया था। कुल मिलाकर शुरू से ही ‘जाति-फ़ैक्टर’ बिहार की राजनीति के केंद्र में रहा है।
इस साल के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल साथ मिलकर चुनाव लड़े थे, और यह अटकलें लगाई जा रही थी कि महागठबंधन को राज्य के यादव, कुशवाहा और हरिजनों और मुस्लिमों का समर्थन मिल सकता है। राज्य में यादवों वोटर्स की संख्या लगभग 14.4 प्रतिशत है, जबकि राज्य में मुस्लिम वोटर्स भी लगभग इसी तादाद में हैं। पारंपरिक तौर पर नितीश कुमार को मुस्लिम वोटर्स का समर्थन मिलता आया है, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार एनडीए में जाने की वजह से मुस्लिम वोटर्स ने उनसे दूरी बना ली और उन्होंने महागठबंधन के लिए वोट किया। ऐसे में यादव वोटर्स भी अगर महागठबंधन का साथ देते तो एग्जिट पोल्स के नतीजों में हमें इसका असर जरूर दिखाई देता, लेकिन एग्जिट पोल्स में महागठबंधन को सिर्फ 5 से 6 सीटें मिलते दिखाया गया है। स्पष्ट है कि यादव वोटर्स ने अब की बार यादव परिवार को वोट ना देकर बल्कि विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया है जो कि बिहार की राजनीति में एक बड़ा और सकारात्मक बदलाव है।
दरअसल, यादव अब समझ चुके हैं उन्हें वर्षों तक जाति के नाम पर बरगलाया जाता रहा लेकिन विकास के नाम पर उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा। अब वो भी एक मजबूत राष्ट्र चाहते हैं जहां सभी के साथ न्याय हो और सभी का विकास हो। वो चाहते हैं कि उन्हें भी वो सभी सुविधाएं मिलें, जो देश के बाकी राज्यों के लोगों को मिलती हैं न कि एक परिवार और पार्टी तक सीमिति रह जायें।
बता दें कि लोकसभा चुनावों के पहले ही राजद समेत महागठबंधन की ताकत रहे ‘यादव’ वोटरों ने चौकीदार का समर्थन करने के संकेत दिए थे। उनके इस रुख में बदलाव के पीछे उनका राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के मुद्दों के प्रति बढ़ता झुकाव था। लोकसभा चुनावों से पहले इन इलाकों में ‘मोदी यादव जिंदाबाद…मोदी यादव की पुकार, बच्चा—बच्चा चौकीदार!’ जैसे नारे भी खूब सुनने को मिले थे। स्पष्ट रूप से ये राजद के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है जो जाति के नाम पर वोटबैंक की राजनीति करती आई है।
एग्जिट पोल्स के नतीजों से साफ़ है कि इस बार बिहार के मतदाताओं ने खासकर यादव समुदाय ने जातिगत आधारित पारिवारिक पॉलिटिक्स को पूरी तरह नकार दिया है। यही कारण है कि जातीय समीकरण के महागठबंधन के पक्ष में होने के बावजूद उसे राज्य में करारी हार का सामना करना पड़ सकता है।