लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं, और एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा समर्थित एनडीए गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल करते हुए 340 से ज़्यादा सीटों पर बढ़त हासिल की है। इसमें स्वयं भाजपा ने 296 से ज़्यादा सीट प्राप्त कर अपने दल पर बहुमत प्राप्त कर चुकी है। इतना ही नहीं, इन रुझानों के अनुसार कांग्रेस समर्थित यूपीए गठबंधन इस बार 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाये।
इस चुनाव के परिणाम से दो बातें सामने आती हैं : गांधी परिवार के बिना कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं है, और गांधी परिवार के साथ कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है। मौजूदा रुझानों के अनुसार कांग्रेस को केवल 53 सीट पर बढ़त मिली है, और तो और 20 से ज़्यादा राज्यों में तो इनका खाता तक नहीं खुला। इतना ही नहीं, इनके प्रतिष्ठित किले अमेठी में भी सेंध हो चुकी है, और ताज़ा रुझानों के अनुसार स्मृति ईरानी लगभग 7500 से ज़्यादा वोटों से वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष एवं अमेठी से सांसद राहुल गांधी से आगे चल रही हैं। और तो और, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को केवल रायबरेली की संसदीय सीट पर बढ़त प्राप्त हुई है। इनके अलावा उत्तर प्रदेश के किसी भी सीट पर कांग्रेस विजय प्राप्त करना तो दूर, विपक्षी पार्टी को कांटे की टक्कर भी नहीं दे पायी है।
अपनी राजनीति में वंशवाद को योग्यता के ऊपर तरजीह देने की ज़िद ने कांग्रेस पार्टी को न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी करारी हार झेलने पर मजबूर कर दिया। तमाम प्रयासों के बावजूद न तो अशोक गहलोत के पुत्र वैभव, और न ही सिंधिया रजवाड़े के सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी सीट जीतने में कामयाब हो पाये। केवल कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ ही अपनी छिंदवाड़ा सीट बचाने में कामयाब हो पाये। इसके अलावा दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान जैसे कई राज्यों में कांग्रेस एक अदद सीट तक बचाने में असफल रही।
इन परिणामों से न केवल कांग्रेस पार्टी, अपितु उसके टॉप लीडरशिप पर भी कई अहम सवाल खड़े करती थी। इन परिणामों से एक बात तो तय है, कि अब कई मामलों में नेहरू गांधी परिवार की राय पार्टी में सर्वमान्य तो कदापि नहीं होगी। कई विशेषज्ञों का यह मानना है की सोनिया गांधी को पार्टी की कमान दोबारा मिलनी चाहिए।
हालांकि न तो अब सोनिया पहले की तरह शक्तिशाली है, और न ही वो इस उम्र में पार्टी को अच्छे से सम्भाल पाने सफल होंगी। ऐसे में कांग्रेस पार्टी की वापसी के अब दूर दूर तक कोई आसार नहीं है। कुछ दशक पहले तक लगभग समूचे भारत पर राज करने वाली कांग्रेस का अब राष्ट्रीय महत्व लगभग समाप्त हो चुका है। ऐसे में अब कांग्रेस पार्टी का भविष्य क्या होगा इसका अंदाजा अभी से अप भी लगा सकते हैं और कांग्रेस पार्टी इन नतीजों पर क्या प्रतिक्रिया देती है ये देखना दिलचस्प होगा।