शर्मनाक! क्या सावरकर वीर नहीं हैं? तो फिर राजस्थान में कांग्रेस सरकार क्यों बता रही उन्हें कायर

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(PC: Asian Age)

इतिहास को अपने नजरिये से तोड़-मरोड़ कर पेश करना कांग्रेस सरकारों की फितरत रही है चाहे फिर उससे हमारी गौरवशाली संस्कृति को धक्का ही क्यों ना पहुंचे। आजादी के बाद से ही कांग्रेस सरकारों ने पाठ्यपुस्तकों में इस तरह का इतिहास परोसा जो वामपंथी विचारधारा से प्रभावित था। केंद्र व राज्यों में जब भाजपा शासित सरकारें आईं तो इन सरकारों ने पाठ्यपुस्तकों के विवादित अंशों में बदलाव किया लेकिन अब सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकारें फिर से पाठ्यपुस्तकों में अपनी विकृत मानसिकता के साथ बदलाव कर रही है। ऐसा ही अब राजस्थान में देखने को मिल रहा है।

राजस्थान में सत्ता में आने के बाद से पुरानी भाजपा सरकार के कई फैसले पलट चुकी कांग्रेस ने अब स्कूली पाठ्यपुस्तकों को निशाना बनाया है। गहलोत सरकार ने अब स्कूली पाठ्यक्रम में सावरकर की जीवनी वाले हिस्से में ही बदलाव कर दिया है। हिंदुत्व के अनुयायी और पोषक विनायक दामोदर सावरकर को तीन साल पहले बीजेपी सरकार में तैयार पाठ्यक्रम में महान देशभक्त, वीर और महान क्रांतिकारी बताया गया था। अब कांग्रेस शासन में इस स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है जिसमें सावरकर को वीर नहीं बताकर जेल की यातनाओं से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार से दया मांगने वाला बताया गया है।

बीजेपी के पाठ्यक्रम में यह पढ़ाया गया

बीजेपी सरकार के समय पाठ्यक्रम में सावरकर को महान क्रांतिकारी बताया गया था। वीर सावरकर की जीवनी में लिखा गया था कि, ‘वे महान क्रांतिकारी, महान देशभक्त और महान संगठनवादी थे। उन्होंने आजीवन देश की स्वतंत्रता के लिए तप और त्याग किया। उसकी प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती। सावरकर को जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया। अर्थात वे वीर सावरकर कहलाए।’

कांग्रेस कर रही अब यह बदलाव

अब कांग्रेस सरकार ने सावरकर की जीवनी में बड़ा ही खतरनाक बदलाव किया है। कांग्रेस ने एक तरह से वीर सावरकर को बदनाम करने का काम किया है। बदले पाठ्यक्रम में लिखा है कि, ‘जेल के कष्टों से परेशान होकर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के पास चार बार दया याचिकाएं भेजी थीं। इसमें उन्होंने सरकार के कहे अनुसार काम करने और खुद को पुर्तगाल का पुत्र बताया था। ब्रिटिश सरकार ने याचिकाएं स्वीकार करते हुए सावरकर को 1921 में सेलुलर जेल से रिहा कर दिया था और रत्नागिरी जेल में रखा था। यहां से छूटने के बाद सावरकर हिंदु महासभा के सदस्य बन गए और भारत को एक हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की मुहिम चलाते रहे। दूसरे विश्वयुद्ध में सावरकर ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया। वर्ष 1942 में चले भारत छोड़ो आंदोलन का सावरकर ने विरोध किया था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन पर गोडसे का सहयोग करने का आरोप लगाकर मुकदमा चला। हालांकि बाद में वे इससे बरी हो गए। सावरकर ने अभिनव भारत की स्थापना 1906 में की थी।’

कांग्रेस सरकार द्वारा इस तरह सावरकर की जीवनी में अपनी विकृत मानसिकता के साथ बदलाव करना एक शर्मनाक कदम है। बीजेपी ने कांग्रेस के इस कदम पर कड़ा ऐतराज जताया है। पूर्व शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि वीर सावरकर हिंदुत्व से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस हमेशा हिंदुत्व से घृणा करती है। इसलिए यह वीर सावरकर का कद छोटा करने की कोशिश है। क्रांतिकारियों को सिलेबस में इसलिए शामिल किया जाता है कि बच्चे उनसे प्रेरणा ले सके। लेकिन तथ्यों को तोड़ मरोड़कर इस प्रकार उनका अपमान ठीक नहीं है। विवाद बढ़ा तो गहलोत सरकार के शिक्षा राज्यमंत्री ने कहा, ‘समिति ने तैयार किया है सिलेबस, इसमें कोई राजनीति नहीं की।
सिलेबस की समीक्षा के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था। उसी के प्रस्तावों के अनुसार सिलेबस तैयार हुआ है। इसमें किसी प्रकार की कोई राजनीति नहीं की गई है। फिर भी अगर सिलेबस को लेकर कोई मामला सामने आएगा तो उसको दिखावा लिया जाएगा।‘

विनायक दामोदर सावरकर को वीर कहने की बजाय शर्मनाक तरीके से उन्हें दया की भीख मांगने वाला बताना कांग्रेस का एक शर्मनाक कदम है। इसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है।

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