भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है जहां के लोगों को हर पांच वर्षों में अपनी नई सरकार चुनने का मौका मिलता है। किसी भी लोकतंत्र में वोट, यानि मत को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी के माध्यम से देश की जनता अपने नई मुखिया को चुनती है। राजधानी दिल्ली के लोगों ने भी 12 मई को अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। हालांकि, शाम को जब वोटिंग टर्नआउट के आंकड़े सामने आए, तो वे सभी को निराश करने वाले थे। दिल्ली में कुल मिलाकर लगभग 60.5% मतदान हुआ जो वर्ष 2014 के मुक़ाबले 5 प्रतिशत कम रहा। राजधानी होने के नाते दिल्ली के लोगों को देश के बाकी लोगों के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए था, लेकिन वोटिंग टर्नआउट के शर्मनाक नतीजे आने के बाद दिल्लीवासियों को अब आत्मचिंतन करने की सख्त जरूरत है।
दिल्ली की चांदनी चौक और उत्तर-पूर्व दिल्ली लोकसभा सीटों पर 62 प्रतिशत से ज़्यादा मतदान दर्ज़ किया गया जबकि नई दिल्ली लोकसभा सीट पर सबसे कम 56.5 प्रतिशत मतदान हुआ। वर्ष 2014 में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर लगभग 65% मतदान हुआ था जबकि इस बार यह आंकड़ा सिर्फ 60% के आसपास रहा। दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी रणबीर सिंह ने भी इसपर अपनी निराशा व्यक्त की। उन्होंने बताया कि उनके डिस्ट्रिक्ट लेवल के अधिकारियों ने वोटर्स को वोट डालने के लिए प्रेरित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसके अलावा चुनाव आयोग ने सार्वजनिक पार्क्स और सार्वजनिक वाहनों पर वोट करने से संबन्धित विज्ञापन भी लगवाए थे। निर्वाचन आयोग ने वोटर्स को प्रोत्साहित करने के लिए ढेरों कार्यक्रम भी चलाये। हालांकि, चुनाव के दिन दिल्ली के लोग बड़ी बेशर्मी से अपनी छुट्टी का आनंद उठाते नज़र आए और देश का नागरिक होने के नाते अपनी एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाने से नदारद दिखे। देश की राजधानी में रह रहे लोगों का ये गैर-जिम्मेदाराना रवैया देश के भविष्य के लिए बिलकुल सही नहीं है। अगर देश की राजधानी की जनता ही अपने कर्तव्यों का पालन करना नहीं जानती तो उन्हें देश के उन राज्यों से सीख लेनी चाहिए जो अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए।
देश के बड़े शहरों की बात करें तो दिल्ली के अलावा बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहरों के वोटर्स भी मतदान को लेकर कुछ खास उत्साहित नहीं दिखे। बंगलुरु और हैदराबाद में मतदान प्रतिशत का आंकड़ा 50 भी पार नहीं कर पाया। दोनों शहरों में लगभग 47 प्रतिशत मतदान दर्ज़ किया गया। इसके अलावा चेन्नई की तीन लोकसभा सीटों पर औसत मतदान लगभग 59% हुआ। शहरी आबादी को देश का शिक्षित वर्ग समझा जाता है, और ऐसे में शहरी वोटर्स से भारी मतदान की आशा की जाती है, लेकिन लोकतन्त्र में अपनी सक्रिय हिस्सेदारी ना निभाकर यह वर्ग हर बार सबको निराश करता है।
चुनाव के दिन वोटर्स की सहूलियत के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है लेकिन चुनाव के दिन को मात्र एक छुट्टी समझकर मौज उड़ाने वाले लोगों की मानसिकता किसी भी लोकतन्त्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत के लोकतन्त्र और मतदान प्रक्रिया की पूरी दुनिया में सराहना की जाती है। वोटर्स की सक्रिय भागीदारी ही भारत के लोकतन्त्र को दुनिया के अन्य लोकतन्त्र से मजबूत बनाती है। ऐसे में शहरी लोगों को दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक महापर्व में हिस्सा लेकर बाकी देश के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की आवश्यकता है।