जब लोकसभा चुनाव शुरु होने में कुछ ही दिन बचे थे, हमारे देश ने कई ऐसे बुद्धिजीवियों को देखा जिन्होंने राजनीतिक विशेषज्ञों का भेष बनाकर प्रोपगैंडा चलाया था और देश की जनता को भाजपा विरोधी ट्रेंड दिखाने का बीड़ा अपने सिर पर उठा लिया था। हालांकि, जनता के फैसले ने इन्हीं स्वघोषित लेफ्ट लिबरल्स को करारा जवाब भी दे दिया
353 सीटों की विशाल विजय के साथ जनता ने एक बार फिर भाजपा युक्त एनडीए गठबंधन पर अपना विश्वास दिखाया है। सच्चाई से कोसों दूर होने के नाते इन राजनीतिक विशेषज्ञों पर जनता का सवाल उठाना लाज़मी है की क्या वे निहायती बेवकूफ़ थे या फिर जनता को बरगलाने की नापाक कोशिश को अंजाम देने में लगे हुए थे।
इन छद्म विशेषज्ञों ने ‘इस बार देश में मोदी लहर नहीं है’ को समझाने के लिए लम्बे चौड़े विश्लेषण किए थे। इनके अनुसार जिस मोदी लहर के दम पर भाजपा ने एक दशक बाद सत्ता में वापसी दर्ज़ कराई थी, वो अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है।
ऐसे ही अपने राजनीतिक सूझबूझ के लिए जाने जाने वाले राजनीतिक पत्रकार तुफैल अहमद ने भी भविष्यवाणी की थी। इनके अनुसार भाजपा का कई अहम राज्यों में हारना तय था, जिनमें राजस्थान, गुजरात, एमपी, महाराष्ट्र इत्यादि शामिल है। इसी के साथ तुफ़ैल की माने तो भाजपा का उत्तर प्रदेश से सूपड़ा साफ होना तय था। पर परिणाम के बाद की तस्वीर तो कुछ और ही बताती है।
The states where @tufailelif predicted massive losses delivered 230 out of 248 seats . pic.twitter.com/yfbu81JDs4
— mayurwrites (@freentglty) May 25, 2019
जाने माने राजनीतिक विशेषज्ञ योगेंद्र यादव कई लोगों को नोटा दबाने के लिए अपील कर रहे थे, और ये भी भविष्यवाणी की इस बार भाजपा को 200 सीट भी नहीं मिल सकेगी।
Where BJP stands in 2019:
East: small gains
West+South: small losses
These cancel each otherHindi belt: massive losse (about 50 seats each in UP and other Hindi states)
Overall: BJP well below 200 https://t.co/eSm2UqP0Mp
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) November 9, 2018
बात यहीं नहीं रुकी, काउंसिल ऑन फ़ोरेन रिलेशन्स [भारत एवं दक्षिण एशिया] की सीनियर फैलो अलीसा आयर्स ने टाइम मैगज़ीन में एक लेख प्रकाशित किया कि ‘क्यों नरेंद्र मोदी की पार्टी इस बार भारतीय चुनावों में अभेद्य नहीं लगती?’ इनके विश्लेषण के अनुसार भाजपा लोगों को किसी भी प्रकार की आर्थिक सुविधा दिलाने में न सिर्फ नाकाम रही है, बल्कि धर्म आधारित राष्ट्रवादी एजेंडा चलाने में व्यस्त रही है, जो कई लोगों को सही नहीं लगेगा। इनके अनुसार, इन सभी कारणों से आम जनता एक अलग नेता को चुन सकते थे।
पर इन सभी एक्सपर्ट विश्लेषणों पर लोकसभा चुनावों ने पानी फेर दिया। परिणाम घोषित होने से पहले ही ये साफ हो चुका था कि भाजपा इस बार भी विजयी रहेगी। लेफ्ट लिबरल बिरादरी भी इस बात से अछूती नहीं थी और उन्होंने जनता का इस बात से ध्यान भटकाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया। पर अब यह बात सिद्ध हो चुकी है कि इन सभी का ‘मोदी तो गया’ का प्रपंच सिर्फ और सिर्फ छलावा था, जनता की भावनाओं या तथ्यों का उचित विश्लेषण का परिणाम नहीं था।
यह लिबरल बुद्धिजीवी कई बार भाजपा को बुद्धिजीवी विरोधी कहते हैं लेकिन इन पांच सालों में लेफ्ट लिबरल्स से ज़्यादा इनके ज्ञान का दिवालियापन शायद ही किसी और का हुआ होगा। देश की नब्ज़ पकड़ने के लिए बुद्धिजीवी होना ज़रूरी नहीं, उन्हें सिर्फ जनता के मूड का विश्लेषण करने की जरूरत है, जिसमें ये लेफ्ट लिबरल पूरी तरह फिसड्डी साबित हुये हैं। उन्हें अपना मत रखने का पूरा हक है, पर उसे जनता का मूड बताना कतई अच्छी बात नहीं। इन खोखले दावों से यही साबित होता है कि इन ‘राजनीतिक विशेषज्ञों’ का सत्य या जनता की नब्ज़ समझने से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। ऐसे में लिबरल बिरादरी के इन राजनीतिक विशेषज्ञों को अब सन्यास ले लेना चाहिए।