पूरे देश में आईसीसी क्रिकेट विश्व कप 2019 के लिए ज़बरदस्त उत्साह है। इंग्लैंड और वेल्स में संयुक्त रूप से आयोजित होने वाले इस टूर्नामेंट का हाल ही में उदघाटन समारोह इंग्लैंड में आयोजित किया गया। पर यहां पाकिस्तानी मूल की मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई ने भारत के लिए जो बोल बोले, उससे एक बात तो साफ हो गयी कि आखिर किसी भी पाकिस्तानी के लिए भारत की वैश्विक स्तर पर बेइज्जती करना क्यों इतना ज़रूरी है। चाहे खुद के देश में इन्हें मानव अधिकार तक न मिले, पर भारत का मजाक उड़ाना कुछ ज्यादा ही पसंद करते हैं।
हाल ही में इंग्लैंड में क्रिकेट विश्व कप के लिए आयोजित किए गये एक उदघाटन समारोह में पहले टूर्नामेंट में भाग ले रही 10 टीमों के कप्तानों से दर्शकों को परिचित कराया गया। इसके पश्चात एक दोस्ताना 60 सेकंड का क्रिकेट चैलेंज कराया गया। यहां भारत का प्रतिनिधित्व पूर्व क्रिकेटर अनिल कुंबले एवं प्रख्यात अभिनेता फरहान अख्तर ने किया, पर उनका प्रदर्शन काफी खराब रहा और वे महज 19 रन ही बना पाये।
पाकिस्तान थोड़ा बेहतर प्रदर्शन करते हुए 38 रन बनाने में सफल रहा, और सभी टीमों में 7वां स्थान प्राप्त किया। जहां भारतीय टीम ने इस खेल को एक अच्छी भावना के साथ एन्जॉय किया, वहीं मलाला पाकिस्तान के खराब प्रदर्शन को सही ठहराने के लिए भारत का ही मखौल उड़ाना शुरू कर दिया। मलाला के अनुसार, ‘पाकिस्तान, हमने इतना भी बुरा नहीं खेला। सातवें स्थान पर रहे। पर कम से कम हिंदुस्तान की तरह आखिरी स्थान पर तो नहीं आए।’
इतना ही नहीं, मलाला ने आगे ये भी कहा कि वे उम्मीद करती हैं की यह खेल लोगों में एकता लाये और इसे सही भावना से खेला जाये। एक ही बयान में इतना पाखंड? मलाला यह कैसे सोच सकती है कि यह खेल लोगों में एकता लायेगा जब वो खुद हल्के फुल्के खेलों में अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते हुए वैमनस्य की भावना को बढ़ावा दे रही हैं। मलाला का यह बयान न केवल ओछा है, बल्कि पाखंड से भरा है।
गौर करने वाली बात तो यह है कि मलाला महिला क्रिकेट को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वहां मौजूद थी, और अपने ही उद्देश्य को दरकिनार करते हुए वे एक दोस्ताना खेल में भी पाकिस्तान की श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगी हुई थी। चूंकि वे नोबल शांति पुरस्कार विजेता भी रह चुकी हैं, इसलिए ऐसे बयान बिलकुल भी स्वीकार नहीं किए जा सकते।
पाकिस्तान की पैरवी के बहाने भारत की बेइज्जती करना किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं है, और ऐसा करके मलाला अपने ही ढोंगी स्वभाव का परिचय पूरी दुनिया को दे रही हैं। पाकिस्तान वही देश है जिसने मलाला को शिक्षा के मूल अधिकार से वंचित रखा, और यदि वे वास्तव में शांति की दूत है [जिसके लिए उन्हें पुरस्कार लेने में कोई संकोच नहीं हुआ], तो उन्हें पाकिस्तान के कुकृत्यों की भर्तस्ना करनी चाहिए, न कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेवजह लज्जित करने का कम। वैसे भी पाकिस्तान का आतंकियों से जो नाता दुनिया को पता चला है उसके बाद तो नोबल शांति पुरस्कार विजेता होने के नाते मलाला को पाकिस्तान का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए।
पर चूंकि मलाला ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है, तो इससे ये बात तो साफ ज़ाहिर है कि वे अभी भी पाकिस्तान से बहुत प्रेम करती हैं ये जानने के बावजूद की यही देश कभी उनकी जान के पीछे पड़ा था। राष्ट्रवाद व्यक्त करने में कोई हानि नहीं है, और यदि ऐसा है, तो मलाला को अब लंदन की ऐशो आराम की ज़िंदगी छोड़कर पाकिस्तान वापिस आ जाना चाहिए। लेकिन वो ऐसा करेंगी नहीं क्योंकि अधिकांश मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरह मलाला भी एक ढोंगी है, और कुछ नहीं।