जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने एक बार फिर धर्म की आड़ में राज्य में आतंकियों की वकालत की है। महबूबा मुफ़्ती ने एक बार फिर सेना से रमजान के महीने में सीज़फायर करने की अपील की है। महबूबा मुफ़्ती ने केंद्र सरकार को धमकी दी कि, अगर वह जम्मू-कश्मीर की रियासत को अपने साथ मिलाकर रखना चाहते हैं तो उन्हें लोगों की भावनाओं का सम्मान करना होगा। आपको बता दें कि महबूबा मुफ़्ती के आग्रह पर पिछले साल केंद्र सरकार ने रमजान के महीने में सीज़फायर का ऐलान किया था और इस निर्णय के बाद रमजान के महीने में आंतकी हमलों में इजाफा देखने को मिला था। लेकिन महबूबा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने चुनावी समय में अपनी कम्यूनल पॉलिटिक्स का दांव खेलकर फिर यह स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए उग्रवादियों का तुष्टिकरण देश की सुरक्षा से बड़ा है।
See how Mehbooba Mufti took Atal Bihari Vajpayee's name to defend terrorists. pic.twitter.com/HVWD2RZ5nb
— Zee News English (@ZeeNewsEnglish) May 5, 2019
महबूबा मुफ़्ती ने बड़ी ही बेशर्मी से अपना एजेंडा साधने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपई का नाम का भी इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा ‘पीएम मोदी अक्सर अटल जी की इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत की नीति को फॉलो करने की बात कहते हैं, अब उन्हें रमजान के महीने में सीज़फायर का ऐलान करके इस बात को साबित करना चाहिए’। हालांकि, यह बयान देते वक्त महबूबा इस बात को भूल गई कि इसी नीति का अनुसरण करते हुए पिछले वर्ष भारत सरकार और सेना ने कश्मीर में युद्धविराम की घोषणा की थी, जिसके बदले में भारतीय सेना को अपने 17 जवान खोने पड़े थे। 2017 के रमजान की तुलना में 2018 में 7 गुना से ज्यादा आतंकी घटानाएं सामने आईं थीं। पिछले साल रमजान के दौरान हुए 66 हमलों में 17 जवान शहीद हुए थे। शहीद औरंगजेब की हत्या भी रमजान के इसी पवित्र महीने में की गई थी। वहीं, जवाबी कार्रवाई में 22 आतंकी मारे गए थे।
मुफ़्ती ने भारत सरकार के साथ-साथ आतंकियों से भी ‘इस महीने’ कोई आतंकी हमला ना करने का अनुरोध किया। हालांकि इस दौरान उनकी जुबान लड़खड़ाती नज़र आई। उन्होंने कहा, ‘मैं मिलिटेंट्स को भी यह गुजारिश करना चाहूंगी कि यह महीना हमारी इबादत का महीना होता है, इस महीने उनको कोई आतंकी हमला नहीं करना चाहिए’। हैरत की है कि, यह बयान देते हुए उनकी जुबान लड़खड़ा रही थी। महबूबा मुफ़्ती का यह बयान उनकी देश-विरोधी छवि को जाहिर करने के लिए काफी है। वे आतंकियों से सिर्फ रमजान के महीने के दौरान ही कोई हमला ना करने को कहती हैं, जबकि राज्य के एक नेता के तौर पर उन्हें ये कहना चाहिए था कि आतंकियों को आतंक का रास्ता छोडकर कभी भी किसी हिंसक घटना को अंजाम नहीं देना चाहिए।
यहां यह सवाल भी उठना जायज़ है कि जब आतंक का कोई धर्म ही नहीं होता, तो हर बार रमजान के महीने में ही युद्धविराम की मांग को क्यों उठाया जाता है? यह भी एक बड़ा सवाल है। मुफ्ती द्वारा आतंकियों के लगातार महिमामंडन का ही यह नतीजा है कि ये आतंकी सेना पर हमला करने का भी हौसला कर लेते हैं। भारत सरकार को मुफ्ती के ऐसे किसी भी झांसे में नहीं आना चाहिए।