वर्ष 2014 के आने के बाद मोदी सरकार का सबसे ज्यादा फ़ोकस देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने पर था। जब सरकार सत्ता में आई थी तो देश का आर्थिक ढांचा बेहद कमजोर था जिसे मजबूत करने के लिए मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों को अंजाम देने का बीड़ा उठाया। मोदी सरकार ने देश की आर्थिक विकास दर को डबल डिजिट यानि कम से कम 10 प्रतिशत पर ले जाने का लक्ष्य रखा। पिछले पांच सालों में पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार ने जीएसटी एक्ट को लागू करने से लेकर, दिवालिया कानून को पारित करने तक, कई बड़ी कामयाबी हासिल की। इसमें कोई शक नहीं है कि पिछले पांच सालों में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण ही आज भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर लगातार अग्रसर है।
यही कारण है कि देश के वोटर्स ने मोदी सरकार पर अपना भरोसा जताते हुए दोबारा भाजपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका दिया है। अब मोदी सरकार भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह आर्थिक सुधारों पर और ज़्यादा बल देकर भारत की विकास दर को 10 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाए। इसके लिए मोदी सरकार को अपने दूसरे कार्यकाल में पांच बड़े आर्थिक सुधार करने की आवश्यकता है।
1) विनिवेशिकरण
मोदी सरकार को सबसे पहले सार्वजनिक क्षेत्र से विनिवेश करने के लिए अलग से एक मंत्रालय बनाना चाहिए, ताकि सरकार जल्द से जल्द नुकसान झेल रही कंपनियों में निवेश किए गए पैसों का विनिवेशिकरण कर सके। बता दें कि देश में कुल 331 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां यानि CPSEs हैं, जिसमें वर्ष 2017 के अंत तक भारत सरकार ने 12 लाख 50 हज़ार 373 करोड़ रुपयों का भारी–भरकम निवेश किया है। इन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में से बीएसएनएल, एयर इंडिया, और महानगर टेलीकॉम निगम लिमिटेड जैसी कंपनियां सरकार के लिए बोझ बनी हुई है, क्योंकि ये कंपनियां सरकार के लिए मुनाफे की बजाय नुकसान अर्जित कर रही हैं और इन कंपनियों में बड़ी मात्रा में सरकारी पैसे का दुरुपयोग होता है। स्थिति लगातार बिगड़ते ही जा रही है। आलम यह है कि वर्ष 2007-08 में नुकसान अर्जित करने वाली कंपनियों की संख्या जहां सिर्फ 54 थी, वहीं वर्ष 2016-17 में इस कंपनियों की संख्या 82 तक पहुंच गई। प्रधानमंत्री मोदी इस दिशा में पहले ही अपनी सरकार का रुख स्पष्ट कर चुके हैं। पीएम मोदी ने एक बार कहा था ‘व्यवसाय करना सरकार का व्यवसाय नहीं है’।
यह लगभग तय हो गया है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अरुण जेटली की खराब सेहत की वजह से उनको वित्त मंत्रालय का पदाभार नहीं सौंपा जाएगा और पीयूष गोयल को वित्त मंत्री बनाया जा सकता है। पीयूष गोयल खुद निजीकरण व्यवसाय के सबसे बड़े पक्षधर रहे हैं, और उन्होंने ही भारतीय रेलवे में बड़े पैमाने पर निजीकरण को स्वीकृति दी थी। अब इस बात की पूरी संभावना है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में निजीकरण को और ज़्यादा बढ़ावा दिया जाएगा। इसके संकेत मोदी सरकार पहले ही दे चुकी है। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2018-19 में केंद्र सरकार ने 80 हज़ार करोड़ रुपये का विनिवेशिकरण करने की योजना बनाई थी, लेकिन इस वर्ष सरकार द्वारा तय सीमा से 5 हज़ार करोड़ ज़्यादा यानि कुल 85 हज़ार करोड़ रुपये का विनिवेशिकरण किया गया। इसी तरह वित्त वर्ष 2017-18 में विनिवेशिकरण की सीमा 72 हज़ार 500 करोड़ राखी गई थी जबकि कुल 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का विनिवेशिकरण किया गया। यानि सरकार अपनी ही तय की हुई सीमा से ज्यादा विनिवेशिकरण कर रही है जो यह दर्शाता है कि सरकार निजीकरण की योजना को लेकर काफी गंभीर है और जल्द से जल्द नुकसान उठाने वाली कंपनियों में से अपने पैसे को निकालना चाहती है।
2) जीएसटी में सुधार
जीएसटी को सफलतापूर्वक लागू करने का मुश्किल काम सरकार पहले ही कर चुकी है। जीएसटी के माध्यम से अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एक बड़ा सुधार हुआ है। अब सरकार को चाहिए कि रियल एस्टेट, बिजली, ईंधन और अल्कोहल को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए और टैक्स की 5 स्लैब्स (शून्य , 5%, 12%, 18% और 28%) को कम करके तीन स्लैब्स तक लाया जाए।
3) नया श्रम कानून
मोदी सरकार को इसके बाद श्रम कानून में बड़े बदलाव करने की सख्त जरूरत है। कहने को तो इस वक्त देश में श्रम संबन्धित 37 केंद्रीय कानून हैं, लेकिन क़ानूनों में जटिलता होने की वजह से ना तो कभी इन क़ानूनों को सही से लागू किया गया, और ना ही पालन! आज़ादी के बाद मार्क्सवादी नीतियों का अनुसरण करने वाली सरकारों ने ‘पूंजी’ से ज़्यादा ज़ोर ‘श्रम’ करने पर दिया। इसके बाद आई सरकारों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लिए ढेरों क़ानून पारित कर डाले लेकिन श्रमिकों की शारीरिक (मानसिक) और वित्तीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। मोदी सरकार को पुराने और जटिल क़ानून की जगह नए कानून बनाने की आवश्यकता है जो नई चुनौतियों और मुश्किलों का सही से निवारण कर सके।
4) निवेश बाज़ार में अतिरिक्त सुरक्षा
सरकार को वित्तीय क्षेत्रीय में कई अहम बदलाव करने की जरूरत है ताकि व्यवसायों को सस्ते दरों पर पूंजी उपलब्ध कराई जा सके। भारत में ‘कॉस्ट ऑफ कैपिटल’ दुनियाभर के कई देशों के मुक़ाबले काफी ज़्यादा है। हालांकि, जबसे शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने हैं, तब से केंद्रीय बैंक लैंडिंग रेट्स को लेकर काफी उदार हुआ है। अब सरकार को निवेश बाज़ार में भी निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि लोग अपनी जमा की गई राशि को बाज़ार में निवेश कर सकें। इससे भारत की अर्थव्यवस्था को जोरदार बल मिलेगा। इससे कंपनियों को पूंजी के लिए बैंकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
5) नया जमीन अधिकरण कानून और कृषि क्षेत्र के लिए नई नीति
इसके अलावा मोदी सरकार को कृषि और जमीन संबंधी क्षेत्रों पर भी फ़ोकस करने की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर देश में जमीन अधिग्रहण से संबन्धित कानून बड़े जटिल हैं और सरकार द्वारा जमीन का अधिग्रहण करना एक बड़ा कठिन काम है। इसकी वजह से सरकार की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं अधर में लटक जाती हैं। सरकार को इसके लिए नए कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि जमीन अधिग्रहण जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता आ सके। कृषि क्षेत्र की बात करें तो भारतीय जीडीपी में इस क्षेत्र का 18 प्रतिशत योगदान रहता है और भारत की आधी से ज़्यादा कार्यकारी जनसंख्या (Working Population) कृषि क्षेत्र में काम करती है। सरकार को चाहिए कि कृषि क्षेत्र पर दबाव कम किया जाए और अधिक से अधिक लोगों को सर्विस सैक्टर में रोजगार दिया जाए।
मोदी सरकार को इन पांच क्षेत्रों पर और ज़्यादा ज़ोर देने की आवश्यकता है ताकि जल्द से जल्द भारत का वित्तीय क्षेत्र विकसित हो सके। अगर भारत को अपनी विकास दर ड़बल डिजिट पर लेकर जानी है तो सरकार द्वारा इन क्षेत्रों में निर्णायक कदम उठाना बहुत ज़रूरी है। हमें पूरी उम्मीद है कि नई सरकार इन पहलुओं पर अवश्य काम करेगी।