दिल दहला देने वाले 26/11 के मुंबई हमलों में तत्कालीन मुख्यमंत्री की भूमिका को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बार रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ये सवाल उठाए हैं। पीयूष गोयल पीयूष गोयल ने पंजाब के लुधियाना में बिजनस कम्युनिटी को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं मुंबई से हूं। आप 26/11 के आतंकवादी हमले को याद कर सकते हैं। तत्कालीन कांग्रेस सरकार कमजोर थी और कुछ भी नहीं कर सकी। उस समय अंदर गोलीबारी और बमबारी हो रही थी लेकिन उस समय के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ओबेरॉय होटल के बाहर एक फिल्म प्रड्यूसर को ले गए। वह अपने बेटे को फिल्म में रोल दिलाने को लेकर ज्यादा परेशान थे।’
रेल मंत्री के इस बयान के बाद विलासराव देशमुख के बेटे रितेश देशमुख ने अपने ट्विटर हैंडल पर गोयल का नाम लिए बगैर एक नोट में लिखा, ‘पूर्व मुख्यमंत्री पर सवाल उठाना आपका अधिकार है लेकिन जो व्यक्ति अपना बचाव करने के लिए इस दुनिया में ना हो उन पर इस तरह की टिप्पणी करना गलत है।’ रितेश ने आगे कहा, ‘ये सच है कि मैं अपने पिता के साथ उस दिन ताज/ओबेरॉय होटल गया था। लेकिन उस वक्त नहीं जब गोलीबारी हो रही थी। ये झूठ है कि वो उस दौरान मुझे किसी फिल्म में रोल दिलाने की कोशिश कर रहे थे। मेरे पिता ने कभी भी डायरेक्टर्स या प्रोड्यूसर्स के पास मेरी सिफारिश नहीं की।’
— Riteish Deshmukh (@Riteishd) May 13, 2019
रितेश के इस ट्वीट के बाद पीयूष गोयल ने रितेश देशमुख को कड़े शब्दों में जवाब दिया। उन्होंने मीडिया में कहा, ‘मैंने रितेश देशमुख के ट्वीट को देखा, उन्होंने कहा कि, वह घटना के अगले दिन उस जगह गए थे। मैं इससे सहमत हूं, लेकिन ऐसी भयावय घटना के बाद फिल्म निर्माता के साथ वहां जाना भयानक था। किसी को भी उच्च-सुरक्षा क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री के पुत्र होने के कारण अनुमति मिली। 2013 में एक फिल्म के आने के बाद उनकी यात्रा के इरादे स्पष्ट हो गए थे।’ पीयूष गोयल ने आगे कहा, ‘2013 में, फिल्म एक ही निर्माता द्वारा बनाई गई थी, हालांकि शायद सार्वजनिक दबाव के कारण रितेश ने मूवी में अभिनय नहीं किया। एक अपराध स्थल पर, केवल फॉरेंसिक टीम और सुरक्षा बलों को जाने की अनुमति दी जाती है, फिर उसे वहां जाने की अनुमति क्यों दी गई, हम अपराध से संबंधित महत्वपूर्ण सुराग खो सकते थे।’
बता दें कि, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का कार्यकाल भ्रष्टाचार के मामलों से भरा रहा है। विलासराव देशमुख का नाम आदर्श हाउसिंह सोसाइटी घोटाले, सुभाष घई की व्हिसलिंग वुड्स को जमीन आवंटित करने में अनियमितताओँ सहित कई मामलों में सामने आया था। उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट किया था कि फिल्म निर्माता सुभाष घई के प्रशिक्षण संस्थान द्वारा हस्ताक्षरित समझौता अवैध, मनमाना और गैरकानूनी था। यह भी सामने आया था कि, देशमुख ने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया, अवैध रूप से समझौते के कागजात पर हस्ताक्षर किए और संस्थान को अनुचित लाभ दिया। ये सब बातें कहीं ना कहीं पीयूष गोयल के दावों की पुष्टि ही करती हैं। पिछले कुछ दिनों से एक विशेष वर्ग के मीडिया द्वारा यह चलन चलाया गया है कि, किसी बड़ी शख्सियत के मरने के बाद उनकी बुराइयों या अपराधों का खुलासा नहीं करना चाहिए। यह चलन एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कहीं से भी जायज नहीं है। लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए सार्वजनिक जीवन जीने वाली सख्सियत की विरासत वाद-विवाद का हिस्सा होना ही चाहिए और उस पर आवश्यक हो तो आलोचना भी की जानी चाहिए।