हिंदू मतदाताओं में ध्रुवीकरण का स्तर बढ़ा है: प्रणॉय रॉय

प्रणॉय रॉय हिंदू पत्रकार

PC: Performindia

पीएम मोदी जबसे सत्ता में आये हैं तबसे ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि मानों उनके हर कदम से.. ‘मीडिया की स्वतंत्रता खतरे’ में है, देश में ‘ध्रुवीकरण’ को बढ़ावा मिल रहा है, जातिगत राजनीति और ‘धर्म की राजनीति बढ़ी है’..पिछले पांच सालों में ऐसी खबरें अक्सर ही सोशल मीडिया और  टीवी पर सुनने और देखने को मिलती हैं। हालांकि, सच क्या है और किन नेताओं ने इसे बढ़ावा दिया है ये किसी से छुपा नहीं है। फिर भी मीडिया का एक धड़ा सच की जगह बस अपना एजेंडा साधने के लिए झूठी या ऐसी पक्षपाती खबरों को अपने प्राइम टाइम में जगह देते हैं जिसका मकसद आम जनता को सिर्फ गुमराह करने का होता है। बरखा दत्त, रविश कुमार, सागरिका घोष जैसे कुछ ऐसे वरिष्ठ पत्रकार हैं जिन्हें धर्म और जातिगत स्तर की पत्रकारिता के आलावा कुछ सूझता ही नहीं हैं। जिस तरह से वामपंथी पत्रकारों ने ‘निष्पक्षता’ के नाम पर निम्न स्तर की पत्रकारिता की है वो बेहद शर्मनाक है। इन पत्रकारों का सॉफ्ट टारगेट हमेशा से ही हिंदू रहे हैं और कई मौकों पर हमें ये देखने को भी मिला है। दरअसल, एनडीटीवी के एंकर रविश कुमार के बाद अब इसी मीडिया संस्थान के मालिक प्रणॉय रॉय भी खुलकर अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए सामने आये हैं। अब उनकी इस पत्रकारिता को आप भाट पत्रकारिता कहना चाहते हैं या वाट ..ये आप इस पूरी खबर के बाद खुद तय कीजियेगा।

दरअसल, एनडीटीवी के मालिक प्रणॉय रॉय के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनावों में हिंदू मतदाताओं में ध्रुवीकरण का स्तर बढ़ा है। उन्होंने मनी कण्ट्रोल को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है कि, “देश के कई बड़े और छोटे गावों में हम गये और इस यात्रा के आधार पर जो चीज हमने सबसे ज्यादा मजबूत पायी वो है हिंदू मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण का बढ़ना जो हमने इससे पहले कभी नहीं देखा था।” अब वो यहां किस ध्रुवीकरण की बात कर रहे हैं? उसकी जहां आज की आधुनिक आम जनता को धर्म और जाति से ज्यादा देश की सुरक्षा और विकास रास आ रही है? या उसकी जहां उनके बार बार कथित स्वस्थ, निष्पक्ष और साहसी” पत्रकारिता से भी वो हिंदुओं को बांट नहीं पा रहे हैं? वास्तव में उन्हें अगर किसी चीज से परेशानी है तो वो है आज की जनता का जागरूक होना और देश के लिए एक ऐसे नेता का समर्थन करना जो न सिर्फ वादे करता है बल्कि उन्हें निभाने के लिए पूरे प्रयास भी करता है। ऐसे में वो भाट और वाट पत्रकारिता दोनों कर रहे हैं जिससे वो अपना एजेंडा साध सकें और इन्हें ही कहते हैं एजेंडावादी पत्रकार। वास्तव में अब मीडिया का एक धड़ा ‘माध्यम’ से ज्यादा एजेंडावादी और देश विरोधी पत्रकारिता तक ही सीमित रह गया है। ये अब सरकार, संस्थान, समाज या किसी व्यक्ति से जुड़ी हर महत्वपूर्ण सूचना पाठक या दर्शक तक पहुंचाने का काम छोड़कर बस अपने मालिकों को खुश करने में व्यस्त है। इसके लिए वो अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को दागदार करने में भी नहीं झिझकते हैं।

इसका उदहारण हमें कठुआ रेप मामले में भी देखने को मिला था..हमने देखा था किस तरह से एक आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने की बजाय बरखा दत्त, सदानंद धूमे और राजदीप सरदेसाई जैसे कुछ पत्रकारों ने इसे हिंदू धर्म से ही जोड़ दिया था। वास्तव में ये पत्रकार सिर्फ भारत की एकपक्षीय नकारात्मक कहानी ही दुनिया को बताते हैं और ये आज से ही नहीं हो रहा बल्कि सालों से होता रहा है। ऐसा ही कुछ प्रणॉय रॉय ने भी किया। अब केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ अपनी नफरत में हिंदुओं को बरगलाने की इनकी कोशिशें नाकाम हो रही हैं।

कुछ उदहारण तो आपको यूं ही सोशल मीडिया पर मिल जायेंगे जहां आप देखेंगे कि कैसे वो आम जनता से जातिय आधार पर अपना नेता चुनने की बात कह रहे हैं लेकिन जनता है कि बस विकास का समर्थन करते हुए नजर आ रही है। ऐसे ही एक वीडियो में सभी लोग मोदी द्वारा किये गये कार्यों की सराहना कर रहे हैं लेकिन प्रणॉय रॉय इसे भी जाति से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। वो पूछ रहे हैं कि बनिया और ब्राहमण कितना प्रतिशत वोट मोदी को करेंगे लेकिन जनता कह रही है कि वो सभी विकास करने वाले नेता यानि कि पीएम मोदी को ही वोट करेंगे।

ऐसे ही एक और वीडियो में जहां युवक एक मजबूत नेता की मांग कर रहा है ..वाराणसी में हुए बड़े बदलाव की सराहना कर रहा है लेकिन इससे भी प्रणॉय रॉय को इतनी तकलीफ हुई कि इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताने से वो बाज नहीं आये।

अब इन वीडियोज को देखकर आप ही बताएं कि क्या यहां हिंदुओं का वास्तव में ध्रुवीकरण हुआ है या प्रणॉय रॉय जैसे पत्रकारों की विचारधारा में ही कुछ गड़बड़ है.. हालाँकि, इतने जवाब मिलने के बावजूद कुछ ऐसे वामपंथी पत्रकार अपने हित को साधने के लिए ऐसे लोगों की तलाश में हैं जो इनकी मानसिकता को सही ठहराए और अगर ऐसा नहीं होता है तो ‘लोकतंत्र खतर में है’ ‘ध्रुवीकरण हो रहा’, देश धर्म के आधार पर बंट रहा है ..जैसा राग अलापना शुरू कर देते हैं। सच कहूं तो जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय मीडिया हमेशा से ही भारत को हीन नजरिये से देखता है वैसे ही ये कुछ ऐसे पत्रकार हैं जो हिंदुओं के प्रति अपने कुंठित विचारधारा को ही दुनिया के सामने रखते हैं और उसे ही सही मानते हैं। वास्तव में सालों से हिंदू सिर्फ इस तरह के पत्रकारों के निहित स्वार्थ और इनकी सीमित विचारधारा के शिकार ही बनें हैं लेकिन अब वो जागरूक हुए हैं जिस वजह से इन पत्रकारों के मंसूबों पर न सिर्फ पानी फिर रहा है बल्कि इन्हें आम जनता की आलोचना भी खूब मिल रही है।

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