‘बिग डाटा’ के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है

एग्जिट पोल बिग डाटा

PC: Amar Ujala

दुनिया में बेवकूफ बनाने की एक कला बहुत पहले से चली आ रही है, मासूम लोगों के मुह पर खींच खींच कर बड़े बड़े टेक्निकल शब्द फेंको जनता अपने आप सच मान लेगी। ऐसा ही एक बड़ा टेक्निकल शब्द है ‘बिग डाटा’। आज कल चुनावी मौसम मे ‘बिग डाटा’ के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। पहले ये जान लेते हैं की बिग डाटा आखिर किस चिड़िया का नाम है फिर आएंगे हम राजनैतिक विश्लेषण पर और साथ में चुनावी एक्स्पर्ट्स का झूठ भी उजागर करेंगे। तो मित्रों बिग डाटा कुछ भी नहीं है बस डाटा है बस फर्क इतना है कि यहां डाटा थोड़ा ज़्यादा है। बिग डाटा डाटा के उन विशाल समूहों को कहते हैं जिसका इस्तेमाल करके पैटर्न और प्रवृत्तियों का एक नक्शा सा बनाया जा सके। खास कर के उन पट्टेर्न्स का जिससे लोग क्या खरीदना चाहते हैं, क्या देखना चाहते हैं, क्या सुनना चाहते हैं और कौन सा नया प्रॉडक्ट चाहते हैं, उसकी थोड़ी जानकारी मिल सके। तो बिग डाटा का चुनाव से क्या सरोकार? हम बताते हैं। Anthro.ai नामक एक नया प्रॉडक्ट आया है बाज़ार मे, जिसकी मानें तो वो चुनाव का ठीक-ठीक विश्लेषण कर सकता है। ये प्रोडक्ट इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव की भविष्यवाणी करने के अति दुष्कर कार्य मे लगा है और इसकी मानें तो भाजपा यहां 15-20 से ज़्यादा सीटें नहीं जीत सकती। वहीं, अखिलेश और मायावती का महागठबंधन 40-55 सीटें लपेटेगा। अब इस प्रोडक्ट ने इतनी निश्चितता के साथ ऐसा कैसे भविष्यवाणी कर दिया, कोई न कोई लॉजिक तो होगा ही?   

इसका जवाब है वही, जी हाँ वही – बिग डाटा। अब आपके दिमाग में भी वही सवाल होगा जो मेरे दिमाग में था कि बिग डाटा का डाटा कहां से आया इसका जवाब है डाटा वहीं से आया जहां से हर एक्ज़िट पोल का डाटा आता है यानि की वोटरों से और चुनाव अधिकारियों से पूछ ताछ करके। अब आपको चुनावी बिग डाटा थोड़ा फर्जी लग रहा होगा, लेकिन अभी तो कहानी शुरू ही हुई है।

भारत मे कुछ क्रूर सामाजिक परिस्थितियां है जिसके कारण एक्ज़िट पोल के नमूनों से पूरा चुनाव प्रेडिक्ट करना बेवकूफी है। भारत मे चुनाव सिर्फ एक व्यक्ति नहीं पूरा समूह करता है। मान लीजिये मैं बिहार के एक कांग्रेसी मोहल्ले के कांग्रेसी परिवार में पैदा हुआ एक भाजपाई हूं। और चुनाव के बाद अगर कोई पोल्ल स्तर मुझसे पूछे कि “भैया केकरा के भोट डालल?, तो मैं भी यही कहूंगा कि “कांग्रेस न त अऊर कऊन।“ अगर भाजपा बोलूंगा तो परिवार निकाला पहले और मोहल्ला निकाला बाद में। और ये तो बहुत क्यूट एक्जाम्पल है, भारत के कई राज्यों मे लीक से हट कर वोट डालने पर ये बात पता चल जाने पर जान तक चली जाती है, तो यहीं एक्ज़िट पोल का गणित खराब हो जाता है क्योंकि भारत एक विशाल देश हैं। जहां हजारों मुहल्लों के लाखों परिवारों में करोड़ो लोग हैं और सिर्फ उनकी बोली हुई बात को सच मानना बेवकूफी है। और दूसरी बात है हमारा “मैं तेरे को क्यू बताऊँ बे’ एट्टीट्यूड, मैंने वोट डाला अपनी मर्ज़ी से, तो आप क्यों सवाल जवाब कर रहे हैं, अक्सर खीज कर और कभी कभी मज़े लेने के लिए लोग प्रेम से झूठ बोलते हैं जिससे पहले से घटिया एक्ज़िट पोल का स्तर और भी गिर जाता है। तो ऐसे में अगर कोई बिग डाटा का हवाला देके 1 चरण पहले चुनावी परिणाम घोषित कर दे तो आप उसे कहिए कि आप …. हैं, ये जो रिक्त स्थान था इसमें अपना मनपसंद विशेषण घुसेड़ दीजिये।

अब आते हैं इस प्रोडक्ट के पिताजी पर। इस प्रोडक्ट के पीछे दिमाग है श्रीमान राहील खुर्शीद जी का। राहील जी पहले टिवीटर इंडियन के पॉलिसी हेड थे और इस स्थान पर विराजमान रहकर भी भाजपा और हिंदु विरोध की हर सीमा का उल्लंघन किया करते थे। आइये उनके कुछ ट्वीट्स पर नज़र डालते हैं।

तो कैसे लगे खुर्शीद साहब आपको। अब अगर खुर्शीद साहब सरीखे लोग बिग डाटा के पीछे छुप के चुनावी विश्लेषण करे तो आपको क्या करना चाहिए। नहीं इग्नोर नहीं करना चाहिए, आपको हसना चाहिए और साथ मे जब मौका मिले जवाब भी देना चाहिए।

दोस्तों चुनावी विश्लेषण एक पुरेली टेक्निकल सबजेक्ट हैं यहाँ भावनाओं का कोई स्थान नहीं। यहाँ सिर्फ नंबर है और नंबर कभी झूठ नहीं बोलते। आज कल के एग्जिट पोल स्टार्स की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि वो विश्लेषक कम और पार्टियों के एजेंट ज़्यादा है। अगर आप बहुत समय तक किसी चीज़ के सच होने की कामना करते हैं तो वो आपको सच होती सी दिखने लगती है। अब सोचिए कोई लिबरल एग्जिट पोल स्टार्स जो बस यही चाहता है कि कांग्रेस जीते और भाजपा हारे उसे हर कोमा फुल स्टॉप मे भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत ही दिखेगी। इसे अंग्रेजी में कन्फ़र्मेशन बायस कहते हैं। ये लोग अपनी थ्योरी में इतना ज़्यादा विश्वास करने लगते हैं कि किसी और थ्योरी के लिए कोई स्थान ही नहीं बचता है। ये वही लोग हैं जो काँग्रेस जीतेगी…भाजपा हारेगी का राग आलाप रहे हैं। जबकि वस्तु-स्थिति किसी और तरफ ही इशारा कर रहा है। इनपर दया करने की भी ज़रूरत हैं क्योंकि ये किसी मानसिक बीमारी से कम नहीं है। लेकिन आप के लिए बस एक ही संदेश है की जब कोई आड़े टेढ़े लॉजिक दें, बड़े बड़े टेक्निकल जारगन फेके तो समझ जाइए की यहाँ सच कम है और शोर ज़्यादा। बिग डाटा सिखाएँगे!

Exit mobile version