एग्जिट पोल्स के नतीजों के बाद रोहित सरदाना ने रवीश कुमार को दिया करारा जवाब

रविश कुमार रोहित सरदाना

एग्जिट पोल्स के नतीजों ने देश की लेफ्ट लिबरल गैंग की रातों की नींद उड़ा दी है। कुछ स्वघोषित और निष्पक्ष पत्रकारों ने तो अब एग्जिट पोल्स के खिलाफ ही जंग छेड़ दी है। क्रांतिकारी पत्रकार रवीश कुमार ने तो इन एग्जिट पोल्स के बहाने मेनस्ट्रीम मीडिया पर ही बिकाऊ होने के आरोप लगा डाला। कुछ दिनों पहले उन्होंने सभी न्यूज़ चैनल पर भाजपा के लिए प्रचार करने का भी आरोप लगाया था। हालांकि, आज तक के वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना ने अब उनको ऐसा मुंडतोड़ जवाब दिया है कि अगले कुछ महीनों तक रवीश कुमार अपने मुंह से मुख्यधारा मीडिया के खिलाफ शायद ही कोई शब्द निकाल पाएं।

दरअसल, कुछ दिनों पहले रवीश कुमार ने कुछ एंकर्स और न्यूज़ चैनल के मालिकों पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्होंने भाजपा के लिए इतनी शिद्दत से मेहनत की है कि उन्हें मोदी सरकार की कैबिनेट में शामिल कर लेना चाहिए। रवीश कुमार ने अपनी इस टिप्पणी के माध्यम से मेनस्ट्रीम मीडिया पर तंज कसने की कोशिश की थी, लेकिन उनका यह तंज़ उनपर तब भारी पड़ गया जब रोहित सरदाना ने उनको उन्हीं की भाषा में करारा जवाब दिया।

यूट्यूब पर लाइव शो के दौरान उनसे एक दर्शक ने पूछा कि उनके एग्जिट पोल्स की वजह से कुछ पत्रकार बहुत गुस्से में हैं, उसपर उनका क्या कहना है। इसपर रोहित सरदाना ने कहा ‘भाई साब! ऐसा है वो तो वैसे भी गुस्से में रहते हैं। आज वो कह रहे हैं कि कुछ मीडिया एंकर और न्यूज़ चैनल मालिकों को मंत्री बना देना चाहिए, क्यों? उस दिन तो मीडिया एंकर मंत्री नहीं बने थे जब वे न्यूज़रूम में बैठकर मंत्रीमण्डल डिसाइड करते थे। हैलो गुलाम! और बताते थे उनको कि फलाने को मंत्री बना दो, और उस फलाने को मंत्री मत बनाना। तब न न्यूज़रूम से मंत्री बनाए गए उनसे?’ 

बड़ी-बड़ी बाते करने वाले रवीश कुमार बेशक आज नैतिक मूल्यों के बात कर रहे हों, लेकिन ये वही ‘निष्पक्ष’ पत्रकार हैं जिन्हें कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के महागठबंधन की एक चुनावी रैली के दौरान समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं के साथ मंच साझा करते देखा गया था। हालांकि, रोहित सरदाना ने रवीश कुमार को एक्सपोज करने के लिए जिस तरह ‘राडिया टेप्स केस’ का उदाहरण दिया, वह वाकई रवीश कुमार की बोलती बंद करने वाला था। बता दें कि राडिया टेप्स विवाद ने यूपीए राज के दौरान उच्च राजनीतिक फैसलों में कुछ पत्रकारों का प्रभाव होने की बात का खुलासा किया था। नवंबर 2010 में कुछ मीडिया समूहो ने पॉलिटिकल लोब्बिस्ट नीरा राडिया और एनडीटीवी की पत्रकार बरखा दत्त के बीच फोन पर हुई बातचीत के हवाले से यह दावा किया था कि नीरा राडिया ने बरखा दत्त के माध्यम से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद और डीएमके के कुछ नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाने की सिफ़ारिश की थी।

रवीश कुमार जैसे पत्रकारों ने पिछले कुछ सालों में लगातार मोदी सरकार के खिलाफ अपना एजेंडा चलाया और केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया। हालांकि, इसके बावजूद एग्जिट पोल्स के नतीजे भाजपा के पक्ष में आने की वजह से रवीश कुमार जैसे पत्रकारों की पीड़ा को समझा जा सकता है। लगातार एकतरफा रिपोर्टिंग की वजह से लोग इनकी निम्न-स्तरीय पत्रकारिता से ऊब चुके हैं जिसके कारण रवीश कुमार और एनडीटीवी की लोकप्रियता लगातार घट रही है। ऐसे में अपने करियर को बचाने के लिए अब ये पत्रकार झटपटा रहे हैं। हालांकि, ऐसे एजेंडावादी लोगों को नज़रअंदाज़ करना ही सबसे बेहतर विकल्प है।

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