अमरिंदर सिंह vs नवजोत सिंह सिद्धू: नवजोत को मिली हार

अमरिंदर सिंह नवजोत सिंह सिद्धू

(PC: Zee News)

राजनीति में कौन कब किसका दुश्मन बन जाए और कब कौन दुश्मन का ही हाथ थाम ले कुछ कहा नहीं जा सकता है। ये एक ऐसी दुनिया है जहां दोस्त और दुश्मन राज और नीति से ही बनते हैं चाहे उसके लिए पार्टी लाइन से बाहर ही क्यों न जाना पड़े। कांग्रेस पार्टी में भी शुरू से ही कुछ इस तरह की गतिविधियां सामने आती रही हैं। भला उस दिन को कौन भुला सकता है जब 12 नवंबर 1969 में कांग्रेस पार्टी से इंदिरा गांधी को बर्खास्त कर दिया गया था और उन्होंने अपनी एक अलग पार्टी कांग्रेस-(रिक्वीजीशन) की स्थापना की थी। इस बार कुछ ऐसी ही तकरार पांच नदियों के प्रांत पंजाब में देखने को मिल रही है जहां एक तरफ हैं पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और दूसरी तरफ हैं नवजोत सिंह सिद्धू।

हमेशा से कांग्रेस में जिस तरह की परंपराओं को निभाया जाता रहा है उसके विपरीत अमरिंदर सिंह ने एक अलग ही उदाहरण स्थापित किया है जो उन्हें अन्य कांग्रेस के नेताओं से कहीं अलग बनाता है। सैम पित्रोदा से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक सभी के लिए अमरिंदर सिंह ने अपनी बेबाक राय को सामने रखा है। वहीं दूसरी तरफ नवजोत सिंह की वजह से इमरान खान के शपथ ग्रहण में शामिल होने से लेकर अब तक न जाने कितनी बार बार कांग्रेस का नाम विवादों में उछाला है।

सिंह और सिद्धू के बीच में जो अंतर है वो ‘क्रोध’ फिल्म से मिलता जुलता है जहां एक भाई के लिए नैतिकता और सिद्धांत काफी महत्वपूर्ण होते हैं तो वहीं दूसरे भाई को इसकी कोई परवाह नहीं होती। कांग्रेस पार्टी में सिद्धू और अमरिंदर की भूमिका भी कुछ ऐसी ही नजर आती है। सभी जानते हैं कि कांग्रेस के ये बड़े वरिष्ठ नेता उन दो किनारों की तरह हैं जो कभी मिल नहीं सकते। वैसे इन दोनों के बीच की ये कड़वाहट कोई नई बात नहीं है। जब पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए निमंत्रण को अमरिंदर सिंह ने सीमा पार से लगातार हो रहे आतंकी हमलों का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया था। वहीं दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू न केवल निमंत्रण स्वीकार किया था बल्कि पाकिस्तानी दौरे के दौरान पाकिस्तानी जनरल कमर जावेद बाजवा से गर्मजोशी से गले भी लगाया था। इसके बाद वो पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) के राष्ट्रपति मसूद के बगल में भी बैठे हुए नजर आये थे। सिद्धू की इस हरकत की आलोचना खुद अमरिंदर सिंह ने करते हुए तब कहा था, “पाकिस्तानी जनरल को गले लगाकर सिद्धू ने ठीक नहीं किया।” इससे स्पष्ट है कि खुद को ‘सद्भावना राजदूत’ बताकर पाकिस्तान जाने के सिद्धू के कदम से पंजाब के मुख्यमंत्री खुश नहीं थे। अमरिंदर सिंह ने ये भी कहा था कि, “सीमा पर रोजाना हमारे जवान शहीद हो रहे हैं इसके बावजूद पाकिस्तान के आर्मी चीफ को गले लगाया, मैं इसके खिलाफ हूं, उन्हें समझना चाहिए कि हमारे जवान मारे जा रहे हैं।”  अमरिंदर सिंह का गुस्सा जायज था, भले ही सिद्धू इमरान खान के व्यक्तिगत बुलावे पर पाकिस्तान गये थे लेकिन सच तो ये भी था देश की सीमा पर हो रहे हमलों का जिम्मेदार पाकिस्तान ही है।

पिछले कुछ महीनों से सिद्धू और पंजाब के मुख्यमंत्री के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल था है। और अब ऐसा लगता है दोनों के बीच की तकरार दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। दोनों के बीच की ये कड़वाहट तब और ज्यादा देखने को मिली थी जब सिद्धू ने राष्ट्र हित को परे रख पाकिस्तान के पीएम के साथ अपने संबधों को ज्यादा महत्व दिया।

चाहे वो पुलवामा में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश द्वारा किया गया आत्मघाती हमला हो या भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में जैश के आतंकी संगठन पर किया गया वार हो, हर बार सिद्धू का पाकिस्तान प्रेम देखने को मिला है। पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर सिद्धू ने कहा था कि “आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता और ना ही उनकी कोई जाति होती है।” वहीं पाकिस्तान के बालकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा किये गे एयर स्ट्राइक पर नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान की भाषा बोलते हुए कहा था कि “300 आतंकी मारे गए ‘हां या नहीं’, वहां आतंकी मारने गए थे या फिर पेड़ उखाड़ने गए थे, क्या ये सिर्फ एक चुनावी नौटंकी थी।“ इसपर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने करारा जवाब देते हुए कहा था कि “आतंकी मारा हो या 100, एयर स्ट्राइक ने पाकिस्तान को कड़ा सबक और संदेश दिया।“ उन्होंने तब पाकिस्तान के मुद्दे पर कहा भी था कि “सिद्धू एक क्रिकेटर हैं जबकि मैं एक सैनिक रह चुका हूं। किसी मुद्दे पर हम दोनों की राय अलग-अलग हो सकती है।” मालूम हो कि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह कई वर्षों पहले सेना में सेवा दे चुके हैं।

दोनों नेताओं के बीच मतभेद कई बार देखने को मिलता रहा है। जब पाकिस्तान दौरे से सिद्धू लौटे थे तब उन्होंने कहा था कि उनके कैप्टन राहुल गांधी हैं जबकि अमरिंदर सिंह सेना के कैप्टन हैं। सिद्धू का ये बयान पंजाब कैबिनेट की अध्यक्षता करने वाले और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का अपमान करने जैसा था। यही नहीं इस बयान के बाद पंजाब कांग्रेस दो गुटों में बंटता हुआ नजर आया है और सिद्धू से इस्तीफे तक की मांग की थी।  

सिद्धू की पंजाब कांग्रेस से न बनने के पीछे का एक और कारण उनकी पत्नी को लोकसभा टिकट न मिलना भी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नवजोत सिंह सिद्धू आजकल अपनी पत्नी को उनकी मनपसंद लोकसभा सीट से टिकट ना दिये जाने से पार्टी से नाराज चल रहे हैं। नवजोत कौर अपने लिए चंडीगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव का टिकट मांग रही थी लेकिन इस सीट से एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता पवन बंसल को टिकट दे दिया गया। इससे पहले यह भी अटकलें लगाई जा रही थी कि उन्हें अमृतसर लोकसभा सीट से टिकट दिया जा सकता है लेकिन वहां से भी कांग्रेस से एक अन्य मौजूदा विधायक गुरजीत सिंह औजला को टिकट दे दिया गया। यह कांग्रेस पार्टी में सिद्धू परिवार की गिरती साख को दर्शाता है। 

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में अमृतसर से अरुण जेटली को टिकट मिलने के बाद सिद्धू ने भाजपा छोड़ दी थी। बाद में पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले वे कांग्रेस में शामिल हो गए और एमएलए का चुनाव जीतकर पंजाब सरकार में मंत्री भी बन गए। लेकिन अब वो मोगा में हुई एक बड़ी कांग्रेस रैली में उन्हें ना बुलाए जाने के कारण वे गहरे सदमे में हैं। सूत्रों के मुताबिक उनका नाम छत्तीसगढ़ राज्य के स्टार प्रचारकों की सूची में ना होंने से भी वे पार्टी से नाराज चल रहे हैं। ताजा खबरों की मानें तो अब चुनावी रैलियों में लगातार भाषण देने के कारण कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू का गला खराब हो गया है। उन्हें कुछ दिन के लिए आराम करने को कहा गया है और उनका इलाज चल रहा है। इसके चलते अब वे अगले कुछ दिनों तक चुनावी रैलियों में प्रचार नहीं कर पाएंगे। हालांकि, ‘गला खराब’ होना तो एक बहाना है वास्तव में अमरिंदर सिंह से तकरार के कारन ही उन्हें अब पार्टी के लिए प्रचार करने पर रोक लगा दी गयी है। ये हम नहीं खुद नवजोत सिंह की पत्नी के बयान के बाद साफ हो पाया।

दरअसल, नवजोत कौर ने अपने बयान में कहा है कि ‘नवजोत सिंह सिद्धू अपने गृह राज्य में पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे, क्योंकि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन्हें प्रचार नहीं करने के लिए कहा है।’ पंजाब सरकार में मंत्री होने के बावजूद उनका अपने कर्तव्यों से दूरी बनाना मेहनती करदाताओं के पैसों की बर्बादी है। सिद्धू जैसे नेताओं को जो अपने हित के लिए अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते उन्हें एक सार्वजनिक पद पर रहने का भी कोई अधिकार नहीं है।

जिस तरह का सिद्धू का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है उसके बावजूद सिद्धू अभी तक पंजाब कैबिनेट मंत्री में क्यों बने हुए हैं? अटकलों की मानें तो अमरिंदर सिंह जिस तरह की राजनीति करते हैं वो कांग्रेस की परंपराओं और विचारधारा से उन्हें अलग बनाता है ऐसे में उनपर नजर रखने के लिए कांग्रेस हाई कमान द्वारा सिद्धू को पंजाब कैबिनेट में जगह दी गयी। हालांकि, कांग्रेस का ये कदम उसके लिए ज्यादा फायदे का सौदा नहीं रहा क्योंकि पंजाब के सीएम की प्रो-राष्ट्र नीति और पाकिस्तान के खिलाफ उनके सख्त रुख की वजह से वो आम जनता के बीच एक मजबूत नेता बनकर उभरे हैं।

अक्सर अपनी नीतियों और विचारों की वजह से पंजाब के मुख्यमंत्री खबरों में बने रहते हैं लेकिन उनके विपरीत अपने विवादित बयानों और पाकिस्तान प्रेम की वजह से सिद्धू अखबरों और टीवी चैनल्स की हैडलाइन में नजर आते हैं। हालांकि, अचानक से सिद्धू ने खबरों से दूरी बना ली। ना उनकी खबरों में कोई चर्चा हो रही थी, और ना ही वे किसी राजनीतिक मंच से अपनी ‘हुंकार’ भरते नजर आ रहे थे। यह बड़ा ही हैरान करने वाला है कि कुछ समय पहले तक खबरों के केंद्र में रहने वाला नेता अचानक से लाइमलाइट से गायब हो जाए। खैर, जो भी हो यहां एक बात तो साफ है कि कांग्रेस की ये रणनीति फेल रही वहीं, अमरिंदर सिंह ने अपनी कुशल रणनीति से नवजोत सिंह सिद्धू को उनकी सही जगह जरुर दिखा दी है।

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