2019 के आम चुनाव में उठने वाली मोदी सुनामी को विपक्ष ने पहले ही भांप लिया था जिसको लेकर सभी एकजुट हो गए। सियासी अखाड़ा माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में विजय हासिल करने के लिए सभी ने पूरी ताकत लगा दी। सालों पुरानी तकरार और दुश्मनी को भुलाकर अखिलेश और मायावती एक साथ आए लेकिन इसके पीछे का सिर्फ एक ही मक्सद था और वह मोदी की हार। अखिलेश और मायावती ने एक साथ आकर मोदी रथ रोकने की कोशिश कि लेकिन वह इसमें बुरी तरह फेल हुए। हालांकि, इस गठबंधन का लाभ मायावती को जरूर मिला। वहीं अखिलेश यादव को बुरी तरह से विफलता हाथ लगी और उनकी पारिवारिक सीट भी चली गई। ऐसे में अब सवाल यह खड़ा होता है कि, क्या प्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनावों में फिर बसपा और सपा साथ आएंगे।
19 अप्रैल 2019 का वो दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया और जिसको कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। जी हां हम बात कर रहे हैं सपा-बसपा की पहली साझा रैली की जो सपा के गढ़ माने जाने वाली मैनपूरी में हुई थी। 25 सालों बाद सारे पुराने गम और तकरार भुलाकर मायावती और मुलायम सिंह साथ आए थे। हालांकि, इस मजबूरी के गठबंधन से समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा या यूं कहें कि, यह चुनाव अखिलेश यदाव को कभी न भुला पाने वाला गम दे गया। गौरतलब है कि, इस चुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के साथ ही उनके भाई अक्षय को भी करारी हार मिली। मोदी रथ रोकने के लिए अखिलेश ने मायावती का साथ लिया लेकिन उसका उनको भारी खामियाजा उठाना पड़ा। ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए अखिलेश यादव बसपा के साथ फिर से मैदान में उतरेंगे।
बता दें कि, जिन 11 सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें गोविंदनगर, टूंडला, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़ व अन्य शामिल हैं। खास बात यह है कि, बसपा जो हमेशा उपचुनाव लड़ने से बचती रही है क्या वह प्रदेश में अपनी विधानसभा सीटें बढ़ाने के लिए उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेगी। गौरतलब है कि, अभी बसपा के पास विधानसभा में 19 सीटें हैं, वहीं अखिलेश यादव की पार्टी सपा के पास 47 सीटें हैं। अगर 2019 के आम चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो इसमें गठबंधन का लाभ अखिलेश से ज्यादा मायावती की पार्टी को मिला है। पिछले लोकसभा चुनावों में जहां बसपा का सूपड़ा साफ हो गया था, वहीं समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं। वहीं इस बार बसपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि सपा के खाते में सिर्फ 4 सीटें ही आई हैं। जिस तरह से बसपा को इस गठबंधन में फायदा हुआ है उससे मायावती की महत्वाकांक्षा और बढ़ गयी हैं। अगले साल राज्यसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में बसपा अपनी मौजूदा विधायकों की संख्या में इजाफा करना चाहेगी। वहीं, सपा भी अपने विधायकों की संख्या बढ़ाना चाहेगी। अब अगर बसपा इस विधानसभा उपचुनाव से दूर रहती है और सपा प्रत्याशी का समर्थन करती है तो सपा को जरुर फायदा होगा। लेकिन जिस तरह से मायावती को फायदा हो रहा है वो अपनी जमीनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए इस बार उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतार भी सकती है ऐसे में सपा को इससे बड़ा नुकसान होना तय है।
गौरतलब है कि, उत्तर प्रदेश चुनावों के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य है जो देश में सरकार बदलने का मादा रखता है। ऐसे में सभी पार्टियों की नजर सबसे पहले उत्तर प्रदेश पर ही होती हैं जिसके लिए अखिलेश यादव की पार्टी सपा ने मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन किया था। अब देखना दिलचस्प होगा की क्या अखिलेश लोकसभा चुनावों में मिली अपनी इस करारी हार को भुलाकर एक बार फिर मायावती के साथ आएंगे या किसी अन्य रणनीति के साथ अकेले ही उपचुनावों में लड़ेंगे।