यौन उत्पीड़न के आरोपों में घिरे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को जांच कर रही तीन सदस्यीय कमेटी ने क्लीन चिट दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की इन हाउस कमेटी ने इस मामले में सोमवार को कहा कि वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे निराधार हैं। कमेटी को चीफ जस्टिस के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले।
The three member in-house committee of the Supreme Court has found no substance in the sexual harassment allegations against Chief Justice of India Ranjan Gogoi. pic.twitter.com/cG4yVB8ViR
— ANI (@ANI) May 6, 2019
आपको बता दें कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। 19 अप्रैल को उस महिला ने पिछले दिनों में उसके साथ हुए तथाकथित उत्पीड़न का ब्यौरा देते हुए एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को भेजा था, हालांकि जस्टिस रंजन गोगोई ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा था कि कुछ ताकतें न्याय व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की लगातार कोशिश में हैं क्योंकि अगले महीने वे कई जरूरी मामलों में सुनवाई करने वाले हैं।
अब जब सुप्रीम कोर्ट के जजों की तीन सदस्यीय कमेटी ने रंजन गोगोई को क्लीन चिट दे दी है, तो यह सवाल खड़ा होना लाज़मी है कि वह कथित पीड़ित महिला आखिर कौन थी, और वह किसके इशारे पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया पर इतना बड़ा आरोप लगा रही थी। इसके संबंध में पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े वकील उत्सव बैन्स ने भी एक बड़ा खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि चीफ जस्टिस के खिलाफ यह केस बनाने के लिए उनको 50 लाख रुपयों की रिश्वत दी गई थी जिसे बाद में 1.5 करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया, हालांकि उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया।
इसके अलावा खुद रंजन गोगोई भी अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों पर हैरान दिखाई दिये थे। पिछले महीने 20 अप्रैल को जब इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई हुई थी तो उन्होंने कहा था ‘न्यायतंत्र की स्वतंत्रता खतरे में है। अगर जजों को ऐसे अपमानित किया जाएगा तो कोई अच्छा शख्स जज क्यों बनना पसंद करेगा’?
फिर भी एक अहम सवाल खड़ा होता है कि आखिर वो कौन-सी ताक़तें हो सकती हैं जो इस तरह से देश के सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ अपना एजेंडा चला रही हैं। आपको याद दिला दें कि जस्टिस रंजन गोगोई ने अभी कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे ‘न्यायालय की अवमानना’ केस पर सुनवाई की थी और राहुल से स्पष्टीकरण मांगा था जिसके जवाब में राहुल गांधी ने अपना माफीनामा कोर्ट में पेश किया था। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय रोहिंग्या निर्वासन के मामले में भी देश के विपक्ष को नाखुश करने का काम कर चुका है। दरअसल, भारत सरकार 7 रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजना चाहती थी, जिसके खिलाफ क्रांतिकारी वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हुई थी, लेकिन रंजन गोगोई वाली बेंच ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया था। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट राफेल डील को लेकर भी कांग्रेस के झूठे प्रोपेगैंडे को सबके सामने एक्सपोज करने का काम कर चुका है। यही नहीं आने वाले दिनों में चीफ जस्टिस राजीव कुमार, कोलकाता पूर्व डीजीपी मामला, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) मामला जैसे कई अहम मुद्दों पर अपना फैसला सुनाने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही उनपर ये आरोप सामने आना भी शक को और मजबूत कर रहा है। वास्तव में ‘लोकतन्त्र पर खतरा’ बताकर दिन रात रोना रोने वाले विपक्ष को यह बिल्कुल नहीं भाता कि देश का न्याय तंत्र उनके एजेंडे का पर्दाफाश कर दे। लेकिन इसी बीच एकाएक चीफ जस्टिस पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगना अपने आप में शक पैदा कर रहा था, जो अब पूरी तरह सच्चाई में बदल चुका है। अपने फैसले के माध्यम से जजों ने इन तमाम शक्तियों के एजेंडे को एक्स्पोज़ कर दिया।