नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥
नमस्ते सदा वत्सले नामक यह प्रार्थना आपने सुनी होगी या शायद नहीं भी? ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रार्थना है, संघ का हर सदस्य इस प्रार्थना का सस्वर पाठ करता है। ऐसे ही एक संघ सदस्य थे, अमरीश पुरी। अमरीश पुरी का नाम मस्तिष्क में आते ही सामने आती है एक लंबी चौड़ी काया, बड़ी बड़ी घूरती हुईं आखें, ऊंची नाक और एक आवाज़ जो बिजली के कड़कड़ाने के जैसी थी। बॉलीवुड में कई महान खलनायक हुए हैं, चाहे वो प्राण हो या फिर डैनी डेन्जोंगपा लेकिन अमरीश पुरी सबसे अलग थे। अमरीश पुरी वो ऑन स्क्रीन विलेन थे जिसे देख कर दर्शकों के पसीने छूट जाते थे, लेकिन इस भयंकर भावभंगिमा वाले अमरीश वास्तविकता में एक अत्यंत सज्जन, अनुशासित और मृदुभाषी व्यक्ति थे। और उनकी एक और बात उन्हें बाकी की फिल्म इंडस्ट्री से अलग बनाती थी वो थी उनकी अटूट देशभक्ति और आरएसएस के साथ उनका जुड़ाव।
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री उदारवादियों की एक बजबजाती हुई नाली है जहां हिन्दू धर्म, भारत देश, ब्राह्मण, गाय, हमारे पर्व त्योहार हमेशा ही निशाने पर रहते हैं। याद करिये कठुआ का वो कुकृत्य जिसके बाद बॉलीवुड की कुछ दिखावटी नारीवादी अभिनेत्रियों ने पूरे हिन्दू धर्म पर ही सवाल उठा दिये थे। ऐसी उदारवादी कीचड़ में कमल के समान थे अमरीश पुरी।
अमरीश पुरी ने अपनी बायोग्राफी ‘द एक्ट ऑफ लाइफ’ में अपने जीवन के संघर्ष का जिक्र किया है, कि कैसे उनके पिता उनके फिल्मों में काम करने के अमरीश पुरी तरह खिलाफ थे। परंतु अमरीश पुरी हीरो बनने का स्वप्न लेकर मुंबई जा पहुंचे लेकिन उन्हें रोल नहीं मिला क्योंकि खूबसूरत चेहरों से भरी इंडस्ट्री मे वो एक सामान्य चेहरे वाले थे। पर भाग्य ने करवट बदली और शीघ्र ही वे बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ खलनायक बन कर उभरे और बाद मे वे एक महान चरित्र अभिनेता भी बने। जब वो पंद्रह सोलह वर्ष के थे तो उनका जुड़ाव राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से हुआ। आरएसएस पत्रिका पांचजन्य से एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि ‘’मैं 15-16 वर्ष का था तब संघ शाखा में जाना शुरू किया था। एक घंटे की शाखा के उपरांत स्वयंसेवकों के परिवारों से सम्पर्क… शाखा के कार्य में इतना रम गया था कि मुझे शाखा के मुख्य शिक्षक की जिम्मेदारी दी गई। मैं मानता हूं कि उस समय शाखा में जो संस्कार मुझे मिले उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज फिल्म उद्योग में मैं हूं, जहां चारित्रिक पतन सबसे ज्यादा होता है।”
मेरा चरित्र विशुद्ध है तो वह संघ संस्कारों के कारण ही। फिल्मों से बहुत जुड़ने के कारण मैं संघ से की गतिविधियों मे बहुत सक्रिय नहीं हूं परंतु संघ संस्कार जीवन से कभी नहीं जाएंगे’’।
उन्होंने अपनी बायोग्राफी द एक्ट ऑफ लाइफ में लिखा है, ‘’बहुत ईमानदारी से कहूंगा कि मैं आरएसएस की हिंदुत्व की विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ था, जिसके अनुसार हम हिंदू हैं और हमें हिंदुस्तान की विदेशी शक्तियों से रक्षा करनी है। उन्हें निकाल बाहर करना है ताकि हम अपने देश पर शासन कर सकें। लेकिन, इसका धार्मिक कट्टरता से कोई सम्बंध नहीं था, यह मात्र देशभक्ति थी।“
इतने महान अभिनेता का आरएसएस से जुड़ाव कुछ उदारवादियों को नहीं भाया था और उनके मरने के बाद यह खबर फैलाई गई थी कि अमरीश पुरी बस बचपन में संघ से जुड़े थे, पर गांधी जी के हत्या के बाद उन्होने संघ की घृणास्पद विचारधारा से किनारा कर लिया था”। यह बात सरासर झूठ है, उनके परिवार के कई सदस्यों ने बारबार इस बात का खंडन किया और यह भी बताया कि मृत्यु के दिन तक वे संघ और उसके संस्कारों से जुड़े रहे। अगर उनका संघ से संबंध विच्छेद हुआ होता तो वो अपनी आत्मकथा में इसका वर्णन अवश्य करते।
अमरीश पुरी जी के 87वें जन्म दिवस पर टीएफ़आई परिवार के ओर से उन्हे भावभीनी श्रद्धांजली, आशा करते हैं कि मोगम्बो जहां होगा खुश ही होगा।