अनिल अंबानी का नाम कभी दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार हुआ करता था, लेकिन आज वे ऐसी कंपनियों के मालिक हैं जिनपर करोड़ों-अरबों रुपयों का कर्ज़ है। पिछले एक दशक के दौरान रिलायंस समूह की पांच बड़ी कंपनियों की कुल संपत्ति 2 लाख 36 हज़ार करोड़ से घटकर सिर्फ 25 हज़ार करोड़ रुपये रह गई है। धीरुभाई अंबानी की मृत्यु के बाद करोड़ों रुपए का रिलायंस साम्राज्य दो भाइयों में बांटा गया था। बड़े भाई मुकेश अंबानी के हिस्से पेट्रोकेमिकल व्यापार आया था, तो वहीं छोटे भाई अनिल अंबानी को अवसरों से भरपूर टेलिकॉम बिजनेस सौपा गया था। इसके अलावा वित्तीय और ऊर्जा व्यापार भी छोटे भाई के हिस्से में ही आया था।
टेलिकॉम बिजनेस अवसरों से भरपूर था और अनिल अंबानी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहते थे ताकि इस क्षेत्र में उनके व्यापार का विकास हो सके। हालांकि, बाद में रिलायंस ग्रुप को काफी उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ा जिसके वजह से आज रिलायंस कम्युनिकेशन करोड़ों रुपयों के कर्ज़ के बोझ तले दब चुकी है। रिलायंस कम्युनिकेशन पर आज कुल 48 हज़ार करोड़ रुपयों का कर्ज़ मौजूद है और यह कंपनी आज फ़िक्स्ड लाइन कम्युनिकेशन, डाटा सेंटर और एंटरप्राइज़ सोल्यूशंस जैसी सेवाएं ही प्रदान करती है। यही कारण है कि वर्ष 2018 में आरकॉम का रेविन्यू सिर्फ 4 हज़ार 684 करोड़ था जबकि वर्ष 2008 में इस कंपनी का कुल रेविन्यू 19 हज़ार करोड़ था।
वर्ष 2007 में अनिल अम्बानी की कुल संपत्ति 45 बिलियन डॉलर थी और वे दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में छठे स्थान पर थे उनकी कुल संपत्ति बड़े भाई मुकेश अम्बानी से ज्यादा थी आज आलम यह है कि अनिल अम्बानी बिल्यनिर लिस्ट से बाहर हो गए है जिसका मतलब यह है कि उनकी कुल संपत्ति 1 बिलियन डॉलर से भी काम है।
रिलायंस समूह के बुरे प्रदर्शन के पीछे सबसे बड़ा हाथ आरकॉम का ही था। शुरुआती सालों में तो आरकॉम के मार्केट शेयर में 20 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली थी, लेकिन जल्द ही तकनीक के मामले में यह कंपनी बाकी कंपनियों से पिछड़ गयी। बाकी कंपनियां जीएसएम तकनीक का उपयोग कर रही थी, तो वहीं आरकॉम अभी भी पुरानी सीडीएमए तकनीक का इस्तेमाल कर रही थी। हालांकि, तब अनिल अंबानी ने आक्रामक रुख दिखाते हुए 12 महीनों के अंदर-अंदर जीएसएम तकनीक का उपयोग करना शुरू कर दिया। उसके बाद कंपनी द्वारा एक आक्रामक मूल्य नीति अपनाई गई देश के 11 केन्द्रों में 3जी स्पेक्ट्रम के लिए 8500 करोड़ रुपये के निवेश की मंजूरी दे दी गई। इसी का नतीजा निकला कि वर्ष 2010 के अंत तक कंपनी के साथ 10 लाख से ज़्यादा ग्राहक जुड़ गए थे।
टेलीकॉम मार्केट में अचानक आई नई कंपनियों की बाढ़ ने कंपीटीशन को और ज़्यादा कडा कर दिया जिसका सभी टेलिकॉम कंपनियों के लाभ पर बहुत बुरा असर पड़ा। नतीजतन, आरकॉम ने 2012 में वोडाफोन के हाथों अपना नंबर 2 का स्थान खो दिया और वर्ष 2016 में तो आरकॉम नंबर 4 से भी नीचे खिसक गया। स्पेक्ट्रम अधिग्रहण में बड़े पैमाने पर निवेश से बढ़ते कर्ज-बोझ के कारण कंपनी को 4जी की नई तकनीक में निवेश करने में बड़ी मुश्किलें पेश आईं। फर्म का कर्ज़ 2010 में 25,000 करोड़ रुपये से दोगुना हो गया, जो वर्तमान में लगभग 43,000 करोड़ रुपये है। बड़े भाई मुकेश अंबानी द्वारा रिलायंस जियो की आक्रामक लॉन्चिंग ने आरकॉम को गहरा झटका दिया जिसने कंपनी को और पीछे धकेल दिया।
आज आलम यह है कि मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटिड की मार्केट वैल्यू 7 लाख 70 हज़ार 592 करोड़ है जबकि छोटे भाई की कंपनी की मार्केट वैल्यू अब सिर्फ 24 हज़ार 922 करोड़ ही रह गया है। हालाँकि, भाइयों के बीच का यह विरोधाभास व्यवसायिक साम्राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी है। अनिल अंबानी को उनके उच्च जीवन स्तर के लिए जाना जाते हैं। जब से उन्होंने रिलायंस समूह के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है, तभी से अनिल अंबानी के कई राजनेताओं और बॉलीवुड हस्तियों के साथ करीबी रिश्ते रहे हैं।
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस पावर जैसी रिलायंस समूह की अन्य सहायक कंपनियों को भी पिछले कुछ वर्षों में भारी नुकसान उठाना पड़ा है और इन कंपनियों का हश्र भी आरकॉम जैसा ही हो सकता है। अभी रिलायंस कंपनी का एकमात्र समूह जो अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, वह सिर्फ रिलायंस कैपिटल ही है। हालांकि अभी यह देखना बाकी है कि अनिल अंबानी अपने समूह को इन बड़ी वित्तीय समस्याओं से कैसे बाहर निकालते है।