सलमान खान की मूवी में लॉजिक की आशा करना उतना ही बेमानी है जितना अरविंद केजरीवाल से व्यवहारिक सोच की उम्मीद रखना। लेकिन भारत मूवी देखने के बाद मेरा मन अब ये बोल उठा कि आखिर आप मनोरंजन के नाम पर कुछ भी दिखाना कब छोड़ेंगे?
आज सलमान खान स्टार्रर फिल्म ‘भारत’ रिलीज़ हो गयी । जैसे चटनी के बिना समोसा, सांभर के बिना इडली और राजमा बिना चावल अधूरा माना जाता है, वैसे ही आजकल ईद का त्योहार हो, और सलमान भाई की फिल्म न रिलीज़ हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। तो एक बार फिर ईद के अवसर पर प्रस्तुत है आपके सामने सलमान खान अपनी अगली फिल्म ‘भारत’ के साथ।
कोरियाई फिल्म ‘एन ओड टू माई फादर’ की आधिकारिक रीमेक और अली अब्बास जफर द्वारा निर्देशित ‘भारत’ के प्रमुख कलाकारों में है सलमान खान, कट्रीना कैफ, सुनील ग्रोवर, जैकी श्राफ, सोनाली कुलकर्णी इत्यादि। कहानी है भारत की, जिसके 70 साल की जीवन यात्रा कैसे भारत की यात्रा से घुलमिल गयी थी, उसी पर आधारित थी।
बंटवारे के बाद फैली अराजकता में जब ‘भारत’ अपने पिता और छोटी बहन गुड़िया से बिछड़ जाता है, फिर इसके बाद कैसे वो पूरे परिवार का भार अपने सिर पर ले लेता है और कैसे भारत देश के साथ साथ अपनी खुद की प्रगति के लिए अनेक रास्तों से गुज़रता है, ये फिल्म उसी पर आधारित है।
अब बात करें फिल्म की, तो इसमें मनोरंजन की कोई कमी नहीं है। फिल्म का पहला भाग तो शुद्ध बॉलीवुड मसाले से परिपूर्ण है, जहां समय समय पर गुदगुदाने वाले संवाद, सीटी बजाने के लिए विवश करने वाले दृश्य एवं सलमान खान की अदाकारी आपको अपनी कुर्सी से चिपका कर रखेगी।
यूं तो सलमान खान अपनी अदाकारी के लिए नहीं जाने जाते, पर एक विशेष दृश्य [जिसका ज़्यादा विवारण स्पोइलेर्स की श्रेणी में आएगा] में सलमान खान की अदाकारी देखकर आप हैरान हो जाएंगे की क्या ये वही सलमान खान हैं, जिनके हिस्से में ‘बॉडीगार्ड’, ‘रेडी’, ‘ट्यूबलाइट’, ‘रेस 3’ इत्यादि जैसी घटिया फिल्में भी आती हैं?
इस फिल्म में सलमान खान का भरपूर साथ देने का प्रयास किया है सुनील ग्रोवर ने, जो इस फिल्म में विलायती खान की भूमिका में है। वक्त वक्त पर हंसाने वाले और कई जगह बड़े ही सरल शब्दों में गूढ़ बातें समझाने वाले विलायती खान की भूमिका में सुनील ग्रोवर ने अपने आप को एक सशक्त अभिनेता के रूप में प्रस्तुत करने का निष्कपट प्रयास किया है। हालांकि, इस फिल्म में जिसने अपने अभिनय से सभी को चकित किया है, वो है कट्रीना कैफ। कुमुद रैना के किरदार में कट्रीना जहां एक तरफ अपने हिन्दी बोलने की शैली पर आलोचकों के मुंह पर ताला लगाया है, वहीं अपने भावहीन अभिनय की छवि को तोड़ते हुये कुमुद की भूमिका को बड़े ही कुशलता से निभाया है। ऐसे में ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत की सबसे बड़ी खोजों में अगर कोई एक है तो वो है कट्रीना कैफ की एक्टिंग स्किल्स। एक छोटे से कैमियो में तब्बू ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनकी अभिनय शैली का कोई तोड़ नहीं, भूमिका चाहे जैसी भी हो वो बेहतरीन अभिनय करती है।
पर इस फिल्म में खामियां भी है, और वो कई जगह आपको अपना माथा फोड़ने के लिए पर विवश कर देगी। इस फिल्म में इतिहास को बड़े ही बचकाने तरह से प्रदर्शित किया था। जहां जवाहरलाल नेहरू की ‘लोकप्रियता’ और 1965-70 में देश में व्याप्त बेरोज़गारी पर निर्देशक ने उचित प्रकाश डाला, तो वहीं आपातकाल के दौर की अनदेखी कर सीधा उदारीकरण के दौर पर पहुंच गए, जिसके लिए पूरा श्रेय अनुचित रूप से अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को दे दिया गया।
सत्य तो यह है कि उदारीकरण की योजना का डॉ. मनमोहन सिंह ने केवल बतौर वित्त मंत्री क्रियान्वयन किया, जबकि इसकी आधारशिला प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं अधिवक्ता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने रखी थी, और इसे भारत में लागू करने की स्वीकृति पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर ने पहले ही दे दी थी। ये अलग बात है कि योजना लागू होने से पहले ही चन्द्र शेखर ने जन समर्थन भी गंवा दिया और उन्हें सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा था।
यही नहीं, फिल्म का एक दृश्य आपको काफी बेतुका लगेगा। ये सीन सोमालियाई डाकुओं से जुड़ा है ज्सिमें ये डाकू ‘भारत’ के जहाज़ पर हमला करते हैं फिर इस हालात से भारत कैसे निपटता है..ये दृश्य न सिर्फ आपको बेतुका लगेगा बल्कि निर्देशक एवं लेखक की बचकानी सोच पर हंसने के लिए विवश भी करेगा। आदर्शवाद अपनी जगह है, पर उसे बचकानेपन का चोला आप दर्शकों के गले में ज़बरदस्ती नहीं ठूंस सकते, और यहीं पर ‘भारत’ का दूसरा भाग बहुत बुरी तरह मात खाता है।
तो यदि आप ईद पर खाली बैठे हैं, और आप सिर्फ बॉलीवुड शैली का मनोरंजन चाहिए, तो बेशक आप ‘भारत’ पर अपने पैसे खर्च कर सकते हैं। लेकिन यदि आप पूरे चलचित्र में व्यावहारिकता एवं वास्तविक मनोरंजन के लिए अगर ‘भारत’ देखने निकले हैं, तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी। मेरी तरफ से ‘भारत’ को मिलने चाहिए 5 में से 2.5 स्टार।