भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रचलित नेता स्मृति ईरानी के लोक सभा निर्वाचित होने से इनकी गुजरात की राज्यसभा सीटें रिक्त हो चुकी हैं। गुजरात में अभी 11 राज्य सभा सीट हैं, जिनमें से 5 सीटें भाजपा के पास है, 4 कांग्रेस के पास और बाकी 2 सीटें खाली हैं। चुनाव आयोग के वर्तमान निर्णय के अनुसार इन दोनों रिक्त सीटों के लिए उपचुनाव बिहार और ओड़ीशा राज्यों में रिक्त पड़ी राज्य सभा सीटों के साथ ही 5 जुलाई को होगा।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के प्रावधानों के अनुसार संसद के उच्च सदन में रिक्त सीटों को ‘अलग रिक्तियों का दर्जा दिया जाएगा और इनके लिए अलग अधिसूचनाएँ जारी की जाएंगी और उक्त रिक्तियों के लिए अलग अलग चुनाव कराये जाएंगे, भले ही उपचुनावों की कार्यक्रम अनुसूची एक समान हो।’
चुनाव आयोग ने ये भी बताया की वर्तमान निर्णय ‘लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराएँ 147 से 151 के प्रावधानों के अनुपालन में है, और पिछले कई मामलों में आयोग द्वारा सफलतापूर्वक संचालित किया जा चुका है।’ इसके पश्चात चुनाव आयोग ने दिल्ली हाई कोर्ट के अलग चुनावों के पक्ष में कुछ निर्णयों को भी प्रेस के समक्ष प्रस्तुत किया।
चुनाव आयोग द्वारा लिया गया यह निर्णय 2017 में सम्पन्न हुये राज्य सभा के चुनाव से काफी अलग है। उस समय के गुजरात राज्य सभा चुनावों के लिए प्रेफ़ेरेन्शियल बैलट सिस्टम को उपयोग में लाया गया था। इसके अंतर्गत बैलट पेपर पर सभी राज्य सभा उम्मीदवारों के नाम अंकित होते हैं और उक्त क्षेत्र के विधायकों को अपनी प्राथमिकता अंकों के अनुसार उम्मीदवार के नाम के सामने लिखनी होती है, जैसे 1 सबसे योग्य उम्मीदवार के लिए, 2 दूसरे सबसे योग्य उम्मीदवार के लिए इत्यादि।
इस बैलट में सिंगल ट्रांस्फरेबल वोट यानि एकल हस्तांतरणीय मत लागू होता है, और हर विधायक का वोट केवल एक बार गिना जाता है। हालांकि ये एकल मत प्राथमिकता के क्रम अनुसार लागू होता है। उदाहरण के लिए जैसे किसी विधायक ने किसी उम्मीदवार को अपनी प्रथम प्राथमिकता दी है, तो उक्त विधायक का मत दूसरे ऊमीद्वार को उसके प्राथमिकता के क्रम अनुसार हस्तांतरित हो जाता है।
परंतु अलग बैलट प्रणाली के अनुसार, उक्त राज्य सभा सीटों के चुनाव अलग अलग बैलट बॉक्स और बैलट पेपरों के साथ आयोजित होंगे, जिसमें प्राथमिकता दर्ज़ करने का प्रश्न ही नहीं उठता। इससे आने वाले राज्य सभा के उपचुनावों में काफी अंतर आएगा। अभी भाजपा के 100 विधायक के मुक़ाबले कांग्रेस के 77 विधायक हैं। इनके अलावा एनसीपी से एक, भारतीय आदिवासी पार्टी से दो और तीन निर्दलीय विधायक भी हैं। प्रिफरेन्शियल सिस्टम के अनुसार एक राज्य सभा उम्मीदवार को जीत हासिल करने के लिए 61 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता पड़ सकती थी । ऐसे में कांग्रेस के उम्मीदवार के लिए जीत दर्ज़ करना बिलकुल भी कठिन नहीं होता, क्योंकि उन्हें 61 विधायकों को समर्थन तो बड़े आराम से मिल जाता। इसी प्रणाली के कारण 2017 में सभी के उम्मीदों के विपरीत अहमद पटेल राज्यसभा पहुंचे थे।
पर अलग बैलट प्रणाली से सारे समीकरण ही बदल जाते हैं, जहां हर विधायक अपने उम्मीदवार के लिए बिना किसी प्राथमिकता के प्रक्रिया को लागू किए अलग मत डाल सकता है। ऐसे में भाजपा की पांचों उंगलियां घी में हैं, क्योंकि 182 सदस्यीय सदन में इनके पास 100 विधायकों के साथ अच्छा खासा बहुमत है।
रोचक बात तो यह है कि कांग्रेस की मुसीबतें यहीं पर खत्म नहीं होती। कांग्रेस के पास गुजरात के विधानसभा में अब महज 71 विधायक है। अल्पेश ठाकोर, धवलसिंह ज़ाला और भरतजी ठाकोर के दल से इस्तीफा देने के बाद इतना तो साफ है की पार्टी अपने ही विधायकों को एकजुट रखने में असफल है। कांग्रेस इसपर अभी से हाय तौबा मचाने लगी है और पार्टी ने चुनाव आयोग के इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कांग्रेस अब अपना वर्चस्व बचाने के लिए चाहे कितना भी ढोंग क्यों ना रच ले, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि राज्य सभा भी अब कांग्रेस-मुक्त होने जा रही है।