कश्मीर समस्या का सुलझाने का बस एक तरीका है और अमित शाह वो करने वाले हैं

कश्मीर

PC: jansatta

जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक नक्शा अब जल्द ही बदलने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार राज्य के विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की तैयारी में हैं। परिसीमन प्रक्रिया के तहत देश की लोकसभा और राज्यसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय किया जाता है। भाजपा का यह शुरू से ही मानना रहा है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जम्मू की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए। माना जा रहा है कि नए सिरे से परिसीमन के बाद जम्मू के खाते में पहले से ज़्यादा सीटें आ सकती हैं। इसको लेकर गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय में लगातार बैठकों का दौर जारी है। अगर ऐसा संभव होता है तो जम्मू-कश्मीर को जल्द ही अपना पहला हिन्दू मुख्यमंत्री मिल सकता है।

सबसे पहले ये जानते हैं की जम्मू और कश्मीर की राजनीति किस तरह की है? वैसे तो राज्य के तीन भाग है – नामतः जम्मू, कश्मीर और लद्दाख लेकिन शुरू से ही राजनैतिक शक्ति कश्मीर के पास रही है, यही भाग राज्य को उसके मुख्यमंत्री और सबसे ज़्यादा मंत्री देता आया है, यही भाग वहाँ की नीतियों को नियंत्रित करता है और इसलिए बाकी के दोनों भाग राज्य के अभिन्न अंग होकर भी शक्तिहीन हो कर रह गए हैं, जम्मू और लद्दाख की सत्ता मे कम भागीदारी जम्मू कश्मीर समस्या की मूल जड़ है। परंतु इसका निवारण होने वाला है।

गृह मंत्रालय में गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, आईबी के डाइरैक्टर राजीव जैन और गृह सचिव राजीव गौबा के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं और माना जा रहा है कि गृह मंत्रालय परिसीमन के लिए एक परिसीमन आयोग का गठन कर सकता है। सरकार का मानना है कि जम्मू-कश्मीर को विधानसभा में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए और अभी कश्मीर को ज्यादा राजनीतिक ताकत हासिल है। यह परिसीमन आयोग गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट बनाकर देगा जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के विधानसभा क्षेत्रों के आकार पर विचार हो सकता है और साथ में कुछ सीटें SC कैटगरी के लिए रिज़र्व की जा सकती हैं। अगर जम्मू-कश्मीर में परिसीमन हुआ तो राज्य के तीन क्षेत्र जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव किया जायेगा और इससे जम्मू विधानसभा सीटें बढ़ सकती है। अगर ऐसा हो जाता है तो राज्य में अलगाववादी नेताओं की स्थिति कमजोर होगी जबकि राष्ट्रवादी शक्तियां मजबूत होंगी। 

सूबे में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था, जब गवर्नर जगमोहन के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में 87 सीटों का गठन किया गया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें हैं, लेकिन 24 सीटों को रिक्त रखा गया है। राज्य के संविधान के सेक्शन 48 के मुताबिक इन 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ गया है और बाकी बची 87 सीटों पर ही चुनाव होता है।

संविधान के मुताबिक हर 10 साल के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए लेकिन सरकारें ज़रूरत के हिसाब से परिसीमन करती हैं। जम्मू-कश्मीर में सीटों का परिसीमन 2005 में किया जाना था लेकिन फारुक अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व कानून 1957 और जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करते हुए यह फैसला लिया था।

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक कश्मीर में राज्य की लगभग 55 प्रतिशत जनसंख्या रहती है जबकि जम्मू में राज्य की लगभग 43 प्रतिशत आबादी रहती है। अभी जिन 87 विधानसभा सीटों पर चुनाव होता है, उनमें से 46 सीटें कश्मीर के हिस्से में आती हैं जबकि जम्मू के हिस्से में सिर्फ 37 सीटें आती हैं। इसके अलावा लद्दाख क्षेत्र में भी 4 विधानसभा सीटें आती है। जाहिर है कि परिसीमन के बाद राज्य की राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव आने वाला है। राज्य के मुस्लिमों के ठेकेदार बन चुके टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्यों के लिए यह किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा। यह टुकड़े-टुकड़े गैंग अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल कर शुरू से ही राज्य में अपना एजेंडा आगे बढ़ाते आया हैं। बदलावों के बाद महबूबा मुफ़्ती और अब्दुल्ला जैसे राजनेताओं का राजनीतिक वर्चस्व खत्म होगा और राज्य के लोगों को मुख्यधारा में आने का एक सुनहरा अवसर मिलेगा।

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