हाल ही में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में महिलाओं के लिए मुफ्त आवाजाही की घोषणा की है। इसके पीछे जो वाजिब कारण मुझे लगा वो यही हो सकता था कि हम ऊपरवाले की कृपा से विक्टोरिया काल में वापस आ गए। पर चूंकि ये अभी के लिए असंभव है, इसीलिए मुझे समझ में नहीं आता कि दिल्ली सरकार को ऐसा क्यों लगता है कि हम महिलाएं हमेशा अबला ही रहेंगी, और हमारे आवाजाही के लिए किसी न किसी को भुगतान करते रहना पड़ेगा।
तो मुद्दे की बात यह है कि आम आदमी पार्टी ने इस बार के लोकसभा चुनावों में काफी लचर प्रदर्शन किया है। पूरे देश से इस पार्टी को सिर्फ एक सीट हासिल करने में सफलता मिली है, और वो दिल्ली एनसीआर के अधिकांश क्षेत्र में तीसरे स्थान पर रहे थे।
और तो और, इनकी मुसीबतें बढ़ाते हुए यह अफवाहें भी उड़ने लगी हैं कि दिल्ली के चुनाव समय से चार महीने पहले ही अक्टूबर में कराये जा सकते हैं। ऐसे में हाशिये पर चल रही आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर मुफ्तखोरी के ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने का विचार किया। इसके लिए उन्होंने मतदाताओं के उस भाग को चुना जो उनके नज़रिये में सबसे भोली और मासूम है, उनके क्षेत्र की महिलाओं को।
इसीलिए अब पार्टी ने महिलाओं को लुभाने के लिए दिल्ली मेट्रो और डीटीसी की बसों में मुफ्त आवाजाही की पेशकश की है, और अपने आपको दानवीर सिद्ध करने के लिए राजधानी के करदाताओं का 700 करोड़ रुपये भी फूंकने को पूरी तरह तैयार है। न सिर्फ आम आदमी पार्टी ‘भोली भाली महिलाओं’ के मतों को अपने पाले में लाना चाहती है, बल्कि इस कदम के जरिये राजधानी में महिला सुरक्षा की समस्या से भी ध्यान भटकाना चाहते हैं।
राजधानी की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है महिला सुरक्षा का अभाव। यह क्षेत्र भारत के ‘रेप कैपिटल’ के तौर पर भी बदनाम रहा है, और शीला दीक्षित जैसे कई मुख्यमंत्री आए और गए, पर इस समस्या से सही तरह से नहीं निपट पाये। आश्चर्य की बात तो यह है कि आम आदमी पार्टी को ये लगता है अगर महिलाओं को बसों और मेट्रो में मुफ्त की आवाजाही उपलब्ध करा दी जाये तो उनकी सुरक्षा का मुद्दा ही खत्म हो जायेगा .. अब ये फ्री की सेवा और सुरक्षा कैसे एक दूसरे से जुड़े हैं ..वो समझा दे तो अन्य राज्य भी इससे सीख ले सकते है .. है न ?
खैर, एक समझदार महिला होने के नाते मैं अरविंद केजरीवाल के इस ढोंग से भली भांति परिचित हूं। अपनी इस फ्री सेवा की योजना की घोषणा करते हुए अरविंद केजरीवाल ने बड़े शान से कहा, पब्लिक ट्रांस्पोर्ट को सुरक्षा के लिहाज से सेफ माना गया है। इसीलिए डीटीसी, क्लस्टर बसों और मेट्रो में अब महिलाएं फ्री में यात्रा कर सकेंगी..क्योंकि पहले महिलाएं किराए की वजह से इनमें सफर नहीं कर पाती थीं। ..अब उनसे सबसे पहला सवाल मेरा ये है कि फ्री मेट्रो टिकट कैसे महिला सुरक्षा की समस्या का निवारण करेगा? क्या यौन शोषण और छेड़खानी सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि महिलाओं को टिकट के लिए पैसे देने पड़ते हैं? अब कहीं केजरीवाल ये सिद्ध करने में तो नहीं लगे है कि दिल्ली में 2012 का वो भयानक बलात्कार सिर्फ इसलिए हुआ था क्योंकि उस पीड़िता ने बस के टिकट के लिए पैसे दिये थे? अगर ऐसा है तो क्या केजरीवाल क्या इस बात का भरोसा दिला सकते हैं कि इस कदम से महिलाएं सुरक्षित रहेंगी ?
इस कदम की घोषणा करते वक्त केजरीवाल ने ये भी कहा कि उनके इस कदम का मकसद ‘महिलाओं को पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है।‘ उनके अनुसार महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग इसलिए नहीं करती क्योंकि अधिकांश महिलाओं को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
सच कहूं तो ये सरासर झूठ है। दिल्ली मेट्रो और डीटीसी की बसें शहर में आवाजाही के लिए सबसे सस्ते विकल्पों में से एक है। इसके अलावा जो विकल्प हैं, जैसे कैब, ऑटो रिक्शा, यहां तक की व्यक्तिगत वाहन भी एक हद के बाद काफी महंगे साबित होते हैं। ऐसे में यदि कोई महिला किसी कैब या व्यक्तिगत वाहन में सफर करती हैं, तो उसके पीछे सुरक्षा संबंधी दिक्कतें होती है, जो महिला के पब्लिक ट्रांसपोर्ट के टिकट के पैसे न देने से नहीं रुकने वाली।
इस योजना से तो मुझे विक्टोरिया काल याद आ गया जहां महिलाओं को सुविधाएं सिर्फ इसलिए दी जाती थी क्योंकि उन्हें नाज़ुक समझा जाता था, और पुरुष समाज को शक्तिशाली और आत्मनिर्भर समझा जाता था। उस समय समानता का सिद्धान्त किसी को नहीं पता था, और लगता है केजरीवाल की सरकार ने इस बार भी समानता के सिद्धान्त की अनदेखी की है। न केवल राज्य सरकार एक महिला के आर्थिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए पितृसत्ता को बढ़ावा दे रही है, बल्कि पुरुषों के साथ भी भेदभाव कर रही है।
ऐसी योजना जो पुरुष और औरत में भेद करे, यही सिद्ध करता है कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से कमजोर हैं, जो अपने आप को आर्थिक रूप से संभाल नहीं सकती, टिकट के लिए भुगतान करना तो बहुत दूर की बात है। आज के आधुनिक समाज में महिलाओं की पुरुषों के बराबरी करने और उनके आत्मनिर्भरता के बीच राज्य सरकार का वर्तमान निर्णय आड़े आ रहा है। महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और उनकी सुरक्षा पर ध्यान देने के बजाए सरकार उन्हें ‘फ्री टिकट’ का लोलीपोप थमाना चाहती है। इस तरह के तरह के घटिया पैंतरे अपना कर आम आदमी पार्टी समाज में महिलाओं की समानता का मजाक उड़ा रही है ..उनकी आत्मनिर्भरता पर सवाल खड़े कर रही है..इसके साथ ही इस पार्टी की उस सोच को दर्शा रही है जो आज भी महिलाओं के किसी न किसी पर निर्भर रहने की मानसिकता बाहर नहीं निकल पाया है।
शायद ये ‘फ्री’ की सेवा का लोलीपोप अरविन्द केजरीवाल लेकर नहीं आते अगर उन्होंने जमीनी स्तर पर दिल्ली में काम किया होता।अगर आपसे काम नहीं होता तो महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए इस तरह की राजनीति आप न ही करें तो बेहतर है क्योंकि इससे आपका फायदा हो न हो पर घाटा जरुर होने वाला है।