हाल ही में जामनगर के न्यायालय ने संजीव भट्ट को 1990 के जमजोधपुर में न्यायायिक हिरासत में मारे गए एक अभियुक्त के मामले में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गयी है। 1990 के भारत बंद के दौरान गुजरात के जामनगर में हुई हिंसा में 154 से ज़्यादा लोगों को संजीव भट्ट के नेतृत्व में जामनगर पुलिस ने हिरासत में लिया था, जिसमें से प्रभु दास वैशनानी की उपेक्षित व्यवहार के कारण असामयिक मृत्यु हो चुकी है।
संजीव भट्ट के ऊपर लगे आरोप साबित हो जाने से मानो लेफ्ट लिबरल ब्रिगेड में मातम छा गया है। कई लोग इस बात को अभी भी नहीं पचा पा रहे हैं कि संजीव भट्ट, जो मोदी विरोध के नाम पर सोशल मीडिया पर वैमनस्य फैलाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते, अब अपने कुकर्मों के कारण कारागार में है। शायद इसीलिए अब यह लेफ्ट लिबरल संजीव भट्ट के पाप धोने में जी जान से जुट गए हैं।
इसका प्रारम्भ हुआ बीबीसी की एक विवादास्पद रिपोर्ट से, जिसमें संजीव भट्ट को 2002 के गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल उठाने वाला दिखाया है। और तो और भट्ट पर लगे आरोपों को लेकर बात भी नहीं की है.
इसके बाद तो जैसे संजीव भट्ट के सभी दोषों को माफ करने की प्रतियोगिता ही छिड़ गयी हो। जहां इंडिया टूड़े भट्ट की पत्नी के माध्यम से उन्हें निर्दोष साबित करने में जुटे हुए थे, तो वहीं विवादित पत्रकार सबा नक़वी ने पिछले मामलों का हवाला देते हुए संजीव भट्ट को बलि का बकरा सिद्ध करने का घटिया प्रयास भी किया है। सबा नक़वी के तेवर को देखते हुए हम तो आश्चर्यचकित हैं कि इन्होंने इस निर्णय को पॉलिटिकल वेंडेटा क्यों नहीं सिद्ध किया?
Has any cop ever got such a sentence for custodial death?
Pls enlighten us if so….
There are so many custodial deaths in India….Sacked IPS officer Sanjiv Bhatt gets life term in 1990 custodial death case – The Hindu https://t.co/SUlifKee7E
— Saba Naqvi (@_sabanaqvi) June 20, 2019
इतना ही नहीं, विवादित कांग्रेसी राजनेता शमा मोहम्मद ने तो संजीव भट्ट के दोषारोपण के पीछे प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी लपेटे में ले लिया। शमा मोहम्मद के अनुसार भट्ट की दोषसिद्धि हमारे लोकतंत्र के लिए एक काला दिन है, क्योंकि प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे कथित आतंकवाद आरोपी अभी खुले आम घूम रही है। हमें पता था कि संजीव भट्ट के कारागार जाने से कई लोग आहत होंगे, पर इतना आहत होंगे, किसी ने नहीं सोचा था। विवादित लेखक संजुक्ता बासु ने बीबीसी के लेख के को सही सिद्ध करना का बेहद घटिया प्रयास किया –
पर हद तो तब हो गयी, जब संजीव भट्ट को निर्दोष सिद्ध करने में विवादित न्यूज़ पोर्टल द वायर ने दो लंबे चौड़े लेख प्रकाशित कर दिये। इनमें भट्ट की दोषसिद्धि को न केवल असामान्य सिद्ध करने का प्रयास किया है, बल्कि इनहोने न्यायालय में सुनवाई के दौरान हुई प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं।
द वायर के सुर में सुर मिलाते हुए एक और विवादित न्यूज़ पोर्टल द क्विंट ने भी न्यायालय के निर्णय पर सवाल खड़े कर दिये। इसपर प्रसिद्ध टेक्नोक्रेट टीवी मोहनदास पाई ने कड़ी आपत्ति जताते हुए इसके विरोध स्वरूप ट्वीट किया भी किया।
जबसे संजीव भट्ट को कारागार भेजा गया है, हमारे देश के बुद्धिजीवी वर्ग को मानो सांप सूंघ गया है। मोदी विरोध के नाम पर देशद्रोहियों को भी निस्संकोच अपने खेमे में शामिल करने वाले बुद्धिजीवी अब समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे संजीव भट्ट को निर्दोष सिद्ध करें। शायद ये भूल रहे हैं कि अभी 1998 के पालनपुर ड्रग प्लांटिंग में निर्णय आना बाकी है जिसमें पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट पर पाली के एक वकील के खिलाफ झूठा केस में फंसाने का आरोप है।