मायावती ने अपने इस दांव से अखिलेश के कॅरियर को पूरी तरह तबाह कर दिया

उत्तर प्रदेश को राजनीतिक दृष्टि से देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है और यही कारण है कि इस साल के लोकसभा चुनावों से पहले जनवरी में राज्य की दो सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी, यानि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाथ मिला लिया और एकसाथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया। सभी को उम्मीद थी कि यह महागठबंधन भाजपा को कड़ी टक्कर देगा और भाजपा को वर्ष 2014 के प्रदर्शन को दोहराने से रोक देगा। लेकिन इस बार भी इन पार्टियों के हाथ निराशा ही लगी और भाजपा गठबंधन की नाक के नीचे से राज्य की 62 सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही। हालांकि, हार के बाद से ही गठबंधन में दरार पड़ना शुरू हो चुकी थी। बसपा को पिछले बार की शून्य सीटों के मुक़ाबले इस बार 10 सीटें मिली थी, और इसे सबसे बड़े गेनर के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन समाजवादी पार्टी को अपने बड़े वोट बैंक से हाथ धोना पड़ा था, लेकिन उसके बाद भी मायावती ने समाजवादी पार्टी और अखिलेश पर लगातार हमला जारी रखा है।

इसकी शुरुआत तब हुई जब चुनावी नतीजों के महज़ 10 दिन बाद ही मायावती ने अपना यह फैसला सार्वजनिक कर दिया कि बसपा अब गठबंधन का हिस्सा नहीं रहेगी। मायावती ने ऐलान किया कि वे राज्य की 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर अकेले ही चुनाव लड़ेंगे यह फैसला समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा झटका था क्योंकि इसी पार्टी के साथ मिलकर बसपा को इन चुनावों में इतनी बड़ी सफलता मिली थी।

हालांकि, ऐसा नहीं है कि मायावती ने सिर्फ गठबंधन से अलग होने की घोषणा की हो, अलग होने के साथ ही उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि समाजवादी पार्टी के वोटबैंक में अखिलेश के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हो सके। दरअसल, बीते रविवार को सपा की एक बैठक में मायावती ने अखिलेश यादव पर ऐसे आरोप लगाए जिसको सुनने के बाद खुद अखिलेश का वोटबैंक भी उनसे नाराज़ हो जाएगा। मायावती ने उनपर सबसे बड़ा आरोप यह लगाया कि चुनावों से पहले अखिलेश ने उनसे मुसलमानों को टिकट ना देने के लिए कहा था क्योंकि उनके मुताबिक उसकी वजह से तुष्टीकरण होगा और भाजपा को इससे फायदा पहुंचेगा। मायावती ने कहा कि उन्होंने अखिलेश के इन सुझावों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया था। मायावती ने अपने इस बयान से एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास किया है, और दोनों ही अखिलेश के लिए किसी झटके से कम नहीं है। एक तरफ जहां मायावती ने अखिलेश को मुस्लिम विरोधी दिखाने का प्रयास किया तो वहीं मायावती ने खुद को तुष्टीकरण की घटिया राजनीति से ऊपर उठने वाले नेता के तौर पर प्रदर्शित किया है।

इसके अलावा मायावती ने एक और बड़ा दांव खेला। मायावती ने कहा कि इन चुनावों में दलितों ने समाजवादी पार्टी को पूरी तरह नकार दिया क्योंकि पार्टी के शासन के समय दलितों पर खूब अत्याचार हुए थे। साथ ही यादवों ने भी सपा का समर्थन नहीं किया और समाजवादी पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी हार गए। इन दोनों का बुरा असर गठबंधन पर पड़ा और गठबंधन को वो जनसमर्थन नहीं मिल पाया जिसकी उन्हें आशा थी। मायावती ने अपने इस बयान से अखिलेश पर सीधे तौर पर दलित-विरोधी होने का आरोप लगा डाला। मायावती ने यह भी कहा कि हार के बाद अखिलेश का रवैया काफी निराशनजाक रहा और उन्होंने उनको फोन तक करने की ज़हमत नहीं उठाई। इसके उलट अखिलेश ने बसपा के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा को फोन किया। उन्होंने बैठक के एक दिन बाद यानि सोमवार को दो ट्वीट किए और समाजवादी पार्टी पर गठबंधन का धर्म ना निभाने का आरोप लगाया। उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा ‘वैसे भी जगजाहिर है कि सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवों को भुलाने के साथ-साथ सन् 2012-17 में सपा सरकार के बीएसपी व दलित विरोधी फैसलों, प्रमोशन में आरक्षण विरूद्ध कार्यों एवं बिगड़ी कानून व्यवस्था आदि को दरकिनार करके देश व जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाया’।

इसके बाद उन्होंने एक दूसरे ट्वीट में लिखा ‘परन्तु लोकसभा चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी’।

खैर चुनावों के बाद की स्थिति स्पष्ट है। एक तरफ मायावती हैं, जिनकी पार्टी के पास पहले की शून्य सीट के मुक़ाबले अब 10 सीटें हैं। मायावती ने अपने हाल ही के बयानों से यह भी दर्शाने की कोशिश की है वे दलितों और पिछड़ों की हितैषी हैं और उन्हें सपा के साथ गठबंधन करके नुकसान हुआ। जबकि दूसरी ओर अखिलेश हैं जिनकी पार्टी के पास सिर्फ 5 सीटें हैं और साथ ही उनके वोटबैंक में भी भारी नुकसान हुआ है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के 22.20 प्रतिशत वोटर्स ने अपना समर्थन दिया था, जबकि वर्ष 2019 में यह वोट शेयर सिर्फ 17.96 प्रतिशत तक गिर गया, यानि समाजवादी पार्टी को लगभग 4 प्रतिशत वोटशेयर का नुकसान उठाना पड़ा। इसके बाद अब मायावती ने भी उनका साथ छोडते-छोड़ते अखिलेश यादव पर ऐसे आरोप लगाए हैं जिससे उनकी छवि को गहरा नुकसान पहुंचा है और इसका खामियाजा उन्हें आने वाले उपचुनावों में भी भुगतना पड़ सकता है।

साफ है, अगर समाजवादी पार्टी के जनाधार में कमजोरी आती है तो मायावती के लिए इससे अच्छी बात कोई और हो नहीं सकती। अगर अखिलेश कमजोर पड़ते हैं तो बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में एकमात्र ऐसी पार्टी बचेगी जो भाजपा को चुनौती दे सके, क्योंकि कांग्रेस तो कहीं लड़ाई में है ही नहीं। इन्हीं महत्वाकांक्षाओं के साथ अब उत्तर प्रदेश में मायावती ने यह राजनीतिक दांव खेला है और काफी हद तक अखिलेश भी बसपा प्रमुख की इस चुनावी चाल में फंसते नज़र आ रहे हैं। मायावती ने अखिलेश पर जो आरोप लगाए हैं, वे काफी गंभीर है, लेकिन अब तक अखिलेश की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अब यह जानना दिलचस्प होगा कि अखिलेश इस पूरे मामले पर क्या रुख दिखाते हैं। हार के बाद अखिलेश मीडिया के सामने आए थे और तब उन्होंने कहा था कि वे विज्ञान के छात्र हैं और उन्होंने यह प्रयोग किया जो सफल नहीं हो पाया। लेकिन हमारा मानना है ना सिर्फ उनका यह प्रयोग असफल हुआ बल्कि इस प्रयोग से अब उनके हाथ जलते भी नज़र आ रहे हैं। अगर समाजवादी पार्टी और पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी की गिरती साख को बचाने की कोशिश नहीं की, तो वह दिन दूर नहीं होगा जब इस पार्टी का अस्तित्व ही खात्मे की ओर होगा ।

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