कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा पिछले कई महीनों से अपने कांग्रेस पार्टी के विपरीत विचार व्यक्त करते नज़र आ रहे है। इस बार मुद्दा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का था। प्रधानमंत्री ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ समेत पांच मुद्दों पर विचार करने के लिए बुधवार को बैठक बुलाई थी। इसके लिए 40 दलों को न्योता भेजा गया था, लेकिन बैठक में 21 दलों के प्रमुख और उनके प्रतिनिधि शामिल हुए। तीन पार्टियों ने लिखित में अपनी प्रतिक्रिया भेजी। वही कांग्रेस नेता और पूर्व टेलीकॉम मंत्री मिलिंद देवड़ा ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विचार का समर्थन किया है। उन्होनें ट्विटर पर एक बहुत विस्तृत पोस्ट में कहा,”सरकार के प्रस्ताव पर खुले मन से विचार किया जाना चाहिए। अभी तक इसके प्रमाण नहीं मिले हैं कि एक साथ चुनाव कराने से केंद्र में सत्तारूढ़ दल को फायदा मिलेगा। हाल ही में लोकसभा चुनावों के साथ अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, और आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव कराए गए थे। ओडिशा और आंध्र में वे दल जीते जिनका भाजपा के साथ गठबंधन नहीं था।। ट्विटर पर अपने विचारों को लिखते हुए मिलिंद ने ट्वीट किया। गौरतलब है कि देवड़ा की पार्टी कांग्रेस इस प्रस्ताव के विरोध में है।
बैठक में कांग्रेस ने शामिल न होकर एक राष्ट्र एक चुनाव के प्रति अपना रुख स्पष्ट कर दिया। लेकिन मिलिंद देवड़ा ने जो बातें अपने ट्विटर पर लिखी उससे साफ पता चलता है कि वह पार्टी के रुख से सहमत नहीं है। और यह उनके व्यक्तिगत विचार है। उन्होनें आगे लिखा कि ‘देश को एक ऐसे एजेंडे की जरूरत है जो सामाजिक ओर आर्थिक विकास करे।‘ केंद्र सरकार को अन्य पार्टियों से आम सहमति बनाने की कोशिश करनी चाहिए। यह कोई साधारण सुधार नहीं है, तथा इसका प्रभाव दूरगामी होगा। उन्होनें आगे लिखा कि मैं विपक्ष की सभी पार्टियों से इस मामले पर व्यवहारवाद की उम्मीद रखता हूं।
My personal views on the ongoing #OneNationOneElection debate pic.twitter.com/dUxP5BeJ80
— Milind Deora | मिलिंद देवरा ☮️ (@milinddeora) June 19, 2019
मिलिंद देवड़ा द्वारा कही गई ये दलीलें स्पष्ट रूप से दिखाती है कि वह एक स्पष्ट नेतृत्व वाले और बुद्धिमान राजनेता हैं जो राष्ट्र और नागरिकों की ज़रूरतों को पार्टी से ऊपर रखते हैं। एक तरफ जहां कांग्रेस देश को होने वाले लाभों अनदेखा कर रही, और तो और इसपर चर्चा तक नहीं रकना चाहती वहीं, दूसरी तरफ मिलिंद देवड़ा दूरदर्शिता दिखा रहे हैं।
मिलिंद देवड़ा का यह व्यक्तिगत रुख पार्टी के रुख से उलट है। इसका क्या प्रभाव होगा यह तो आने वाले समय ही बताएगा। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को मोदी सरकार प्राथमिकता दे रही और इसे राष्ट्रीय मुद्दा बता देश का ध्यान इस ओर करना चाहती है और इसके फायेदे गिना रही है कि एक साथ चुनाव अलग चुनावों में शामिल भारी लागत को कम होगी। तथा यह प्रणाली सत्ताधारी दलों को चुनाव मोड में लगातार रहने के बजाय शासन पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी।
हालांकि, यह पहली बार है नहीं है कि जब देवड़ा ने पार्टी के विपरीत विचार रखा है या पार्टी के कामकाज पर अपना असंतोष व्यक्त किया है। 2014 में, देवड़ा ने एक अध्यादेश के खिलाफ बयान दिया था जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने पारित किया था। कांग्रेस के कैडर में देवड़ा का प्रतिकूल स्थान फिर से स्पष्ट हो गया है। इस बार चुनाव की भी जल्दीबाजी नहीं है और यह मामला राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा है। ऐसे में देवड़ा के लिए अपने गठबंधन को बदलना और उस अनुशासित पार्टी (भाजपा) में शामिल होना पूरी तरह विवेकपूर्ण होगा जो उनके विचारों और विचारधारा से मेल खाती हो।
महज 43 साल की उम्र में, देवड़ा का लंबा राजनीतिक जीवन है। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह खुद को पहले “एक भारतीय, तब एक सांसद और फिर एक कांग्रेसी” के रूप में देखते है। दुर्भाग्य से वह वर्तमान में उस पार्टी में फंस गये है जो उनके स्वतंत्र और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को दबा रहा है। इसके अलावा, पार्टी उनकी चुनावी महत्वाकांक्षाओं के लिए बाधा बन रही है क्योंकि यह कांग्रेस का ही टैग था, जो इस बार चुनाव में उनके हार का कारण बना। भाजपा निश्चित रूप से देवड़ा के लिए अपनी विचारधारा और कांग्रेस के खिलाफ उन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए पूरी तरह से फिट होगी। बीजेपी में भी खुले हाथों से देवड़ा का स्वागत होने की संभावना है क्योंकि वह एक कुशल राजनेता के साथ एक अच्छे वक्ता भी है। यह देवड़ा के विचार ही हैं जो उन्हें एक राष्ट्रवादी नेता बनाता है।