यह लेख राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को लेकर जारी हमारी सिरीज़ का दूसरा भाग है। अपने विश्लेषण के दौरान हम आपको बताएँगे कि यह शिक्षा नीति बढ़ती उम्र के साथ कैसे आपके बच्चों पर सकारात्मक असर डालेगी और देश में अब तक चली आ रही पुरानी शिक्षा नीति से यह अलग कैसे है।
अगर हम स्कूलों की मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर नज़र डालें, तो अभी सबसे पहले तीन साल की उम्र के एक बच्चे को 6 वर्ष की आयु तक नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी कक्षाओं में पढ़ाया जाता है। इसके बाद 7 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जाती है जिसमें कक्षा पहली से लेकर कक्षा आठवीं तक के बच्चे शामिल होते हैं। प्राथमिक शिक्षा के बाद दो साल के लिए छात्रों को मेट्रिक शिक्षा प्रदान की जाती है और उसके बाद 2 सालों के लिए इन छात्रों को उच्च माध्यमिक शिक्षा दी जाती है। इस तरह से स्कूलों में अब तक 10+2 का फॉर्मूला चलता आया है, लेकिन नई शिक्षा नीति में ऐसा नहीं होगा।
जैसा हमने आपको पिछले लेख में बताया, ड्राफ्ट के मुताबिक प्री-स्कूल से लेकर दूसरी कक्षा तक की शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत लाया गया है। इसके बाद तीसरी कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक की शिक्षा को इस ड्राफ्ट में प्रारम्भिक शिक्षा माना गया है। इन तीन सालों के दौरान बच्चों को खेल-कूद आधारित शिक्षा के साथ-साथ पाठ्यपुस्तक आधारित शिक्षा भी प्रदान की जाएगी।
प्रारम्भिक शिक्षा का मकसद बच्चों को कला और शारीरिक शिक्षा के साथ-साथ संख्यात्मक और पढ़ने का कौशल प्रदान करना है। इस दौरान बच्चों को ‘जनरलिस्ट टीचर्स’ यानि ऐसे अध्यापक पढ़ाएंगे जो सभी विषयों के जानकार होंगे। इसके अलावा भाषा और कला से संबन्धित विशेषज्ञ अध्यापक भी इन बच्चों को पढ़ाएंगे। इस ड्राफ्ट में सबसे बड़ी बात बच्चों के पोषण से जुड़ी है। ड्राफ्ट के मुताबिक बच्चों को दोपहर के खाने के साथ-साथ सुबह का खाना भी स्कूलों में ही उपलब्ध कराया जाएगा। इसके कारण सुबह से लेकर दोपहर तक स्कूली बच्चे अधिक उत्पादकता के साथ पढ़ सकेंगे। यह सुविधा प्री-स्कूल्स से लेकर प्राथमिक कक्षा तक के सभी छात्रों के लिए उपलब्ध होगी।
नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों को कम उम्र से ही बहुभाषीय बनाने पर ज़ोर दिया जाएगा। यह तथ्य है कि 2 से 8 साल तक के बच्चों को नई भाषा सीखने में आसानी होती है। यही कारण है कि ड्राफ्ट में गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा के साथ-साथ स्थानीय भाषा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव लाया गया है तो वहीं हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी और अंग्रेज़ी के साथ-साथ एक अन्य भारतीय भाषा पढ़ाने का प्रस्ताव इस ड्राफ्ट में रखा गया है। विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि अगर बच्चों को उनकी मातृ भाषा में चीज़ें समझाई जायें, तो बच्चों को उन्हें समझने में आसानी होती है।
नई शिक्षा नीति की खास बात यह होगी कि इसमें शिक्षा में ‘लचीलापन’ यानि फ्लेक्सिबिलिटी पर काफी ज़ोर दिया गया है। ड्राफ्ट में साफ तौर पर लिखा है ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति का यह ड्राफ्ट पाठ्यचर्या, अतिरिक्त पाठयक्रम, या सह-पाठयक्रम क्षेत्रों, कला और विज्ञान, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच अलगाव का प्रस्ताव है। छात्रों को कला, विज्ञान, मानविकी, खेल और व्यावसायिक शिक्षा में से चुनने के लिए ऐसे विषयों की एक बड़ी सूची दी जाएगी। एनईपी के मसौदे के अनुसार, स्कूली शिक्षा का उद्देश्य “वैज्ञानिक स्वभाव, सौंदर्य बोध, संचार, नैतिक तर्क, डिजिटल साक्षरता, भारत का ज्ञान, समुदाय और दुनिया के सामने आने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों का ज्ञान विकसित करना होगा’।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस शिक्षा नीति में सिर्फ योजनाएं बनाई गई हों। तीसरी और पांचवी कक्षा में बच्चों का जनगणना आधारित एक टेस्ट होगा जिसमें इन तीन सालों के दौरान बच्चों की ज्ञान वृद्धि को परखा जाएगा। जनगणना आधारित टेस्ट का मतलब है कि सभी बच्चों का टेस्ट नहीं होगा बल्कि ज्ञान वृद्धि का आंकड़ा जुटाने और शिक्षा स्तर की गुणवत्ता को जांचने के लिए सिर्फ चुनिंदा बच्चों को ही परीक्षा देनी होगी।
कुल मिलाकर यह नई शिक्षा नीति देश का भविष्य माने जाने वाले बच्चों के लिए क्रांतिकारी साबित होगी इसका हम सभी को स्वागत करना चाहिए। अगर यह नीति सफलतापूर्वक लागू होती है तो आने वाले समय में भारत में मानव संसाधन की गुणवत्ता में बड़ा और सकारात्मक बदलाव होने की उम्मीदें हैं।